टिप्पणी
रायपुर में कुत्ते के हमले में हुई मासूम की मौत के बाद समूचे प्रदेश में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि खूंखार होते आवारा कुत्तों से पार कैसे पाया जाए? नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने आनन-फानन में प्रदेश के निकायों को आवारा कुत्तों से निपटने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। साथ ही 28 फरवरी तक कुत्तों से निपटने के लिए किए उपायों के संबंध में रिपोर्ट भी मांगी गई है। शासन के आदेशों की अनुपालना में निगमों में हरकत शुरू हो गई है। दुर्ग एवं भिलाई निगम के अधिकारी भी इसी उधेड़बुन में हैं कि निर्देशों का जवाब किस तरह तैयार किया जाए, ताकि शासन को संतुष्ट किया जा सके। वैसे देखा जाए तो दोनों ही निगमों में कुत्तों से निबटने के लिए कभी गंभीरता नहीं दिखाई गई। तभी तो निगमों के पास न तो कोई संसाधन है और ना ही प्रशिक्षित कर्मचारी। कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी करने के लिए भी निजी एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। भिलाई निगम के अधिकारी तो दावा कर रहे हैं कि पिछले साल दिसम्बर में करीब 25 सौ कुत्तों की नसबंदी की गई, लेकिन दुर्ग में तो इस प्रकार की कोई योजना ही अमल में नहीं आई। अकेले जनवरी में दुर्ग के जिला अस्पताल में 471 मरीजों ने एंटी रैबीज इंजेक्शन लगवाया। निजी अस्पतालों में जाकर इंजेक्शन लगवाने वालों की संख्या इससे अलग है।
दिन-प्रतिदिन गंभीर होती इस समस्या के लिए अब परम्परागत तरीकों मे बदलाव करना बेहद जरूरी हो गया है। सिर्फ नर कुत्तों की नसबंदी करने से ही समस्या का हल नहीं होने वाला। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब आवारा कुत्तों की वास्तविक संख्या का आंकड़ा ही पता नहीं है, तो फिर नसबंदी का लक्ष्य कैसे निर्धारित कर दिया गया। वैसे भी आवारा कुत्तों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं होता है। वो एक से दूसरी जगह भी जाते हैं। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के निर्देशों में आवारा कुत्तों से स्थायी छुटकारा पाने का रास्ता दिखाई नहीं देता। ऐसे में दिशा-निर्देश कागजी ज्यादा नजर आते हैं। इनकी पालना ईमानदारी से होगी, इसमें भी संशय है। और अगर किसी तरह से लागू भी किए गए तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह सब करने के बाद कुत्तों के आतंक से मुक्ति मिल जाएगी।
बहरहाल, समस्या कुत्तों की फौज बढऩे के अलावा उनके खूंखार व हिंसक होने की ज्यादा है। शासन के दिशा-निर्देशों में कहीं पर भी यह उल्लेख नहीं है कि ऐसा करने से कुत्ते काटना छोड़ देंगे। नसबंदी कर देने से, मटन-मछली की दुकान कम करने या उनको बंद कर देने से कुत्तों का आतंक खत्म हो जाएगा, यह बेहद हास्यास्पद बात लगती है। ऐसे में समस्या के स्थायी समाधान के लिए ठोस एवं कारगर उपाय खोजने की जरूरत है। अब जरूरी हो गया है कि आवारा पशुओं की तर्ज पर आवारा कुत्तों को पकड़कर उनको एक जगह रखने की व्यवस्था हो। आवारा कुत्तों के साथ पालतू कुत्तों व मादा कुत्तों की नसबंदी भी हो..। अगर यह उपाय जल्द नहीं खोजे गए तो कुत्ते यूं ही काटते रहेंगे। काटना उनकी आदत है।
भिलाई पत्रिका के बुधवार 19 फरवरी के अंक में प्रकाशित टिप्पणी..।
No comments:
Post a Comment