Thursday, July 26, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-9

संस्मरण 
इस ऊहापोह के बीच आखिर एक दीर्घा दिखाई दी। अंदर गए तो वह वातानुकूलित थी, इालांकि इस गैलरी के अंदर अंधेरा था। यहां कपड़ों के माध्यम से बनाई गई कलाकृतियों से भारत के ग्रामीण जीवन को दर्शाया गया है। यह दीर्घा एक गुफा जैसी है। इसमें घूमते जाओ, आगे से आगे आड़ा तिरछ़ा रास्ता निकल ही आता है। हालांकि कलाकृतियों के पास लाइट लगी है लिहाजा वो ही हाइलाइट होती है, बाकी जगह हल्का सा प्रकाश रहता है। यह पूरी दीर्घा वातानुकूलित है लिहाजा, यहां आकर गर्मी से कुछ राहत मिली। इस गैलरी के प्रवेश द्वार पर जरूर एक महिला केयर टेकर के रूप में बैठी मिली बाकी कहीं एेसा दिखाई नहीं दिखाई नहीं। अंदर का नजारा वाकई अदभुत व रोमांचकारी था। दीर्घा में ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण है । रंग बिरंगे पतंग, चरखा, पशुपालन, चक्की, चूल्हा, शादी, विदाई, हथाई, डोली, चौपाल, झूले आदि सब कुछ दिखाई देता है। कुछ जगह टाइल्स भी लगी हैं बाकी जगह दीवार पर गोबर से पुताई की गई है। ठीक वैसी ही जैसी गांवों में कच्ची दीवारों पर की जाती है। एक जगह तो गोबर के उपले ( कंडे) थापते हुए एक महिला दिखाई गई है। कपड़े से बनाए गए दीर्घा के महिला पुरुष रोशनी में हकीकत के नजदीक लगते हैं। इस समूची दीर्घा में राजस्थान, हरियाणा व पंजाब की संस्कृति के जीवंत दर्शन होते हैं। एक जगह प्रवेश द्वार पर खड़ा साधु तथा उसको देखती महिला तो सच देखने जैसा ही लगता है। मेरी भतीजे सिद्धार्थ से इस पर बात भी हो रही थी कि आखिर यह है क्या? और इनके माध्यम से क्या संदेश दिया जा रहा है। वैसे बाकी जगह तो पर्यटक अपने आप देख लेता है लेकिन यहां बनाए गए चित्रों के पीछे कहानी को बताने के लिए यह गाइड जरूर होना चाहिए। विशेषकर शहरी या बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए यह नई बात है। दीवारों पर मांडणे, कच्चे मकान, छप्पर, कुएं से पानी भरती महिलाएं, साधु महात्माओं की बैठक, भैंस, बकरियां इन सबको देखकर एक जीता जागता गांव आंखों के सामने होता है। अधिकतर कलाकृतियां कपड़े से बनाई गई हैं। चूंकि यहां वातावतरण में ठंडक थी, इसलिए दीर्घा को बड़ी तल्लीनता व धैर्य के साथ देखा। मैंने भी यहां मोबाइल से फोटो लेने की बजाय वीडियो बनाना ही बेहतर समझा और इस पोस्ट के साथ वीडियो ही पोस्ट कर रहा हूं ताकि दीर्घा के नजारे को आप स्वयं अपनी आंखों से साक्षात निहार सकें।
क्रमश:

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