टिप्पणी
श्रीगंगानगर के जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) कार्यालय की ओर से सोमवार को एक निर्देश जारी किया है। निर्देशों में बताया गया है कि शिक्षा विभाग की ओर से जारी शिक्षा विभागीय कैलेंडर (शिविरा) में 24 दिसम्बर से सात जनवरी तक शीतकालीन अवकाश घोषित किया गया है। विभाग को शिकायत मिली है कि कुछ गैर राजकीय विद्यालयों (निजी/प्राइवेट) में इन निर्देशों की पालना नहीं की जा रही। शिकायत के बाद विभाग ने औपचारिकता के नाम पर निर्देशों की पालना नहीं करने वाले विद्यालयों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की बात करते हुए पत्र जारी कर दिया। इस तरह के निर्देश जारी करने से यह तो साबित हो ही जाता है कि निर्देशों की पालना नहीं हो रही। साथ ही सवाल उठता है कि इन निर्देशों को मानता ही कौन हैं और अवहेलना करने वालों पर किस तरह की कार्रवाई होती है। देखा जाए तो वास्तविकता के धरातल से इनका वास्ता नहीं होता। इस तरह के निर्देश कमोबेश हर साल जारी होते हैं। एक नहीं कई तरह के निर्देश होते हैं लेकिन वो सिर्फ कागजी ही साबित होते हैं। कार्रवाई वास्तव में कड़ी होती तो क्या इस तरह के निर्देश जारी करने की रस्म निभानी पड़ती? विभाग का भय ही पर्याप्त है। कानून तो पहले से बने हुए हैं ही। भला यह कैसे संभव है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण काम से जो जुड़े हैं उनको विभाग के कानून/ निर्देश याद नहीं हो।
दरअसल, निर्देशों की अवहेलना करने वालों में सिर्फ स्कूल ही शामिल नहीं है, वो अभिभावक भी हैं जिनकी मौन स्वीकृति होती है। अक्सर स्कूलों की तरफ से यह तर्क दिया जाता है कि अभिभावक नहीं चाहते कि उनके बच्चों का इतना लंबा अवकाश हो। और यह एक ऐसा तर्क है जिस पर अभिभावक कभी पलटकर जवाब नहीं देते। उनकी यह चुप्पी एक तरह की मजबूरी भी है। इसी चुप्पी को स्कूल ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हां अभिभावकों के नाम पर बने संगठन जरूर आवाज उठाते रहते हैं लेकिन उनको भी अभिभावकों का कितना समर्थन मिल पाता है?
खैर, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में प्रतिकूल मौसम के दौरान इस तरह की शिकायतें ज्यादा सामने आती हैं। अक्सर इस तरह के मौसम में जिला प्रशासन अवकाश घोषित करता है या फिर विद्यालयों का समय बदल दिया जाता है। यह मामला गंभीर इसलिए भी है कि फिलहाल घोषित अवकाश चल रहे हैं। शीतकालीन अवकाश के बावजूद कड़ाके की सर्दी के बीच स्कूल संचालन करना नियमों की अवहेलना के साथ विद्यार्थियों के साथ सरासर ज्यादती है। सर्दी और घने कोहरे के बीच स्कूलों भेजना नि:संदेह किसी सजा से कम नहीं है।
बहरहाल, अभिभावक किसी लाभ या मजबूरी के चलते चुप हैं इधर, संबंधित स्कूल किसी अन्य गतिविधियों के नाम पर कक्षाएं लगा रहे हैं। ऐसे में विभाग को इस तरह के औपचारिकता भरे निर्देश जारी करने के बजाय कार्रवाई का डंडा चलाना चाहिए। शिक्षा विभाग पर अगर आंखों पर पट्टी बांधे है तो जिला प्रशासन को तत्काल दखल देना चाहिए और नियमों की अवहेलना कर मासूमों से खिलवाड़ करने वालों पर नकेल कसनी चाहिए। अभिभावक भी इस तरह के मौसम में संवेदनशीलता दिखाते हुए पहल करें तो सोने पर सुहागा होगा।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 3 जनवरी 17 के अंक में प्रकाशित ....
