Saturday, August 4, 2018

चिराग तले अंधेरा

टिप्पणी 
श्रीगंगानगर से कोच्चुवेली के लिए सुपर फास्ट ट्रेन का उद्घाटन मंगलवार को हुआ। दरअसल, यह ट्रेन पहले बीकानेर से चलती थी, अब इसका फेरा बढ़ाकर श्रीगंगानगर से कर दिया गया है। इसी माह 11 अगस्त को श्रीगंगानगर से नांदेड़ के लिए भी नई ट्रेन का उद्घाटन होगा। कुछ दिन पहले बीकानेर-बिलासपुर ट्रेन की शुरूआत हो चुकी है। इससे पहले श्रीगंगानगर से तिरुचिरपल्ली के बीच भी हमसफर ट्रेन चली थी। इस तरह से कुछ समय के अंतराल में लंबी दूरी की चार ट्रेन श्रीगंगानगर को मिल चुकी हैं और सभी साप्ताहिक हैं। इसके अलावा श्रीगंगानगर से कुछ पैंसेजर ट्रेनों का संचालन भी शुरू हुआ। इतना कुछ करने के बावजूद रेलवे चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है।
आज भी श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ के लोग एक ऐसी ट्रेन की इच्छा रखते हैं जो रोजाना जयपुर कम समय में पहुंचा सके। वर्तमान में इन दोनों जिलों के यात्रियों के लिए कोटा-श्रीगंगानगर इंटरसिटी एक्सप्रेस है, जो बीकानेर, नागौर आदि स्थानों से होकर जयपुर पहुंचती है। इस ट्रेन की सबसे बड़ी समस्या समय की है। हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर से जयपुर के बीच चलने वाली निजी बसों के मुकाबले इस ट्रेन में चार-पांच घंटे ज्यादा लगते हैं। समय की बचत मानिए या मजबूरी कि यात्री ज्यादा किराया देकर प्राइवेट बसों में सफर करते हैं। रेलवे चाहे तो इन यात्रियों की परेशानी का काफी हद तक समाधान कर सकता है। श्रीगंगानगर से सीकर तक रेलवे ट्रेक बन चुका है और वहां रेलों का संचालन भी होता है। अगर रेलवे सीकर तक सीधी रेल सेवा शुरू करता है तो दोनों जिले के यात्रियों को बड़ा फायदा होगा। इस संबंध में प्रस्ताव भी पारित है लेकिन पता नहीं है, ऐसी क्या वजह है कि रेलवे ने इस तरफ आंखें मूंद रखी हैं। सीकर से जयपुर के बीच आमान परिवर्तन का काम भी बेहद धीमा है। यह भी अपने आप में जांच का विषय है। यह भी सही है कि श्रीगंगानगर जिले में जो रेल सेवाएं नई शुरू हुई हैं, उनमें जनहित के बजाय रेलवे का हित ज्यादा जुड़ा है। वाशिंग लाइन इसकी बड़ी वजह है। समय के साथ लंबी दूरी की रेल सेवा भी जरूरी है लेकिन इसका यह मतलब तो कतई नहीं कि राज्य के भीतर सफर करने वालों को कुछ नहीं मिले। कम दूरी के यात्रियों की परेशानी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए रेलवे व जनप्रतिनितिधि इस ओर भी ध्यान देंगे, क्योंकि इंतजार बहुत लंबा हो चला है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 02 अगस्त 18 के अंक में प्रकाशित.

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