Thursday, February 14, 2019

2019 में हों यह 19 काम तो श्रीगंगानगर बने ‘चंडीगढ़ का बच्चा’

21वीं सदी के 18 साल पूर्ण हो गए। मंगलवार से 19वां साल लग रहा है। सदी के बीते अठारह साल मतलब श्रीगंगानगर के अतीत पर नजर डाली जाए तो हालात संतोषजनक दिखाई नहीं देते। समय- समय पर श्रीगंगानगर को ‘चंडीगढ़ का बच्चा’ या ‘चंडीगढ़ का बाप’ बनाने की बातें तो खूब हुई लेकिन व्यवस्था दिनोदिन पटरी से उतरती ही गई। आज हालात विकट हो चले हैं। खैर, इन सबके बीच नया साल कुछ नया करने की प्रेरणा देता है। साल की शुरुआत में संकल्प भी होते हैं। संकल्प होने भी चाहिए लेकिन उनको पूरा करने की ईमानदार कोशिश बेहद जरूरी है। श्रीगंगानगर के लिए भी बहुत से संकल्प हैं, जो पूरे हो जाएं तो यकीनन लोग खुद काफी राहत महसूस करेंगे। वैसे श्रीगंगानगर से संबंधित संकल्प लगभग पुराने हैं। यह संकल्प हर बार दोहराए जाते हैं पर इनका पूरा न होना अफसोसजनक है। पूरा न होने का आशय यह भी नहीं है कि इनको पूरा नहीं किया जा सकता। इसके लिए दृढ इच्छा शक्ति की जरूरत है। आपस में सहयोग व तालमेल की आवश्यकता है। उम्मीद इसीलिए ज्यादा है कि राज्य में नई सरकार का गठन हुआ है। शहर को नया विधायक मिला है। इतना ही नहीं है नया साल आते-आते जिला कलक्टर भी नए आ गए हैं। 19 का साल है लिहाजा शहर से जुड़े 19 मसलों पर प्रभावी व ईमानदारी से काम हो तो यकीनन श्रीगंगानगर को ‘चंडीगढ़ का बच्चा’ या ‘चंडीगढ़ का बाप’ बनाने की दिशा में जो बाधाएं वह सब दूर हो जाएंगी।
1. अतिक्रमण
वर्तमान में श्रीगंगानगर की सबसे बड़ी समस्या है तो वह है अतिक्रमण। इस अतिक्रमण के कारण शहर की सडक़ें संकरी हो रही हैं। बाजारों में अस्थायी अतिक्रमण के कारण आवागमन बाधित हो रहा है। अतिक्रमण यूआईटी व नगर परिषद दोनों क्षेत्रों में है। इसके समाधान के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए। एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के आदेशानुसार अतिक्रमण हटा लेकिन वह भी आधा अधूरा ही हटा। नगर परिषद, यूआईटी व प्रशासिनक अमला अतिक्रमण के प्रति गंभीर नजर नहीं आता है। यही कारण है हालात दिन प्रतिदिन बदत्तर होते जा रहे हैं।
2. पार्किंग
अतिक्रमण के बाद शहर की दूसरी बड़ी समस्या पार्किंग हैं। या यूं कह सकते हैं कि शहर में पार्किंग के लिए कोई जगह ही चयनित नहीं है। चौपहिया हो या दुपहिया, सभी वाहन सडक़ों पर खड़े होते हैं। यह समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन इसका स्थायी समाधान नहीं खोजा गया है। जब तक शहर में पार्किंग के लिए जगह नहीं तलाशी जाएगी तब तक यह समस्या बढ़ती ही जाएगी। हाल ही में व्यापारियों ने पार्किंग व्यवस्था के लिए प्रस्ताव तैयार करने की बात कही है। इस तरह के प्रस्ताव जल्दी से जल्दी बनें और उनका अमल में आना समय की मांग है और शहर के हित में भी है।
3. सफाई
नगर परिषद के तमाम दावों के बावजूद शहर की सफाई व्यवस्था संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। कई स्थानों पर कचरे का नियमित उठाव भी नहीं होता है। शहर की सफाई व्यवस्था सही न होने के कारण अक्सर श्रीगंगानगर को गंदानगर भी कह दिया जाता है। नालियों की सफाई भी नियमित नहीं होती है। अक्सर उनका गंदा पानी सडक़ों पर बहता है। सूरतगढ़ रोड पर भरे गंदे पानी का निस्तारण होने से जरूर लोगों को राहत मिली है। लेकिन इस तरह के गड्ढे शहर में भी है। गंदे पानी के जमाव से शहर में मक्खी मच्छर भी खूब हैं। साफ-सफाई के लिए गंभीरता से प्रयास करने होंगे।
4. आवारा पशु
