Tuesday, December 29, 2015

ईमानदारी

मेरी 13वीं कहानी

दस मिनट के लिए बस रुकी तो वह नीचे उतरा। तापमान जीरो डिग्री से नीचे था लेकिन वातानुकूलित बस में उसका एहसास नहीं हुआ। बस से बाहर आते ही वह कंपकपाने लगा। तेजी से दुकान की तरफ बढ़ा और गर्मागर्म चाय पलक झपकते ही हलक के नीचे उतार ली। सर्द हवाओं से बचाव के लिए वह फटाफट बस में चढ़ गया। जैसे ही सीट की तरफ बढ़ा, पीछे बैठी खूबसूरत युवती की आवाज से चौंक पड़ा। आवाज आई 'एक्सक्यूज मी सर। आपकी सीट के नीचे आपके रुपए गिरे हैं। ' युवक तेजी से नीचे झुका तो सौ रुपए का नोट सीट के नीचे पड़ा था। उसने नोट उठाया और तत्काल अपना पर्स निकाला। 'जी मेरे तो नहीं है।' उसने युवती की तरफ देखे बिना ही जवाब दिया, लेकिन सौ रुपए का नोट हाथ में था। नोट का क्या किया जाए, तत्काल कोई हल नहीं सूझा। अचानक विचार आया क्यों ना परिचालक को दे दिया जाए। वह फिर बोला ' बस में मिले हैं, इसलिए बस वाले को ही दे देते हैं।' युवती ने भी सहमति में सिर हिला दिया। तभी परिचालक आया उसने सौ रुपए का नोट उसको सौंप दिया। परिचालक की सवालिया नजरों का आशय वह समझ गया था। 'हमारा नहीं है। आपकी बस में ही मिला है, इसलिए रख लो।' परिचालक मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया। मैं चुपचाप यह घटनाक्रम देख रहा था। ईमानदारी के लगातार दो उदाहरण देख खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। साथ ही जेहन में सवाल भी कौंधा, यह ईमानदारी आखिर सभी जगह क्यों नहीं मिलती?

No comments:

Post a Comment