Tuesday, December 31, 2019

यह भेदभाव ही तो है!



टिप्पणी
कडक़ड़ाती सर्दी के बीच जब स्कूलों का समय बदल दिया गया है। असहाय लोगों के लिए रैन बसेरे शुरू कर दिए गए हैं। जगह-जगह स्वयंसेवी संगठनों की ओर से जरूरतमंदों को कंबल और ऊनी कपड़े वितरित किए जा रहे हैं। अलाव के लिए सूखी लकडि़यों की व्यवस्था की जा रही है। एेसे सर्द मौसम में नगर विकास न्यास अमले को अचानक अतिक्रमण हटाने की याद आ गई। घने कोहरे व शीतलहर के बीच खुले आसमान के तले जीवन-यापन करने वाले परिवारों को मंगलवार सुबह बेदखल कर दिया गया।
यह लोग मॉडल टाउन स्थित नगर विकास न्यास कार्यालय के आसपास खाली भूखंडों में लंबे समय से कब्जा करके रह रहे थे। एेसे प्रतिकूल मौसम में कार्रवाई के लिए यूआईटी प्रशासन निसंदेह बधाई का पात्र तो है ही। बड़ी बात तो यह है कि सुबह-सुबह बिना किसी रुकावट के पुलिस बल भी मिल गया। लंबे समय से स्थानीय लोगों की ओर से यह अतिक्रमण हटाने की मांग की जा रही थी। यूआईटी प्रशासन ने स्थानीय लोगों की बात को माना या अंदरखाने कोई दूसरी वजह या फिर कोई ऊपर दवाब था, यह अलग विषय है लेकिन कब्जा हटवाकर भूखंड खाली करवा लिए। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। फिर भी मानवीय संवेदना से परिपूर्ण लोगों को यह कार्रवाई अखर सकती है। मासूम बच्चों को सर्दी में बेदखल करने से उनका दिल पसीज सकता है। हो सकता है इन झुग्गी झौपडि़यों वाले के समर्थन में कोई रहनुमा ही खड़ा हो जाए। धरना-प्रदर्शन तक करवा दे। वैसे भी शहर में गरीबों के समर्थन में खड़े होने वाले व सहानुभूति जताने वालों की कमी नहीं है। यूआईटी के आसपास वैसे भी कब्जा कर बैठे लोगों की कहानी भी तो कुछ एेसी ही है। हैरानी की बात है कि यूआईटी ने अपने बगल के कब्जे और ठीक पीछे बंद की गई गली को भुलाकर या इनकी तरफ आंख मंूदकर यह अतिक्रमण हटाया। क्या यूआईटी के जिम्मेदार अफसर यह बता सकते हैं कि वो अपने आसपास काबिज लोगों का समाधान कब तक खोजेंगे?
जनहित में अतिक्रमण हटने चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन अतिक्रमण हटाने के तौर-तरीके सही न हो तो उनको विवादास्पद होते देर नहीं लगती। यूआईटी अधिकारियों को गरीब झुग्गी झौपड़ी वाले तो अखर गए लेकिन शिव चौक से अस्पताल तक सडक़ किनारे ट्रक खड़े करने वाले दिखाई क्यों नहीं देते? दिन भर सडक़ों पर सीमेंट, रेता व बजरी का कारोबार करने वाले नजर क्यों नहीं आते? अस्थायी बाजार को यूआईटी के अफसर क्यों नजरअंदाज कर देते हैं? सडक़ पर टेम्पो-ट्रैक्टर खड़े करने की इजाजत किसने दी? इतना ही नहीं यूआईटी के अधीन कॉलोनी आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रही है। खुद यूआईटी कार्यालय के नाक के नीचे बना पार्क बदहाल है।
बहरहाल, यूआईटी के अधिकारी अतिक्रमण हटाने के प्रति समभाव रखते हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही शिव चौक से जिला अस्पताल तक सडक़ भी अतिक्रमण मुक्त होगी। सर्दी के मौसम में शुरू हुए अभियान में अब मौसम या पुलिस संबंधी कोई बाधा नहीं आएगी। यूआईटी कार्यालय के आसपास का इलाका भी अतिक्रमण मुक्त होगा। पीछे बंद की गई गली भी खुल जाएगी। और यह सब नहीं हुआ तो यह एक तरह का भेदभाव ही हुआ। साथ में यह भी तय मानिए कि अतिक्रमण करने वालों के सामने यूआईटी प्रशासन किसी न किसी तरह से नतमस्तक है।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 25 दिसंबर के अंक में प्रकाशित  टिप्पणी..।

No comments:

Post a Comment