शहर की सफाई तथा यातायात व्यवस्था को भंग करने में आवारा पशुओं का भी योगदान है। इन आवारा पशुओं के कारण शहर में आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती है। हादसों के वक्त प्रशासन जरूर हरकत में आता है लेकिन उसके बाद पशु उसी अंदाज में विचरण करते हैं। इतना ही नहीं पशुओं को चारा डालने की टाले भी शहर के बीच संचालित हो रही है, उनसे चारा लेकर वहीं डाल दिया जाता है। इससे पशुओं का नियमित जमावड़ा रहता है। पशुपालक भी रात को अपनी भैंसें खुली छोड़ देते हैं। आवारा श्वान भी शहर में बहुतयात में हैं। आवारा पशुओं की समस्या के समाधन की बात दूर पशुपालकों पर कभी कार्रवाई नहीं होती।
5. नशा
श्रीगंगानगर जिला नशे की गिरफ्त में है। यह नशा कई तरह का है। महंगे से लेकर सस्ते स्तर का नशा शहर व जिले में हो रहा है। इन दिनों बड़ी मात्रा में नशीली गोलियां बरामद की गई है लेकिन इस काम पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पाया है। अफीम, डोडा पोस्त से लेकर स्मैक व हेरोइन तस्करी के मामले भी सामने आते रहते हैं। यह बड़ा नेटवर्क है, जिसका भंडाफोड़ जरूरी है, ताकि समस्या का स्थायी समाधान खोजा जा सके। छुटपुट कार्रवाई से उपलब्धियों का आंकड़ा जरूर बढ़ रहा है लेकिन नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लगा है। नशे का शिकार युवा पीढ़ी ज्यादा हो रही है।
6. सडक़ें
्र्रशहर कई हिस्सों में सडक़ें टूट चुकी हैं। इससे वाहन चालक रोज परेशान होते हैं। टूटी सडक़ों के कारण हादसे होने की आशंका भी बनी रहती है। नई सडक़ के नाम पर सडक़ तोडऩा तो अलग विषय है लेकिन शहर में कुछ जगह सडक़ों की मरम्मत तक नहीं हुई है। विडम्बना देखिए मीरा चौक से ओवरब्रिज तक एक तरफ सडक़ कका पेचवर्क कर दिया गया लेकिन दूसरी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जिस तरफ सडक़ टूटी पड़ी है उधर बसें खड़ी होने लगी हैं। एक तरह से एक सडक़ बंद है। लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। जिम्मेदारों को नई सडक़ें जल्दी से तैयारी करवानी चाहिए तथा टूटी सडक़ों का पेचवर्क हो।
7. सौन्दर्यीकरण
सौन्दर्यीकरण के नाम पर शहर में कुछ काम नहीं हो रहा है। उल्टे सौन्दर्य के नाम पर जो चौक चौराहे हैं वे अवैध होर्डिंग्स, बैनर आदि से बदरंग हो रहे हैं। इस बदरंगता को लेकर गंभीरता नहीं बरती जाती। उल्टे नगर परिषद व यूआईटी के प्रतिनिधि भी खुद के फोटो लगे बैनर लगवाने में गुरेज नहंी करते हैं। अभी भी शहर के कुछ चौक पर नवनिर्वाचित विधायक के होर्डिंग्स लगे हैं। मनमर्जी से शहर को बदरंग करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहिए। इसके लिए कठोर कार्रवाई की दरकार है। सडक़ डिवाइडरों के बीच लगाए गमले व पेड़ भी बदहाल हैं, उनकी सुध भी ली जानी चाहिए।
8. सीवरेज
वर्तमान में जहां सीवरेज का काम चल रहा है, वहां के वाशिंदे तथा उधर से गुजरने वाले लोग व्यवस्था को जरूर कोसते हैं। सीवरेज का काम अव्यवस्थित व धीमी गति से होने के कारण लोग परेशान हैं। सीवरेज के कारण एक साल से ज्यादा समय से सडक़ें खुदी पड़ी हैं, लेकिन इनका कोई धणी धोरी नहीं है। सीवरेज के पहले चरण के काम पर भी सवाल उठ चुके हैं लेकिन सीवरेज काम से जुड़ी एजेंसी ने कोई सुधार नहीं किया। सीवरेज की मुख्य एजेंसी ने काम नीचे सब ठेकेदारों को बांट रखा है, इससे काम की प्रभावी मॉनिटरिंग भी नहीं हो पा रही है। इन सब का खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ रहा है।
9. ड्रेनेज