श्रीगंगानगर के जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) कार्यालय की ओर से सोमवार को एक निर्देश जारी किया है। निर्देशों में बताया गया है कि शिक्षा विभाग की ओर से जारी शिक्षा विभागीय कैलेंडर (शिविरा) में 24 दिसम्बर से सात जनवरी तक शीतकालीन अवकाश घोषित किया गया है। विभाग को शिकायत मिली है कि कुछ गैर राजकीय विद्यालयों (निजी/प्राइवेट) में इन निर्देशों की पालना नहीं की जा रही। शिकायत के बाद विभाग ने औपचारिकता के नाम पर निर्देशों की पालना नहीं करने वाले विद्यालयों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की बात करते हुए पत्र जारी कर दिया। इस तरह के निर्देश जारी करने से यह तो साबित हो ही जाता है कि निर्देशों की पालना नहीं हो रही। साथ ही सवाल उठता है कि इन निर्देशों को मानता ही कौन हैं और अवहेलना करने वालों पर किस तरह की कार्रवाई होती है। देखा जाए तो वास्तविकता के धरातल से इनका वास्ता नहीं होता। इस तरह के निर्देश कमोबेश हर साल जारी होते हैं। एक नहीं कई तरह के निर्देश होते हैं लेकिन वो सिर्फ कागजी ही साबित होते हैं। कार्रवाई वास्तव में कड़ी होती तो क्या इस तरह के निर्देश जारी करने की रस्म निभानी पड़ती? विभाग का भय ही पर्याप्त है। कानून तो पहले से बने हुए हैं ही। भला यह कैसे संभव है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण काम से जो जुड़े हैं उनको विभाग के कानून/ निर्देश याद नहीं हो।
दरअसल, निर्देशों की अवहेलना करने वालों में सिर्फ स्कूल ही शामिल नहीं है, वो अभिभावक भी हैं जिनकी मौन स्वीकृति होती है। अक्सर स्कूलों की तरफ से यह तर्क दिया जाता है कि अभिभावक नहीं चाहते कि उनके बच्चों का इतना लंबा अवकाश हो। और यह एक ऐसा तर्क है जिस पर अभिभावक कभी पलटकर जवाब नहीं देते। उनकी यह चुप्पी एक तरह की मजबूरी भी है। इसी चुप्पी को स्कूल ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हां अभिभावकों के नाम पर बने संगठन जरूर आवाज उठाते रहते हैं लेकिन उनको भी अभिभावकों का कितना समर्थन मिल पाता है?
खैर, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में प्रतिकूल मौसम के दौरान इस तरह की शिकायतें ज्यादा सामने आती हैं। अक्सर इस तरह के मौसम में जिला प्रशासन अवकाश घोषित करता है या फिर विद्यालयों का समय बदल दिया जाता है। यह मामला गंभीर इसलिए भी है कि फिलहाल घोषित अवकाश चल रहे हैं। शीतकालीन अवकाश के बावजूद कड़ाके की सर्दी के बीच स्कूल संचालन करना नियमों की अवहेलना के साथ विद्यार्थियों के साथ सरासर ज्यादती है। सर्दी और घने कोहरे के बीच स्कूलों भेजना नि:संदेह किसी सजा से कम नहीं है।
बहरहाल, अभिभावक किसी लाभ या मजबूरी के चलते चुप हैं इधर, संबंधित स्कूल किसी अन्य गतिविधियों के नाम पर कक्षाएं लगा रहे हैं। ऐसे में विभाग को इस तरह के औपचारिकता भरे निर्देश जारी करने के बजाय कार्रवाई का डंडा चलाना चाहिए। शिक्षा विभाग पर अगर आंखों पर पट्टी बांधे है तो जिला प्रशासन को तत्काल दखल देना चाहिए और नियमों की अवहेलना कर मासूमों से खिलवाड़ करने वालों पर नकेल कसनी चाहिए। अभिभावक भी इस तरह के मौसम में संवेदनशीलता दिखाते हुए पहल करें तो सोने पर सुहागा होगा।
राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 3 जनवरी 17 के अंक में प्रकाशित ....
No comments:
Post a Comment