बस यूं ही
पंचायत चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। आरक्षण लॉटरी निकलने के बाद भावी प्रत्याशी सामने आने लगे हैं। रुठने-मनाने का दौर भी अंदरखाने चल रहा है। शह और मात की रणनीतियां बन रही है। हार-जीत के समीकरण तय हो रहे हैं। महिला उम्मीदवारों को लेकर तो कई तरह के चुटकुले और जुमले बन चुके हैं। सोशल मीडिया पर कविताओं व किस्सागोई की भरमार है। वैसे राज और वोट को लेकर महिलाओं पर राजस्थानी में फिल्में भी बनती रही हैं। बानगी के रूप में घर मं राज लुगायां को, बीनणी वोट देबा चाली आदि को गिना जा सकता है। पंचायत चुनाव को देखते हुए यह नाम फिर मौजूं हो चले हैं। पंचायत चुनाव के साथ महिलाओं का जिक्र इसीलिए भी क्योंकि कई पुरुषों ने पांच साल मैदान तैयार किया लेकिन आरक्षण ने उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया। उनके हसीन सपनों को दिनदहाडे तोड़ दिया। यह समस्या विशेषकर कुंवारे लोगों को ज्यादा भोगनी पड़ी है। क्योंकि जो शादीशुदा थे उन्होंने तो खुद का नंबर नहीं आया तो पत्नी का नाम चला दिया लेकिन कुंवारे तो कुंवारे ही ठहरे, आखिर किसका नाम चलाएं।
खैर, इन सबके बीच मेरी पंचायत केहरपुरा कलां में इस बार मुकाबला रोचक होने जा रहा है। रोचक इसलिए कि ग्राम पंचायत की कमान भी इस बार महिला के हाथ में होगी। मतलब सरपंच महिला होगी। इतना ही नहीं देश की राजनीति में भले ही महिलाओं की भागदारी 33 फीसदी भी न हो लेकिन मेरी पंचायत में यह आंकड़ा पचास फीसदी से भी ज्यादा जाएगा। मतलब सही मायनों में गांव की सरकार महिलाओं के हाथ होगी। अब घर मं राज लुगायां को की जगह पंचायत मं राज लुगाया को कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। मतलब साफ है कि पंचायत में दो तिहाई के करीब महिला जनप्रतिनिधि बैठेंगी। केहरपुरा कलां ग्राम पंचायत में सरपंच के साथ 11 पंच भी निर्वाचित होंगे। अगर पंचों के आरक्षण पर नजर डाली जाए तो इनमें सात महिलाएं पंच बनेंगी। इनमें चार पंच सामान्य महिला, दो एससी महिला एवं एक ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है। इस तरह से 11 से में सात महिलाएं पंच चुनी जाएंगी। इस तरह से पूरी पंचायत के 12 जनप्रतिनिधियों में आठ महिलाएं होगी। संभवत: ग्राम पंचायत के इतिहास में एेसा पहली बार होगा जब आठ महिलाओं के हाथ गांव के विकास की बागडोर होगी। और आयो राज लुगायां को, वाला जुमला भी चरितार्थ होगा। देखना यह भी रोचक होगा कि आखिर 12 महिलाओं के बीच चार पुरुषों की आवाज किस तरह से सुनी जाएगी।
पंचायत चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। आरक्षण लॉटरी निकलने के बाद भावी प्रत्याशी सामने आने लगे हैं। रुठने-मनाने का दौर भी अंदरखाने चल रहा है। शह और मात की रणनीतियां बन रही है। हार-जीत के समीकरण तय हो रहे हैं। महिला उम्मीदवारों को लेकर तो कई तरह के चुटकुले और जुमले बन चुके हैं। सोशल मीडिया पर कविताओं व किस्सागोई की भरमार है। वैसे राज और वोट को लेकर महिलाओं पर राजस्थानी में फिल्में भी बनती रही हैं। बानगी के रूप में घर मं राज लुगायां को, बीनणी वोट देबा चाली आदि को गिना जा सकता है। पंचायत चुनाव को देखते हुए यह नाम फिर मौजूं हो चले हैं। पंचायत चुनाव के साथ महिलाओं का जिक्र इसीलिए भी क्योंकि कई पुरुषों ने पांच साल मैदान तैयार किया लेकिन आरक्षण ने उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया। उनके हसीन सपनों को दिनदहाडे तोड़ दिया। यह समस्या विशेषकर कुंवारे लोगों को ज्यादा भोगनी पड़ी है। क्योंकि जो शादीशुदा थे उन्होंने तो खुद का नंबर नहीं आया तो पत्नी का नाम चला दिया लेकिन कुंवारे तो कुंवारे ही ठहरे, आखिर किसका नाम चलाएं।
खैर, इन सबके बीच मेरी पंचायत केहरपुरा कलां में इस बार मुकाबला रोचक होने जा रहा है। रोचक इसलिए कि ग्राम पंचायत की कमान भी इस बार महिला के हाथ में होगी। मतलब सरपंच महिला होगी। इतना ही नहीं देश की राजनीति में भले ही महिलाओं की भागदारी 33 फीसदी भी न हो लेकिन मेरी पंचायत में यह आंकड़ा पचास फीसदी से भी ज्यादा जाएगा। मतलब सही मायनों में गांव की सरकार महिलाओं के हाथ होगी। अब घर मं राज लुगायां को की जगह पंचायत मं राज लुगाया को कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। मतलब साफ है कि पंचायत में दो तिहाई के करीब महिला जनप्रतिनिधि बैठेंगी। केहरपुरा कलां ग्राम पंचायत में सरपंच के साथ 11 पंच भी निर्वाचित होंगे। अगर पंचों के आरक्षण पर नजर डाली जाए तो इनमें सात महिलाएं पंच बनेंगी। इनमें चार पंच सामान्य महिला, दो एससी महिला एवं एक ओबीसी महिला के लिए आरक्षित है। इस तरह से 11 से में सात महिलाएं पंच चुनी जाएंगी। इस तरह से पूरी पंचायत के 12 जनप्रतिनिधियों में आठ महिलाएं होगी। संभवत: ग्राम पंचायत के इतिहास में एेसा पहली बार होगा जब आठ महिलाओं के हाथ गांव के विकास की बागडोर होगी। और आयो राज लुगायां को, वाला जुमला भी चरितार्थ होगा। देखना यह भी रोचक होगा कि आखिर 12 महिलाओं के बीच चार पुरुषों की आवाज किस तरह से सुनी जाएगी।
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