बरसात के समय श्रीगंगानगर की सबसे बड़ी समस्या ड्रेनेज को लेकर है। बरसाती पानी निकासी सही नहीं होने के कारण पानी गलियों में जमा रहता है। या फिर इस पानी को पंप लगाकर आसपास के पार्कों में छोड़ दिया जाता है। इससे पार्कों की आबोहवा भी दूषित होती है। डे्रेनेज को लेकर प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। गनीमत यह रहती है कि श्रीगंगानगर में बरसात कम हो रही है। गत दिनों बरसात के कारण बाढ़ के से हालात बन गए थे। सेना को आना पड़ा था। इस समस्या को लेकर जनप्रतिनिधि गंभीर नहीं है। उनका जवाब होता है फिर सेना बुला लेंगे, मतलब हल नहीं खोजना।
10. पार्क
पार्क का नाम आते ही जेहन में एक ऐसी तस्वीर उभरती है, जहां हरियाली हो, मखमली दूब हो। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले-फिसलपट्टी आदि हों। बैठने के लिए बैंच तथा घूमने के लिए फुटपाथ हो। अफसोस की बात है श्रीगंगानगर के अधिकतर पार्कों में ऐसा कुछ नहीं मिलेगा। लगभग सभी पार्क बदहाल हैं। इनकी दशा सुधारने की कभी ईमानदार पहल नहीं हुई। यूआइटी के पास एक खाली भूख्ंाड है, जिसकी चारदीवारी के अंदर कचरा पड़ा है, उसके बाहर भी पार्क का बोर्ड लगा है। यूआईटी व नगर परिषद के अधीन पार्कों को संवारने की की सख्त जरूरत है।
11. रोडलाइट
श्रीगंगानगर में वैसे तो अधिकतर स्थानों पर रोड लाइट लगी है लेकिन ये रात को सभी जगह रोशन नहीं होती। कभी कोई सा हिस्सा तो कभी कोई सा हिस्सा अंधेरे में रहता है। इससे यह समस्या तकनीकी कम बल्कि मानव जनित ज्यादा नजर आती है। रोडलाइट से रात को न केवल शहर आकर्षक नजर आता है, बल्कि रात को गुजरने वाले राहगीरों व वाहन चालकों को भी आसानी होती है। जिम्मेदारों ने इस संबंध में आंखें मूंद कर रखी हैं। फिलहाल शहरवासियों को उस दिन का इंतजार है, जब शहर के सभी हिस्सों की रोडलाइट रोशन होगी।
12. नहरी पानी
इसमें कोई दो राय नहीं कि नहरी पानी श्रीगंगानगर के लिए जीवन है। यहां की अर्थव्यवस्था नहरी पानी पर टिकी है। पानी की थोड़ी सी कमी यहां आक्रोश की आग भडक़ा देती है। धरतीपुत्र सडक़ों पर उतर आता है। पानी की कमी के साथ-साथ पानी चोरी भी बड़ा मसला है। नहरी पानी की कमी व चोरी से संबंधित कुछ समस्याएं स्थानीय स्तर की होती हैं, लेकिन उनका समाधान तभी होता है, जब किसान सडक़ों पर उतरता है। नहरी पानी के नेटवर्क पर नजर रख इस समस्या का कारगर हल खोजना चाहिए। टैंकरों से पानी चोरी खुलेआम हो रही है, लेकिन सब चुप हैं।
13. पेयजल
जल ही जीवन है। स्वाभाविक सी बात है बिना जल के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। श्रीगंगानगर में नहरी पानी तो खूब है लेकिन पेयजल की शुद्धता पर कई बार सवाल उठाए जाते हैं। शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाना बड़ी चुनौती है। आज भी जलजनित रोगों के मरीज अस्पतालों में ज्यादा पहुंचते हैं। इसकी बड़ी वजह पेयजल का शुद्ध न होना भी माना जाता है। प्रशासन को इस संबंध में वर्तमान व्यवस्था की फिर से समीक्षा कर पानी की गुणवत्ता को जांचने की सर्वसुलभ व्यवस्था करवानी चाहिए।
14.भ्रष्टाचार
श्रीगंगानगर जिले को लेकर दूसरे जिलों में एक धारणा है। वह यह कि यहां कोई अधिकारी आना नहीं चाहता और अगर आ गया तो फिर यहां से जाना नहीं चाहता। इसकी बड़ी वजह है भ्रष्टाचार। अक्सर सुविधा शुल्क देकर काम करवाने की चर्चाएं आती रहती हैं। पंचायतीराज में भ्रष्टाचार के लगातार मामले सामने आए। इनमें कइयों की जांच चल रही है। मामला चाहे सौर लाइट का हो, रंगीन कुर्सियों का हो या फिर इंटरलॉकिंग टाइल्स का। सवालों के घेरे में सारे काम आए हैं। कामों में पारदर्शिता का अभाव है। भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्ति कैसे मिले, यह कम कैसे हो, इस दिशा में भी काम करने की जरूरत है।
