Tuesday, December 31, 2019

हादसों पर अंकुश कब

टिप्पणी.
शहर में एक हादसा फिर हो गया। सोमवार सुबह एक मोटरसाइकिल सवार युवक स्कूल बस की चपेट में आकर जान गंवा बैठा। वहीं 16 दिसम्बर की रात को पशु से टकराकर एक स्कूटी सवार युवती जान गंवा बैठी। हादसे रोज होते हैं लेकिन सप्ताहभर में हुए इन दो हादसों में कहीं न कहीं व्यवस्था का दोष है।
बेलगाम यातायात और आवारा पशु। इन दो समस्याओं के प्रति पता नहीं क्यों यहां के नेताओं और अफसरों ने आंखें मंूद रखी हैं। लगातार हादसों के बावजूद शासन-प्रशासन के पास इन दो समस्याओं का कोई ठोस समाधान नहीं है। हादसों के प्रति उनकी भूमिका से लगता नहीं कि हादसे उनको डराते या चौंकाते भी हैं। हां कागजी निर्देश और औपचारिकता वाले अभियान गाहे-बगाहे जरूर चलते हैं लेकिन गंभीरता से समस्याओं का समाधान नहीं खोजा जाता। निराश्रित पशुओं की समस्या को तो एक तरह से भुला ही दिया गया है। कार्यभार ग्रहण करते समय जिला कलक्टर ने जरूर थोड़ी बहुत गंभीरता दिखाई लेकिन अब मामला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में हैं। जनप्रतिनिधि हादसों पर तात्कालिक प्रतिक्रियास्वरूप सहानुभूति जरूर जता आते हैं लेकिन वो भी ऐसे मामलों में अक्सर चुप ही रहते हैं। निराश्रित पशु तो शहर में घूम ही रहे हैं, रात में तो पालतू भैंसें भी विचरण करती दिखाई दे जाती हैं। कौन रोकेगा इनको? इनके मालिकों में किसी तरह का डर क्यों नहीं हैं? डर इसलिए नहीं है कि शासन-प्रशासन कोई हरकत ही नहीं करते। वरना किसी की क्या मजाल जो अपने मवेशियों को खुला छोडऩे की हिमाकत दिखाए। यह प्रशासनिक कमजोरी का ही परिणाम है कि पालतू पशु भी शहर में खुले घूमते हैं।
यातायात व्यवस्था तो दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। नासूर के रूप में तब्दील हो रही है। जिम्मेदार इस बदहाली को दूर करने के बजाय इसको बिगाडऩे में लगे हैं। चौक-चौराहों पर पसरे अतिक्रमणों को पता नहीं क्यों अभयदान दे रखा है। सडक़ रोककर कारोबार करने वालों का प्र्रशासन से पता नहीं कौनसा व कैसा रिश्ता है या गुप्त समझौता है जो इनको हटाया नहीं जा रहा। शिव चौक के पास तो सडक़ किनारे ही बाजार लगाने की अनुमति दे दी गई। यहां आधा बाजार तो सडक़ पर सजा है। हर रविवार को भी यहां सडक़ रोककर बाजार सजता है। क्यों नहीं रोका जा रहा इनको? क्यों नहीं होती इन पर कार्रवाई?
बहरहाल, अगर शहर के मौजूदा हालात में सुधार नहीं होता तो तय मानिए हादसे कम नहीं होंगे। जिम्मदारों, शासन-प्रशासन को अपनी भूमिका का निर्वहन ईमानदारी से करना चाहिए ताकि व्यवस्था में सुधार हो। आमतौर पर जनहित से जुड़े मामलों में चुप्पी साधने वाले शहर के जागरूक लोगों को भी जागना होगा। अगर सभी इस तरह नींद में गाफिल रहे तो सुधार नहीं होने वाला। जिस गति से शहर बढ़ रहा है। वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उसको देखते हुए अब कमर कसने का वक्त आ गया है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 24 दिसंबर के अंक में प्रकाशित

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