पुरी से लौटकर-12
मैं विचारों के भंवर में इस कदर खोया हुआ था कि धर्मपत्नी दर्शन करके कब पास आकर खड़ी हो गई पता ही नहीं चला। उसने कहा 'कहां खोए हुए हो..चलना नहीं है क्या..?' उसकी आवाज से मैं चौंका..और खुद का सामान्य दिखाने का प्रयास करते हुए कहा, नहीं.. नहीं..ऐसा कुछ नहीं है, बस भीड़ में तुमको ही देख रहा था। इसके बाद हम तत्काल मंदिर परिसर से बाहर आए और रास्ते में धर्मपत्नी ने फिर टोका.. आपने तिलक नहीं लगवाया क्या? मैंने ना की मुद्रा में सिर हिलाया तो बगल में बैठे एक पण्डे के यहां से अंगुली पर चंदन/सिंदूर मिश्रित घोल लगाकर ले आई और चलते-चलते ही मेरे ललाट पर तिलक कर दिया। हम मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंच चुके थे। बाहर साथी गोपाल जी हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने अपने मोबाइल हमको थमाए और परिवार सहित वो दर्शन करने मंदिर में प्रवेश कर गए। बाहर खड़े-खड़े फिर कई तरह के विचार फिर उमडऩे लगे। पुरी आने से पहले पढ़े पुरी से संबंधित उन आठ आश्चर्यों की पुष्टि करने की जिज्ञासा प्रबल हो गई। इन आठ आश्चर्यों का विवरण इस प्रकार से है..।
1. मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है।
2. पुरी में किसी भी जगह से मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सामने लगा हुआ ही दिखाई देगा।
3. सामान्य दिन के समय हवा समुद्र से जमीन के तरफ आती है और शाम को इसके विपरीत लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
5. मंदिर के मुख्य गुबंद की छाया दिन में अदृश्य रहती है.. दिखाई नहीं देती है.चाहे सूर्योदय हो या सूर्यास्त। मंदिर के गुम्बद की परछाई दिखाई नहीं देती।
6. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक मात्रा भी व्यर्थ नहीं जाती है। चाहे कुछ हजार लोगों से 20 लाख लोगों तक खिला सकते हैं।
7. मंदिर में रसोई (प्रसाद) पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। लकड़ी से रसोई से बनाई जाती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले शीर्ष बर्तन में सामग्री पकती है। फिर क्रम से एक के बाद एक नीचे तक पकती जाती है।
8. मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश पहला कदम प्रवेश करने पर (मंदिर के अंदर से) आप सागर निर्मित किसी भी प्रकार की ध्वनि नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर )एक कदम ही रखें तो आप इसको सुन सकते हैं। इसको शाम के वक्त स्पष्ट सुना जा सकता है।
खैर, हम शाम के वक्त मंदिर में गए थे, इस कारण इन आश्चर्यों की ठीक से पुष्टि नहीं कर पाए। रसोई एवं प्रसाद बनने का तरीका भी नहीं देख पाए..। दर्शन करने के उतावलेपन में न तो हवा का रुख पता चला और ना ही समुद्र की आवाज अंदर या बाहर से सुनाई दी। ... जारी है।
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