श्रीगंगानगर. इस गांव की कहानी भी बड़ी अजीब है। यह विशुद्ध रूप से अस्थायी गांव है। यह केवल एक माह के लिए ही बसता है और फिर उजड़ भी जाता है। इतना ही नहीं बसने एवं उजडऩे की यह कहानी हर साल दोहराई जाती है। हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के गोगामेड़ी में इस साल यह नया गांव बस चुका है।
हर तरफ सैकड़ों की संख्या में तंबू और शामियाने तन गए हैं। कदम-कदम पर दुकानें खुल गई हैं। नोहर-भादरा मार्ग पर भी दोनों तरफ चार किलोमीटर तक कई तरह की दुकानें सजीं हैं। चारों ओर चहल-पहल और गहमागहमी का आलम है। कहीं भजन गूंज रहे हैं तो कहीं जयकारे लग रहे हैं। कहीं झूले लग रहे हैं तो कहीं मनोरंजन का साजोसामान। दरअसल, गोगामेड़ी में यह नया गांव (अस्थायी गांव) प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी महाराज के वार्षिक मेले के दौरान बसता है। मेले के समापन के साथ ही यह अस्थायी गांव भी यहां से उठ जाता है। नए गांव के कारण गोगामेड़ी इन दिनों गुलजार है। मेला हिन्दी कलेण्डर के श्रावण माह की पूर्णिमा से शुरू होकर पूरे भाद्रपद मास चलता है। उत्तर भारत में संभवत: यह एकमात्र ऐसा मेला है, जो इतना लंबा चलता है। महीनेभर में यहां देशभर के पन्द्रह से बीस लाख तक श्रद्धालु आते हैं। विदित रहे कि गोगामेड़ी में गोगाजी महाराज की मेड़ी (समाधि स्थल) तथा गोरक्षनाथ महाराज का प्राचीन टीला है। श्रद्धालु गोरक्षनाथ के धूणे के समक्ष शीश नवाने के बाद गोगामेड़ी के दर्शन करते हैं। बताया जाता है कि इस टीले पर नाथ संप्रदाय के गोरक्षनाथ महाराज ने धूणा रमाया था।
एक हजार से ऊपर दुकानें
गोगामेड़ी में मेले में अधिकृत दुकानों की संख्या तो चार सौ से ऊपर हैं। यह दुकानें बकायदा आवंटित की गई हैं, इसके अलावा सड़क किनारे अस्थायी दुकानें तथा फेरी लगा कर सामान बेचने वाले भी कई हैं। इन सबको मिलाकर आंकड़ा एक हजार से उपर पहुंच जाता है। दुकानों का आवंटन यहां दो तरह से होता है। गोगामेड़ी क्षेत्र की दुकानें देवस्थान विभाग के अधीन हैं जबकि गोरक्षटीले की दुकानें गोरक्षटीला प्रन्यास (गोगाणा) देखता है। देवस्थान विभाग ने करीब 325 तथा गोगाणा ने करीब सौ दुकानों का आवंटन किया है। इसके अलावा खेतों एवं सड़क किनारे भी बड़ी संख्या में तंबू लग गए हैं। ये सब देखकर गोगामेड़ी में एेसा लगता है कि जैसे नया गांव बस गया हो।
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