टिप्पणी
रोज-रोज पैदल चल लम्बा सफर तय कर स्कूल जाने की मजबूरी और शोहदों से फब्तियां सुनने की लाचारी से आजिज आ चुकी नेहा ने आखिर समस्या की मूल जड़ पर ही चोट करने का फैसला किया। उसे भली-भांति मालूम था कि इन दोनों समस्याओं के पीछे प्रमुख कारण अतिक्रमण ही है। उसने हिम्मत जुटाई और सांसद द्वारा किए गए अतिक्रमण की शिकायत करके ही दम लिया। दुर्ग शहर की न्यू पुलिस कॉलोनी में रहने वाली कक्षा आठ की छात्रा नेहा ने वाकई साहसिक काम किया है। नेहा का यह काम अपने आप में बहुत बड़ा है। समाज के जागरूक लोगों को आईना दिखाकर उसने न केवल एक मिसाल कायम की है, बल्कि सुस्त समाज को जगाने की दिशा में एक अनूठी सीख भी दी है। नेहा ने यह साबित कर दिया है कि इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। निसंदेह नेहा ने सियासी भंवर में फंसे उदासीन शहर को झिाझाोड़ दिया है। नेहा का पत्र सोचने को मजबूर करता है और समाज की कड़वी हकीकत को भी बयां करता है। दरअसल, दुर्ग में लोगों की सहनशीलता इस कदर बढ़ गई है कि कोई मुंह खोलना ही नहीं चाहता। इसी वजह से जिम्मेदार व प्रभावशाली लोग जो चाहे वो करने की जुर्रत कर बैठते हैं। कभी-कभार किसी ने हिम्मत भी दिखाई तो पंगु प्रशासन से किसी तरह का सहयोग नहीं मिला। सांसद के अतिक्रमण की दबे स्वर में एक-दो लोगों ने पहले शिकायत की थी, लेकिन उनको अनुसना कर दिया गया। वैसे भी यह अतिक्रमण कोई रातोरात नहीं हुआ था। दो साल से अधिक समय हो गया था। ऐसे में इस बात की संभावना बेहद कम है कि शासन-प्रशासन को इसकी जानकारी न हो। और इससे भी गंभीर बात तो यह है कि गाहे-बगाहे अनूठे प्रदर्शन कर सस्ती लोकप्रियता पाने वाले भी इस मामले में अब तक खामोश ही रहे। उनको इस बात की जानकारी कैसे नहीं मिली यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है।
वैसे भी शासन-प्रशासन के लिए इस अतिक्रमण को हटाना किसी चुनौती से कम नहीं है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि वह नेहा की हिम्मत की दाद देते हुए अतिक्रमण के मामले में कार्रवाई करे। सुराज का मतलब भी तभी है। और इधर खुद को जनप्रतिनिधि कहलाने में गर्व महसूस करने वाली सांसद को भी महिला होने के नाते नेहा और उस जैसी कई लड़कियों की मजबूरी को समझना चाहिए। प्रशासन कोई कार्रवाई करे, इससे पहले सांसद को अपना अतिक्रमण हटा कर एक नजीर पेश करनी चाहिए।
साभार - पत्रिका भिलाई के 26 नवम्बर 12 के अंक में प्रकाशित
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