अमूमन मंदिरों में प्रसाद के रूप में कहीं मिठाई तो कहीं फल या नारियल का भोग लगाया जाता है लेकिन एक स्थान ऐसा भी है, जहां प्रसाद के रूप में प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल को प्राथमिकता दी जाती है। सुनने में यह अजीब लगता है लेकिन हकीकत यही है। अपने आप में अनूठे प्रसाद का यह मामला हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में स्थित गोगामेड़ी से जुड़ा है।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी महाराज के प्रसाद में प्राथमिकता प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल (खील) को दी जाती हैं। गोरक्षनाथ टीले पर भी पर यही तीनों चीजें प्रमुखता से चढ़ाई जाती हैं। लंबे समय से इस परम्परा का निर्वहन हो रहा है, हालांकि समय के साथ इसमें कुछ परिर्वतन जरूर हो गए हैं। अब नारियल, मखाणे व बताशे आदि भी प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने लगे हैं। विदित रहे कि गोगाजी का महाराज का मेला पूरे भाद्रपद मास चलता है।
दाल पर महंगाई की मार
महंगाई का असर दाल पर भी पड़ा है। इस कारण श्रद्धालु दाल की बजाय प्याज व भुने हुए चावलों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार दाल का चढ़ावा लगभग आधा है, हालांकि मेला अभी शुरुआती दौर में है। इधर प्याज इस बार सस्ते हैं, इस कारण इनके चढ़ावे में किसी तरह की कटौती फिलहाल नजर नहीं आ रही।
इसलिए चढ़ता है यह प्रसाद
गोगाजी महाराज की जब मोहम्मद गजनवी से लड़ाई तय हो गई थी, तब उन्होंने अपने सगे-संबंधियों और मददगारों को रसद सामग्री के साथ युद्ध में आने का निमंत्रण दिया था। जानकार बताते हैं कि लड़ाई समय से पूर्व शुरू हो गई और धोखे से गोगाजी को घेर लिया गया। इसके बाद गोगाजी ने घोड़े सहित समाधि ले ली। युद्ध समाप्ति के बाद पहुंचे उनके सगे संबंधियों एवं मददगारों ने रसद सामग्री के रूप में साथ लाए गए प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल उनकी समाधि पर अर्पित कर दिए। तभी से यह परम्परा चली आ रही है। रेगिस्तानी इलाके में प्याज एवं दाल का महत्व इसीलिए भी है क्योंकि यह दोनों लंबे समय तक खराब नहीं होते।
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