🔺राजनीतिक नौटंकी
श्रीगंगानगर में इन दिनों राजनीतिक नौटंकी का तो कहना ही क्या? विशेषकर नगर परिषद के संदर्भ में तो इतना घालमेल है कि तय कर पाना ही मुश्किल है कि कौन किस पार्टी में है तथा कौन किसका समर्थन कर रहा है? मामला राज्य सरकार के चार साल पूर्ण होने पर आयोजित जलसे का है। इसमें नगर परिषद सभापति भी मौजूद रहे। भाजपा के कार्यक्रम में सभापति की उपस्थिति इसीलिए चौंकाती है कि दो दिन पहले ही भाजपा परिषद में अपनी पार्टी का नेता प्रतिपक्ष चुनती है और फिर सभापति से भी नजदीकियां बढ़ाती हैं। भाजपा की इस भूमिका से तो राजस्थानी कहावत 'जिसको देखने से ही बुखार चढ़े और वो ही ब्याहने (शादी) आ जाए' चरितार्थ हो रही है। खैर, ये जो पब्लिक है, वह इस तालमेल से हो रहे घालमेल को जानती है और समझती भी है।
🔺'सम्मान' के मायने
श्रीगंगानगर के युवाओं की सेना में भागीदारी कम है, लेकिन सेना के प्रति भावना जरूर जुड़ी है। यही कारण है कि सेना से जुड़े कार्यक्रम यहां शिद्दत से मनाए जाते हैं। चाहे कारगिल दिवस हो या विजय दिवस। हर साल कार्यक्रम होते हैं। स्कूली बच्चे जुड़ते हैं। सेना के अफसर व जवान भी आते हैं। पूर्व सैनिकों व वीरांगनाओं का सम्मान होता है। युवाओं का सेना के प्रति रुझान हो, इसके लिए कई तरह की घोषणाएं भी की जाती हैं। इस बार विजय दिवस पर एक नई बात यह हुई कि खबरनवीसों का भी बाकायदा सम्मान किया गया। अब सम्मान क्यों व किसलिए किया गया, यह तो आयोजक ही बेहतर जानते हैं, क्योंकि सम्मानित होने वाले खबरनवीस भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उनको यह सम्मान किस योगदान के लिए दिया गया? वैसे इस फ्री के सम्मान के मायने तो हैं।
श्रीगंगानगर के युवाओं की सेना में भागीदारी कम है, लेकिन सेना के प्रति भावना जरूर जुड़ी है। यही कारण है कि सेना से जुड़े कार्यक्रम यहां शिद्दत से मनाए जाते हैं। चाहे कारगिल दिवस हो या विजय दिवस। हर साल कार्यक्रम होते हैं। स्कूली बच्चे जुड़ते हैं। सेना के अफसर व जवान भी आते हैं। पूर्व सैनिकों व वीरांगनाओं का सम्मान होता है। युवाओं का सेना के प्रति रुझान हो, इसके लिए कई तरह की घोषणाएं भी की जाती हैं। इस बार विजय दिवस पर एक नई बात यह हुई कि खबरनवीसों का भी बाकायदा सम्मान किया गया। अब सम्मान क्यों व किसलिए किया गया, यह तो आयोजक ही बेहतर जानते हैं, क्योंकि सम्मानित होने वाले खबरनवीस भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उनको यह सम्मान किस योगदान के लिए दिया गया? वैसे इस फ्री के सम्मान के मायने तो हैं।
🔺नया साल और बधाई
नया साल श्रीगंगानगर के लिए कुछ अलग होता है। नया साल आते-आते प्रमुख चौक व चौराहे बदरंग हो जाते हैं। हर कोई बड़े-बड़े पोस्टर व होर्डिंग बनाकर नए साल के बधाई संदेश देने में लगा रहता है। सबमें एक तरह से होड़ सी लग जाती है। यह हाल जिला मुख्यालय से लेकर छोटे कस्बों व गांवों तक दिखाई देता है। शहर कस्बों को बदरंग करने का यह काम बेरोक-टोक होता है। मनमर्जी से लगाए गए इन पोस्टर व होर्डिंग्स पर शायद ही कार्रवाई होती है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यह सब शह और मिलीभगत का खेल है। चर्चाएं तो यहां तक होती हैं कि राजकोष में जाने वाली राशि जेबों में जाती है, इसलिए शहरों को बदरंग होने से बचाए कौन? जो भी है, हालात देखते हुए चर्चाओं में दम तो नजर आता है।
नया साल श्रीगंगानगर के लिए कुछ अलग होता है। नया साल आते-आते प्रमुख चौक व चौराहे बदरंग हो जाते हैं। हर कोई बड़े-बड़े पोस्टर व होर्डिंग बनाकर नए साल के बधाई संदेश देने में लगा रहता है। सबमें एक तरह से होड़ सी लग जाती है। यह हाल जिला मुख्यालय से लेकर छोटे कस्बों व गांवों तक दिखाई देता है। शहर कस्बों को बदरंग करने का यह काम बेरोक-टोक होता है। मनमर्जी से लगाए गए इन पोस्टर व होर्डिंग्स पर शायद ही कार्रवाई होती है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यह सब शह और मिलीभगत का खेल है। चर्चाएं तो यहां तक होती हैं कि राजकोष में जाने वाली राशि जेबों में जाती है, इसलिए शहरों को बदरंग होने से बचाए कौन? जो भी है, हालात देखते हुए चर्चाओं में दम तो नजर आता है।
🔺विपक्ष गायब
हो सकता है यह सब सुनकर आप या तो हंसें या फिर अचंभा करें। बात यह है कि श्रीगंगानगर शहर की सरकार में विपक्ष ही नहीं है। यहां की सरकार सभी के रहमो-करम पर चल रही है। मौजूदा सभापति भाजपा के बागी हैं और भाजपा से बगावत कर सभापति बने, लेकिन पार्टी उनको गाहे-बगाहे गले लगाती रही है। इतना नहीं, इधर कांग्रेसी भी सभापति को अपना ही मानते हैं। वे दलील देते हैं कि उनके पार्षदों के समर्थन के दम पर ही तो सभापति काबिज हैं। अब आम आदमी यह सियासी समीकरण समझ नहीं पा रहा है कि सत्ता में कौन है और विपक्ष में कौन? ऐसे हालात में कौन किसका विरोध करेगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इसी घालमेल का खमियाजा ही शहर भुगत रहा है, तभी तो बदहाली व बदइंतजामी के भंवर में फंसा है।
हो सकता है यह सब सुनकर आप या तो हंसें या फिर अचंभा करें। बात यह है कि श्रीगंगानगर शहर की सरकार में विपक्ष ही नहीं है। यहां की सरकार सभी के रहमो-करम पर चल रही है। मौजूदा सभापति भाजपा के बागी हैं और भाजपा से बगावत कर सभापति बने, लेकिन पार्टी उनको गाहे-बगाहे गले लगाती रही है। इतना नहीं, इधर कांग्रेसी भी सभापति को अपना ही मानते हैं। वे दलील देते हैं कि उनके पार्षदों के समर्थन के दम पर ही तो सभापति काबिज हैं। अब आम आदमी यह सियासी समीकरण समझ नहीं पा रहा है कि सत्ता में कौन है और विपक्ष में कौन? ऐसे हालात में कौन किसका विरोध करेगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इसी घालमेल का खमियाजा ही शहर भुगत रहा है, तभी तो बदहाली व बदइंतजामी के भंवर में फंसा है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 21 दिसंबर 17 के अंक में प्रकाशित..।
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