बस यूं ही
आज सुबह टीवी पर गाना आ रहा था, गीत के बोल थे.. 'फूलों सा चेहरा तेरा, कलियों सी मुस्कान है, रंग तेरा देख के रूप तेरा देख के कुदरत भी हैरान है। वैसे यह गीत कॉलेज के जमाने में कई बार सुना है। उस वक्त यह गीत नया-नया आया था और बार-बार सुनने को मन करता था, लेकिन आज गीत ने सोचने पर मजबूर कर दिया। सोचने की सबसे बड़ी वजह थी युवा पीढ़ी का प्रमुख त्योहार वेलेंटाइन डे। हमारे देश के बड़े एवं चुनिंदा शहरों में ही कभी इसकी शुरूआत हुई थी। प्रेमी युगल डरे सहमे एवं छिप-छिपकर पाश्चात्य संस्कृति से रचे-बसे इस त्योहारों को मनाते थे। इसके बाद तो जो हुआ बस पूछिए मत..। नकल करने में माहिर देशवासियों ने इस त्योहार को हाथो हाथ लेकर इसकी लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए। रफ्ता-रफ्ता इसे वेलेंटाइन सप्ताह का रूप दे दिया गया। हर दिन एक अलग-अलग गतिविधि। मतलब एक ही सप्ताह में प्रेम का अंकुरण प्रस्फुटित होने से लेकर प्रेम के पेड़ बनने तक की कहानी पूर्ण हो जाती है। यह बात दीगर है कि इस वेलेंटाइन सप्ताह में सात की बजाय आठ दिन होते हैं। यकीन ना आए तो गिनती कर लीजिए..। शुक्रवार को इस सप्ताह का पहला दिन था और आठवें दिन वेलेंटाइन डे है। खैर, प्रेम एवं युद्ध में सब जायज है, इस कारण सप्ताह में सात की बजाय आठ दिन भी हो सकते हैं। सप्ताह के पहले दिन को नाम दिया गया रोज डे..। यानि की प्रेम की राह पर बढऩे या चलने की शुरुआत करने वाले इस दिन एक दूसरे को गुलाब का फूल देते हैं। मुझे गीत के बोल फिर याद रहे थे.. मैं सोच में डूबा था कि जब चेहरा ही फूलों जैसा है तो फिर उसे अलग से फूल देने की जरूरत ही कहां रह जाती है। बात फूलों की चली तो फिर फूलों से वाबस्ता कई तराने जेहन में घूम गए। ए गुलबदन, फूलों की महक कांटों की चुभन, तुम्हे देख के कहता है मेरा दिल कहीं आज महोब्बत ना हो जाए..। ऐ फूलों की रानी, बहारों की मल्लिका, तेरा मुस्कुराना गजब हो गया.. ना दिल होश में हैं ना हम होश में नजर का मिलाना गजब हो गया। वैसे, जहां चेहरे ही फूलों जैसे हों, वहां अलग से फूल देना या देने की बात करने का कोई मतलब नहीं होता है। हां, इतना जरूर है कि साल भर ग्राहकों के इंतजार में हाथ पर हाथ धरकर बैठने वाले फूल विक्रेताओं के लिए रोज डे व्यस्तता भरा रहता है। वे युगलों की शक्ल एवं हैसियत देखकर मुंहमांगी कीमत जो वसूलते हैं। इसके अलावा करें भी क्या.? कल गुलाब के फूल को पूछेगा भी कौन..। बात फूलों से आगे जो बढ़ जाएगी। अरे भई प्रपोज डे जो आ जाएगा। प्रपोज बोले तो प्रेम के इजहार करने का दिन। इसके बाद तो कभी चाकलेट डे, कभी टेडी डे, कभी प्रोमिस डे तो कभी कुछ और इन सबके बाद वेलेंटाइन डे आता है। इन सात आठ दिन में इजहार, वादा सब कुछ हो जाता है।
मैं ख्यालों में अभी खोया ही था कि दूसरा गीत बजने लगा.. 'प्यार किया नहीं जाता.. हो जाता है, दिल दिया नहीं जाता.. खो जाता है। वेलेंटाइन सप्ताह में गीत के बोल मुझे बेमानी से लग रहे थे। क्योंकि मौजूदा दौर में वेलेंटाइन सप्ताह में किस दिन क्या करना है, यह सब मुकर्रर है। ऐसे में इस सप्ताह के अलावा प्यार करने और दिल खोने की तो वैसे भी कल्पना नहीं जा सकती।
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