Saturday, August 4, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-12

संस्मरण
हम लोग रॉक गार्डन काफी कुछ घूम चुके थे लेकिन अब भी जो बचा था वो वह भी अजूबा संसार था। टाइल्स, चूडियों व कंचों से न जाने कितनी तरह की कलाकृतियां बनाई गई है यहां। कितना समय लगा होगा इन सबको बनाने में। कहीं महिलाएं तो कहीं पुरुष। कहीं जंगली जानवर तो कहीं परिंदे। वह भी कोई एक दो दिन नहीं बल्कि काफी संख्या में। मैं समझ नहीं पा रहा था किसको कैमरे में कैद करूं और किसको छोडूं। धूप व उसम के बावजूद मैं लगातार फोटो खिंचने में लगा था। घूमावदार रास्तों के बीच हम आगे से आगे बढ़े जा रहे थे। पता नहीं था कि कितना देख चुके और कितना बाकी है। भानजा कुलदीप व भतीजा सिद्धार्थ यहां पूर्व में आ चुके, लिहाजा उनको रास्ता मालूम था, वरना मैं तो इस भूल भुलैया में दिनभर भटकता ही रहता। चूंकि हम जल्दी में थे इसलिए तमाम फोटो जल्दबाजी में ही खींचे। कोई एंगल वगैरह नहीं देखा गया। बिलकुल फ्लैट फोटो। हालांकि फोटोग्राफी का शौक भी है। मैं अक्सर फोटो व खबरों में हमेशा नया करने या अलग एंगल तलाशता रहता हूं लेकिन यहां मुझे समझौता करना पड़ा। तेज कदमों से चलना भी जारी था और क्लिक दर क्लिक भी किए जा रहा था। पसीने से टोपी, टीर्शट व जींस भीग चुके थे। मुझे मोबाइल की बैटरी की चिंता थी, हालांकि पावर बैंक था लेकिन वह घर रह गया था। इन कलाकृतियों के बीच एक यकायक नजर एक आदमी की कलाकृति पर पड़ी, जिसके एक हाथ में बीयर की बोतल व दूसरे में कप पकड़ाया गया था। चूंकि चंडीगढ़ खाने-पीने के शौकीनों का शहर है, इसलिए नेकचंद के जेहन में भी कहीं न कहीं यह बात जरूर रही होगी। खैर, इस नजारे को भी मैंने क्लिक किया। अब हम अंतिम चरण में थे। रॉक गार्डन की सैर पूर्ण होने को थी। करीब डेढ़ से दो घंटे में लगभग भागते हुए हमने रॉक गार्डन को देखा। तसल्ली से देखते तो शायद एक दिन भी कम पड़ता।
क्रमश:

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