बस यूं ही
इटली इन दिनों फिर चर्चा में है। वैसे तो इटली को चुनाव के दौरान खूब भुनाया जाता है। इटली बाकायदा मुद्दा भी बनता है। विदेशी और देशी का नारा देकर मतदाताओं को रिझाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। खैर, इन दिनों चर्चा इस बात की है कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली व सिनेतारिका अनुष्का शर्मा ने शादी के लिए इटली को चुना। उनको भारत में एेसी कोई जगह पसंद नहीं जहां यह सात फेरे ले सकें। वैसे यह बड़ा मामला है भी नहीं। बड़ी बात यह है कि गाहे-बगाहे इटली को चुनावी मुद्दा बनाने वाली पार्टी के एक विधायक ने विराट अनुष्का की देशभक्ति पर सवाल उठा दिया। पार्टी अध्यक्ष ने भी स्पष्टीकरण जारी किया कि पार्टी का कोई व्यक्ति विधायक के बयान से इतफाक नहीं रखता है। इधर विधायक ने भी अपनी पार्टी से इस बात के लिए माफी मांगकर कहा कि उनका आशय यह नहीं था। वैसे राजनीति में यह विडंबना है कि किसी का बयान हिट हो जाए तो वह दौड़ जाता है और अगर थोड़ा सा ही विवादित हुआ तो व्यक्तिगत राय बताकर झट से किनारा कर लिया जाता है।
सच तो यह है कि इस हाइटेक शादी के साथ इटली का नाम जुडऩे पर मेरे जेहन में जरूर यह बात थी कि इस मसले पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया आई क्यों नहीं? मैं भी इस पर कुछ लिखने का मानस बना रहा था कि लेकिन अति व्यस्तता के चलते विचारों को शब्दों का जामा नहीं पहना पाया। आज इस विषय पर एक कार्टून देखा तो फिर तय किया कि चलो लिखा ही जाए। खैर, मेरा मानना है कि इटली राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा इसीलिए है क्योंकि एक राजनीतिक दल की चेयरपर्सन रही महिला इटली की है। अब भी यह मामला उछलता है। चूंकि विरुष्का मामले में इटली में कोई राजनीतिक लाभ दिखाई नहीं देता। इसीलिए चुप्पी साधने तथा जो बोला उसको मुंह बंद रखने की नसीहत दे दी गई। इटली प्रकरण से इतना तो तय है कि राजनीतिक दल एक ही शब्द को अपने हित के लिए इस्तेमाल भी करते हैं और जहां हित नहीं वहां उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर देते हैं। शायद अवसरवादिता इसी का नाम है। और हां कार्टूनिस्ट ने भी बात जोरदार कही कि किसी ने इटली को एक पार्टी अध्यक्ष का ननिहाल नहीं बताया वरना नवदंपती पर पार्टी विशेष की विचारधारा का पौषक होने का ठपा चस्पा जरूर कर देता...।
इटली इन दिनों फिर चर्चा में है। वैसे तो इटली को चुनाव के दौरान खूब भुनाया जाता है। इटली बाकायदा मुद्दा भी बनता है। विदेशी और देशी का नारा देकर मतदाताओं को रिझाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। खैर, इन दिनों चर्चा इस बात की है कि भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली व सिनेतारिका अनुष्का शर्मा ने शादी के लिए इटली को चुना। उनको भारत में एेसी कोई जगह पसंद नहीं जहां यह सात फेरे ले सकें। वैसे यह बड़ा मामला है भी नहीं। बड़ी बात यह है कि गाहे-बगाहे इटली को चुनावी मुद्दा बनाने वाली पार्टी के एक विधायक ने विराट अनुष्का की देशभक्ति पर सवाल उठा दिया। पार्टी अध्यक्ष ने भी स्पष्टीकरण जारी किया कि पार्टी का कोई व्यक्ति विधायक के बयान से इतफाक नहीं रखता है। इधर विधायक ने भी अपनी पार्टी से इस बात के लिए माफी मांगकर कहा कि उनका आशय यह नहीं था। वैसे राजनीति में यह विडंबना है कि किसी का बयान हिट हो जाए तो वह दौड़ जाता है और अगर थोड़ा सा ही विवादित हुआ तो व्यक्तिगत राय बताकर झट से किनारा कर लिया जाता है।
सच तो यह है कि इस हाइटेक शादी के साथ इटली का नाम जुडऩे पर मेरे जेहन में जरूर यह बात थी कि इस मसले पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया आई क्यों नहीं? मैं भी इस पर कुछ लिखने का मानस बना रहा था कि लेकिन अति व्यस्तता के चलते विचारों को शब्दों का जामा नहीं पहना पाया। आज इस विषय पर एक कार्टून देखा तो फिर तय किया कि चलो लिखा ही जाए। खैर, मेरा मानना है कि इटली राजनीतिक दलों के लिए मुद्दा इसीलिए है क्योंकि एक राजनीतिक दल की चेयरपर्सन रही महिला इटली की है। अब भी यह मामला उछलता है। चूंकि विरुष्का मामले में इटली में कोई राजनीतिक लाभ दिखाई नहीं देता। इसीलिए चुप्पी साधने तथा जो बोला उसको मुंह बंद रखने की नसीहत दे दी गई। इटली प्रकरण से इतना तो तय है कि राजनीतिक दल एक ही शब्द को अपने हित के लिए इस्तेमाल भी करते हैं और जहां हित नहीं वहां उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर देते हैं। शायद अवसरवादिता इसी का नाम है। और हां कार्टूनिस्ट ने भी बात जोरदार कही कि किसी ने इटली को एक पार्टी अध्यक्ष का ननिहाल नहीं बताया वरना नवदंपती पर पार्टी विशेष की विचारधारा का पौषक होने का ठपा चस्पा जरूर कर देता...।
No comments:
Post a Comment