Thursday, July 26, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-2

संस्मरण
काउंटर पर बैठे युवक का रुखा सा जवाब सुनकर मेरा माथा ठनका। ऑनलाइन टिकट और उसके बताए अनुसार में पूरे पौन घंटे का अंतर था। मैं थोड़ा तल्ख होते हुए उससे फिर रूबरू हुआ और कहा कि यह आप लोगों का कोई तरीका नहीं है। बस जब रवाना हो तभी का टाइम देना चाहिए। यह तो समय पर पहुंचने वालों के साथ सरासर नाइंसाफी है। मेरी बात सुनकर वह युवक मंद-मंद मुस्कुराया और बोला, सवारियां समय पर नहीं आती हैं, उनके इंतजार में बस रोकनी पड़ती हैं क्या करें? लेकिन उसके जवाब से मुझे संतुष्टि नहीं मिली है। मैंने फिर पूछा और जो समय पर आ गया, उसके लिए यह सजा क्यों? आपको जब बस पौने दस ही चलानी है तो ऑनलाइन में टाइम भी पौने दस का ही दो ताकि किसी को असुविधा न हो। और कम से कम मेरे जैसे समय के पाबंद लोगों को परेशानी न हो। लेकिन मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। कहने लगा यह तो ऑनलाइन वालों की गलती है। हमने थोड़े ही आपको टिकट दी है। इस बार जवाब सुनकर मुझे भी गुस्सा आ गया, मैंने कहा ऑनलाइन वाले क्या अपनी मर्जी से समय डालते हैं। आप लोगों ने उनसे करार किया होगा, तभी समय बताया होगा। अब उसके पास कोई जवाब नहीं था, मुझे यह बात बेहद नागवार गुजरी। मैंने प्राइवेट बस एसोसिएशन के एक पदाधिकारी से बात की। उसका भी यही कहना था कि वो उनको समझा देगा,क्ष आप नाराज न हो। मुझे लगा यह भी कोई संतोषप्रद जवाब नहीं है। इसके बाद मैंने जिला परिवहन कार्यालय के किसी हेतराम से बात की। यह सज्जन तो और भी बड़े वाले निकले। मैंने जब उनको सारा वृतांत सुनाया तो उल्टे मेरे हो ही नसीहत देने लगे। कहने लगे इंडिया में क्या सारे लोग समय के पाबंद हैं और आपके अकेले के सुधरने के कौनसा इंडिया सुधर जाएगा। सच में मुझे अधिकारी के इस तरह के जवाब से बेहद गुस्सा आया। इसके बाद अधिकारी ने कहा कि आप काउंटर पर बैठे युवक से बात करवाओ, तो मैंने कहा कि आपको सब पता है। बात करनी है तो आप कीजिए, मैं अपने फोन से न आज करवाऊं न कल करवाऊं। खैर, इस सारे घटनाक्रम के बीच 9.20 हो चुके थे। कतार में खड़ी तीन मेें से दो बसें रवाना हो चुकी थी। मैं भी सीट पर जाकर बैठ गया। सीट पर बैठे -बैठे 9.25 पर खुद का एक वीडियो भी बनाया। मैं वीडियो बनाकर रुका ही था कि एक युवक मेरे पास आया और कहने लगा महेन्द्र शेखावत आप ही हैं क्या? कृपया आप डबल स्लीपर में आ जाइए। मैंने कहा क्यों, मेरा टिकट सिंगल स्लीपर का है, डबल में क्यों आ जाऊं? मेरे को यहां कोई परेशानी नहीं है? और मेरा स्लीपर भी यही है। दूसरी बात मेरी बहस सीट को लेकर नहीं है समय को लेकर है। मेरी बात सुनकर युवक ने अपनी बात पलटी और कहने लगा भाईसाहब हमारी बस का समय सवा नौ बजे का है। इतना तो ऊपर नीचे हो ही जाता है। इतना कहकर वह नीचे चला गया। बगल में डबल स्लीपर में अधेड़ दंपती सोया था। वहां से पुरुष की आवाज आई भाईसाहब हमने भी ऑनलाइन बुकिंग करवाई थी। हम भी नौ बजे के बैठे हैं। खैर, ठीक 9.34 पर बस रवाना हुई।
क्रमश: .....

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