Thursday, July 26, 2018

इक बंजारा गाए-38


सभा की जिम्मेदारी
पीएम की जयपुर की सभा शांतिपूर्व निबट गई तथा सभा में जाने वाले भी सकुशल लौट आए। सभा से जुड़ी बातें अब किस्सों के रूप में दर्ज हो चुकी हैं। इन किस्सों के चर्चे कभी-कभार सुनने को मिल जाते हैं। श्रीगंगानगर से सतारूढ़ दल के एक जिला पदाधिकारी तथा टिकट के इच्छुक नेताजी ने भी सभा को लेकर खूब मेहनत की, लेकिन इनका योगदान सिर्फ श्रीगंगानगर विधानसभा के लोगों तक ही सीमित रहा। वैसे भी नेताजी को दूसरी विधानसभा के लोगों से मतलब भी क्या था। देखते हैं नेताजी की यह मेहनत कालांतर में क्या रंग दिखाती है।
विधायक की सक्रियता
पिछले सप्ताह श्रीगंगानगर के कई रास्ते बरसाती पानी से लबालब हुए। लोग घरों में ही कैद होकर रह गए। गंभीर बात तो यह थी कि किसी भी जन प्रतिनिधि ने संकट में फंसे लोगों के न तो हालचाल पूछे और न ही बदहाल शहर का जायजा लिया। इससे ठीक उलट एक मामला जरूर सामने आया। पीएम की सभा में जाने के लिए रवानगी के वक्त लड़कियों ने भोजन न मिलने की बात कही तो स्थानीय विधायक ने तत्काल भोजन की व्यवस्था भी करवाई। काश, ऐसी सक्रियता व संवेदनशीलता श्रीगंगानगर की समस्याओं के प्रति भी दिखाई देती तो बात की कुछ और होती।
सुरक्षा में सेंध
हिस्ट्रीशीटर की सरेआम हत्या के बाद खाकी ने जिस अंदाज में सक्रियता दिखाई उससे लगने लगा था अब तो कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। जिस तरह वाहनों की चैंकिंग हुई, शहर में प्रवेश करने वाले रास्तों पर स्टॉपर लगाए गए, शहर के तमाम होस्टल व पीजी खंगाले गए। उससे उम्मीद बंधी थी कि खाकी की इस तत्परता के चलते शायद अपराध कुछ कम हो जाए, लेकिन मोरजंड खारी के बस स्टैंड से एटीएम लूटकर ले जाने की जो वारदात हुई है, उससे लगता नहीं है कि अपराधियों में खाकी का कोई भय है। भय होता तो भला सुरक्षा में सेंध थोड़े ही लगती।
जल्दबाजी का नतीजा
लंबे इंतजार के बाद श्रीगंगानगर से जयपुर के बीच हवाई सेवा शुरू हो गई। इसका श्रेय लेने के लिए शहर व जिले के कई प्रमुख नेता मौके पर जुटे भी और राज्य सरकार की उपलब्धियां गिनाई, लेकिन बात अगर सुरक्षा व सुविधाओं की जाए तो लगता है हवाई सेवा आधी अधूरी तैयारी के साथ शुरू कर दी गई है। आलम यह है हवाई पट्टी पर न तो पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही हवा आदि की। इतना ही नहीं हवाई जहाज के लिए टिकट काटने वाले की स्थिति से बेहतर तो कहीं प्राइवेट बसों के टिकट काउंटर हैं। कहीं यह सब जल्दबाजी व श्रेय बटोरने का नतीजा तो नहीं?
बेपटरी व्यवस्था
विद्युत वितरण निगम ने हाल ही में निर्बाध गति से बिजली आपूर्ति देने का दावा किया था। विशेषकर श्रीगंगानगर में जिस अंदाज में ट्रांसफार्मर लगे हैं, उससे यकीन भी हुआ कि अब कट नहंी लगेंगे, लेकिन दावों की हवा निकलते देर नहीं लगी। वैसे प्रतिकूल मौसम में बिजली गुल होना तो एक सामान्य सी बात है और यह व्यवहार में आ चुकी है लेकिन सामान्य दिनों में जिस तरह कट लग रहे हैं, इससे जाहिर हो रहा है व्यवस्था में आशातीत सुधार अभी हुआ नहीं है। वैसे भी जब तक सुधार पूरी तरह से न हो तब तक दावा करना भी चाहिए। पता नहीं बेपटरी व्यवस्था कब पटरी पर लौटे?
बेचारा लैंडलाइन
जब से मोबाइल फोन आए हैं बेचारे लैंडलाइन फोन की तो कद्र ही घट गई है। वैसे सरकारी कार्यालयों में अफसरों व कर्मचारियों ने खुद अपने लिए तो मोबाइल ले लिए, लेकिन ऑफिस के लिए अभी भी लैंडलाइन फोन में अस्तित्व में हैं। वैसे अधिकतर सरकारी कार्यालयों में लैंडलाइन फोन उपेक्षित ही हैं और उनकी तरफ ध्यान भी कम ही जाता है। कुछ ऐसा ही हश्र राजस्थान रोडवेज के पूछताछ काउंटर के लैंडलाइन फोन का है। यात्री को पूछताछ करनी है तो संबंधित के मोबाइल पर लगाओ या व्यक्तिश: मिलकर आओ। लैंडलाइन फोन कोई अटेंड करे तब ना।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 12 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित

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