15. भिक्षावृत्ति
शहर में भिक्षावृत्ति भी बढ़ रही है। प्रत्येक शनिवार को शनि मंदिर के आसपास भिखारियों का जमावड़ा होता है। साधुनुमा इन भिखारियों की संख्या इतनी होती है कि इससे आवागमन भी बाधित होता है। इतना ही नहीं रेलवे स्टेशन के पास तो इनका स्थायी अड्डा बन चुका है। इस कारण शहर आने वालों का सबसे पहले वास्ता इनसे ही पड़ता है। इसी तरह के लोग शाम होने पर शराब ठेकों के पास भी देखे जाते हैं। पूर्ण रूप से स्वस्थ व सक्षम लोगों को इस धंधे से हटाकर मुख्यधारा में जोडऩा चाहिए लेकिन शहर में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
16 उदासीनता
प्रशासनिक स्तर के फैसले भी जिले के विकास में महत्ती भूमिका निभाते हैं। श्रीगंगानगर में लंबे समय से ऐसे अधिकारी की जरूरत महसूस की जाती रही है जो जिले के हित में कोई फैसला लेकर क्रियान्वित करवाए। श्रीगंगानगर जिले में कृषि के अलावा पर्यटन में भी काफी संभावनाएं हैं। हिन्दुमलकोट, बुड्ढ़ा जोहड़, लैला मजनूं की मजार आदि ऐसे स्थल हैं, जो सरकारी संरक्षण पाकर देश के पटल पर आ सकते हैं। इन स्थानों को लेकर चर्चाएं तो कई बार हुई हैं, प्रस्ताव भी बने हैं लेकिन वह सब कागजों में ही दफन होकर रह गए। नए साल पर इस दिशा में गंभीरता से सोचा जा सकता है।
17. कानून व्यवस्था
कानून व्यवस्था का मतलब होता है, जहां शांति हो। आपराधिक गतिविधियां न हो। अपराधियों में खौफ हो। अवैध व गलत काम करने वाले कांपे। श्रीगंगानगर जिले में कानून व्यवस्था न अच्छी है न बुरी है। हालांकि शराब की बिक्री रात को भी बेखौफ होती है। पुलिस व आबकारी के सामने होती है। प्रिंट रेट से ज्यादा होती है लेकिन इस अवैध काम पर अंकुश न तो पुलिस लगवा पाई है और न ही आबकारी विभाग। कभी मामला बढ़ जाता है तो दोनों विभाग मामला क्षेत्राधिकार का बताकर अपना बचाव जरूर कर लेते हैं। बसों के माध्यम से नशे का सामान आने पर भी रोक नहीं लग पाई है।
18. यातायात व्यवस्था
शहर की यातायात व्यवस्था सही नहीं कही जा सकती। बसें ओवरलोडेड दौड़ रही हैं। ऑटो बेलगाम हैं। यातायात नियमों की पालना कहीं होती दिखाई नहीं दे रही। वाहन चालकों में पुलिस के प्रति भय नहीं है। यातायात पुलिस के कुछ चुनिंदा व स्थायी ठिकाने हैं, वह उस दायरे से कभी बाहर नहीं निकलती। और जहां तैनात है वहां भी ज्यादा ध्यान बजाय व्यवस्था को बनाए रखने के, चालान काटने पर होता है। प्रभावी कार्रवाई की दरकार है, तभी वाहन चालकों में भय पैदा होता है। नए साल में यातायात पुलिस को ऐसा कुछ करना चाहिए, ताकि लोग कम परेशान हों।

19. चिकित्सा व्यवस्था
नए पीएमओ आने के बाद व्यवस्था में आंशिक बदलाव हुआ है। फिर भी अस्पताल की साफ-सफाई में अभी और सुधार की दरकार है। कई नर्सिंग सदस्यों का व्यवहार व कामकाज व्यवस्था के हिसाब से नहीं है। वे व्यवस्था को प्रशिक्षु नर्सिंग छात्रों के भरोसे छोडकऱ बंक मारते हैं। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहिए। जिले का सबसे बड़ा अस्पताल होने के बावजूद कई तरह की जांच नहीं होती। कुछ उपकरणों के उपयोग में न आने की बातें भी सामने आती रहती हैं। जिले के पीएचसी व सीएचसी पर सामान्य केस रेफर करने की प्रवृत्ति पर बढ़ी है, जिससे जिला अस्पताल में अव्यवस्था होती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में...01 जनवरी 19 के अंक में प्रकाशित।

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