Thursday, February 14, 2019

क्रांतिकारी बदलाव

बस यूं ही
कोख में बेटियों को कत्ल करने, बेटा-बेटी में भेद करने तथा लिंगानुपात में बड़ा अंतर होने की बड़ी वजह दहेज भी है। दहेज एक एेसी कुरीति है, जिससे कोई अछूता नहीं है लेकिन राजपूत समाज में यह इसका प्रचलन इस कदर है कि लड़की का बाप होना किसी गुनाह से कम नहीं है। लड़का पढ़ लिखकर योग्य हो गया तो फिर शादी के लिए उसकी बोली लगती है। बाकायदा लाखों रुपए का टीका और चौपहिया वाहन पहली शर्त है। टीके की राशि व चौपहिया वाहन का मॉडल वर की योग्यता के आधार तय होता है। सुयोग्य व रोजगार वाले वर के लिए लड़की का पिता मजबूरी में इस बोली में शामिल होता है और वह अपनी औकात से बाहर जाकर या कर्जा लेकर बेटी के हाथ पीले करता है। सामाजिक मंचों व सम्मेलनों में इस कुरीति के उन्मूलन के आह्वान कई बार हुए लेकिन मामला सिरे चढ़ा नहीं है। सार्वजनिक मंचों पर दहेज का विरोध करने वाले ही अंदरखाने इस खेल में शामिल होते देखे गए। दहेज लेना स्टेटस सिंबल बन गया। बड़ी शान से टीके की राशि व गाड़ी का मॉडल बताया जाने लगा। समाज में एक तरह की प्रतिस्पर्धा सी चल पड़ी है। फलां का बेटा तो फौज में है, उसके पांच लाख व कार आई है, मेरा तो डाक्टर है, उससे कमत्तर थोड़े ही है। विडम्बना देखिए यह तुलना लड़के वालों में खतरनाक स्तर पर है।
एेसे प्रतिकूल माहौल के बीच पिछले कुछ समय से परिदृश्य में बदलाव दिखाई देने लगा है। और इस बदलाव के अगुवा बने हैं समाज के युवा। इन युवाओं ने समाज के सामने एक नजीर रखी है। अपनी पुरानी पीढ़ी को आइना दिखाया है। राजपूत समाज के युवा दहेज को सिरे से खारिज कर रहे हैं। अभी संख्या भले ही कम है लेकिन यह सुखद शुरूआत है। यह एक क्रांतिकारी बदलाव का आगाज है। इसको बढ़ावा दिया जाना जाहिए। सामाजिक सम्मेलनों व मंचों पर दहेज न लेने वालों को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा से लोग प्रेरित हो सकें। कहा भी गया है अच्छाई की मार्केटिंग होनी चाहिए। यह सब इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि बीते एक सप्ताह में राजपूत समाज के करीब सात एेसे विवाहों के बारे में सुना या पढ़ा है, जब समाज के युवाओं ने लाखों की नकदी को ठुकरा कर एक रुपया व नारियल लेने में अपना गौरव समझा। इन सात विवाहों में दो तो मेरे गांव केहपुरा कलां से ही संबंधित हैं। पहली शादी २२ जनवरी को भाई दिनेशसिंह की हुई जब उसने बतौर शगुन दो लाख रुपए लेने से मना कर दिए। दूसरी शादी कल ही २९ जनवरी को जयपुर में हुई है। भाईसाहब भगवानसिंह की बिटिया हिमानी कंवर के ससुराल पक्ष वालों ने साढ़े तीन लाख रुपए के टीके को नकार दिया। इस तरह बिना दहेज वाली तीन शादियां आज बुधवार को समाचार पत्रों की सुर्खियों में थी।
इस तरह के विवाहों की पहले कभी-कभार ही खबरें आती हैं लेकिन अब यह सिलसिला गति पकड़ रहा है। इसका गति पकडऩा समाज हित में है और देश हित में भी। इससे दूसरे समाजों को भी प्रेरणा मिलेगी। शादियों में फिजूलखर्ची व दिखावे पर भी रोक लगेगी। इन सब के अलावा सबसे बड़ी बात इससे बेटे-बेटी का भेद कम होगा। कोख में बेटियों का कत्ल होना कम होगा। बेटियां हैं तो कल हैं। बेटियां ही नहीं रहेंगी तो फिर बेटे बिना दुल्हन के ही घूमेंगे। एेसे भयावह हालात बनने भी लगे हैं। यह हालात तभी बदलेंगे जब दहेज रूपी कुरीति का पूर्ण रुपेण उन्मूलन हो जाए। आइए आप और हम भी कुछ इसी तरह का संकल्प करें।

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