Thursday, July 26, 2018

स्थायी समाधान कब

प्रसंगवश
प्रदेश के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले सरसब्ज हैं तथा कृषि उत्पादन में अव्वल हैं तो इसकी एकमात्र वजह नहरी पानी की उपलब्धता ही है। नहरी पानी यहां के लिए सब कुछ है। या यों कहना चाहिए कि नहर यहां के लिए जीवन रेखा है। जाहिर सी बात है जब जब नहरों में पानी की कमी होती है, तब-तब सिंचाई का संकट खड़ा हो जाता है। हालात यहां तक पहुंच जाते हैं कि धरतीपुत्र को अपने खेत छोड़कर सड़कों पर आना पड़ता है। विडम्बना देखिए साल में शायद ही एेसा कोई माह होता होगा जब इन दोनों जिलों में पानी के लिए प्रदर्शन नहीं होता हो। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। इंदिरा गांधी नहर में लगातार पानी कम आ रहा है। घड़साना व रावला क्षेत्र में तो किसानों को साढ़े तीन माह बाद खेती के लिए पानी मिला है। इस कारण इस क्षेत्र में नरमा कपास की नाममात्र की बुवाई हो पाई। पानी की कमी के कारण इस क्षेत्र के किसान गुस्से में है। घड़साना वो ही इलाका है, जहां बारह-तेरह साल पहले आठ किसानों को पानी के लिए जान देनी पड़ी थी। पानी की कहानी इस इलाके में कमोबेश आज भी वैसी ही है। इंदिरा गांधी नहर के अलावा गंगनहर का गणित भी पिछले दो साल से तो पूरी तरह से गड़बड़ाया हुआ है। इस नहर से जुड़े किसान भी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। यह भी एक तथ्य है कि किसानों के आंदोलन के आगे सरकार झुकती आई है। जब-जब विरोध हुआ तब-तब किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिला भी है। लेकिन इन इलाकों में जैसे हालात बन रहे हैं उससे लगता है कि पानी के लिए प्रदर्शन किसानों की नियति बन चुका है। दोनों जिलों में नहर आए काफी समय हो गया, लेकिन पानी की उपलब्धता लगातार कम होता जा रही है। वैसे किसानों को उनके हक का पूरा पानी मिले तथा उचित समय पर मिले तो निसंदेह इसका फायदा किसानों और खेती दोनों को होगा। हर बार किसानों को आंदोलन का सहारा ही क्यों लेना पड़े जिम्मेदारों को अब इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए ताकि किसान की पैदावार बढ़े।
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राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के तमाम संस्करणों में 02 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित 

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