बस यूं ही
आजकल शहीद शब्द प्रासंगिक हैं। विशेषकर पुलवामा में जवानों के काफिले पर आतंकी हमले के बाद यह शब्द जबरदस्त प्रचलन में है। इसके साथ ही कई तरह के सवाल भी हैं, मसलन, शहीद कौन होता है? शहीद किसे कहते हैं? यह दर्जा कौन देता है? सैनिकों को शहीद तो अर्ध्दसैनिकों को शहीद का दर्जा क्यों नहीं? इस तरह के सवालों को लेकर सोशल मीडिया पर भी अच्छी खासी बहस चल रही है। कुछ इसी तरह के मामले में मेरा खुद का वास्ता भी आज पड़ा, लिहाजा मन किया कि इस विषय में लोगों की जो शंकाएं हैं, उनको दूर किया जाए। एक व्हाट्सएप ग्रुप में आज सुबह-सुबह ही एक मैसेज देखा। मैसेज क्या वह एक सवाल ही था, सीआरपीएफ के जवानों को शहीद का दर्जा दिया है या नहीं? कृपया अवगत कराएं। उसी के नीचे दूसरा संदेश था, अभी तक तो कोई आदेश नहीं हुआ शायद। फिर तीसरे साथी ने लिखा, फिर मीडिया इस शब्द का प्रयोग कर रही है, शायद चांस है? चौथे का मैसेज आया। यह मैसेज भी उन्हीं का था जिन्होंने पहला संदेश लिखा था। ना पेंशन मिलती है ना शहीद का दर्जा है, फिर हम इसके लिए मांग क्यों नहीं करते? फिर बहस लंबी चली। और इसी बहस का हिस्सा मैं था तो लगा इस तरह के सवाल और भी कई लोगों के होंगे। जरूर उनके जेहन में सवाल खड़ा होगा कि आखिर शहीद किसको माना जाता है और किसको नहीं?
दरअसल, लंबे समय से इस बात का जवाब मिला ही नहीं है कि शहीद किसको माना जाए। देश हित के लिए युद्ध में प्राणोत्सर्ग करने वाला शहीद है या आजादी की लड़ाई में संघर्ष कर प्राण न्योछावर करने वाले शहीद हैं। या एेसे राजनेता जिनकी देश के लिए कार्य करते समय हत्या हो गई वो शहीद हैं? सेना व अर्ध्दसैनिक बलों में अप्राकृतिक मौत पर भी लोग आजकल शहीद का दर्जा चाहते हैं। इतना ही नहीं युद्ध के अलावा छोटी मोटी सैन्य कार्रवाई में जान गंवाने वालों को भी शहीद का दर्जा देने की मांग उठती है। पाक समर्थित आंतकी हमलों में शिकार जवानों को भी शहीद प्रचारित किया जाता है।
खैर, इन सबके बीच महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में शहीद की कोई स्पष्ट परिभाषा ही नहीं है। करीब तीन साल पहले देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजु ने लोकसभा में कहा था कि शहीद की कोई परिभाषा नहीं है। इतना ही नहीं सशस्त्र सेना और रक्षा मंत्रालय ने भी शहीद की कोई व्याख्या नहीं की है। अब फिर सवाल उठता है कि जब परिभाषा ही नहीं है तो फिर शहीद कहा क्यों जाता है? एेसे में साधारण रूप से मानकर चला जाता है कि सरकार के आदेश पर देश व जनता की सुरक्षा के लिए सेना जब देश के बाहर के दुश्मनों से लड़ती है। और इस दौरान जो सैनिक काल कवलित हो जाता है, उनको शहीद कहा जाता है। यही कारण है भारत की सुरक्षा करते हुए चीन व पाकिस्तान की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग करने वाले सैनिकों को शहीद कहा जाता है।
क्रमश:
आजकल शहीद शब्द प्रासंगिक हैं। विशेषकर पुलवामा में जवानों के काफिले पर आतंकी हमले के बाद यह शब्द जबरदस्त प्रचलन में है। इसके साथ ही कई तरह के सवाल भी हैं, मसलन, शहीद कौन होता है? शहीद किसे कहते हैं? यह दर्जा कौन देता है? सैनिकों को शहीद तो अर्ध्दसैनिकों को शहीद का दर्जा क्यों नहीं? इस तरह के सवालों को लेकर सोशल मीडिया पर भी अच्छी खासी बहस चल रही है। कुछ इसी तरह के मामले में मेरा खुद का वास्ता भी आज पड़ा, लिहाजा मन किया कि इस विषय में लोगों की जो शंकाएं हैं, उनको दूर किया जाए। एक व्हाट्सएप ग्रुप में आज सुबह-सुबह ही एक मैसेज देखा। मैसेज क्या वह एक सवाल ही था, सीआरपीएफ के जवानों को शहीद का दर्जा दिया है या नहीं? कृपया अवगत कराएं। उसी के नीचे दूसरा संदेश था, अभी तक तो कोई आदेश नहीं हुआ शायद। फिर तीसरे साथी ने लिखा, फिर मीडिया इस शब्द का प्रयोग कर रही है, शायद चांस है? चौथे का मैसेज आया। यह मैसेज भी उन्हीं का था जिन्होंने पहला संदेश लिखा था। ना पेंशन मिलती है ना शहीद का दर्जा है, फिर हम इसके लिए मांग क्यों नहीं करते? फिर बहस लंबी चली। और इसी बहस का हिस्सा मैं था तो लगा इस तरह के सवाल और भी कई लोगों के होंगे। जरूर उनके जेहन में सवाल खड़ा होगा कि आखिर शहीद किसको माना जाता है और किसको नहीं?
दरअसल, लंबे समय से इस बात का जवाब मिला ही नहीं है कि शहीद किसको माना जाए। देश हित के लिए युद्ध में प्राणोत्सर्ग करने वाला शहीद है या आजादी की लड़ाई में संघर्ष कर प्राण न्योछावर करने वाले शहीद हैं। या एेसे राजनेता जिनकी देश के लिए कार्य करते समय हत्या हो गई वो शहीद हैं? सेना व अर्ध्दसैनिक बलों में अप्राकृतिक मौत पर भी लोग आजकल शहीद का दर्जा चाहते हैं। इतना ही नहीं युद्ध के अलावा छोटी मोटी सैन्य कार्रवाई में जान गंवाने वालों को भी शहीद का दर्जा देने की मांग उठती है। पाक समर्थित आंतकी हमलों में शिकार जवानों को भी शहीद प्रचारित किया जाता है।
खैर, इन सबके बीच महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में शहीद की कोई स्पष्ट परिभाषा ही नहीं है। करीब तीन साल पहले देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजु ने लोकसभा में कहा था कि शहीद की कोई परिभाषा नहीं है। इतना ही नहीं सशस्त्र सेना और रक्षा मंत्रालय ने भी शहीद की कोई व्याख्या नहीं की है। अब फिर सवाल उठता है कि जब परिभाषा ही नहीं है तो फिर शहीद कहा क्यों जाता है? एेसे में साधारण रूप से मानकर चला जाता है कि सरकार के आदेश पर देश व जनता की सुरक्षा के लिए सेना जब देश के बाहर के दुश्मनों से लड़ती है। और इस दौरान जो सैनिक काल कवलित हो जाता है, उनको शहीद कहा जाता है। यही कारण है भारत की सुरक्षा करते हुए चीन व पाकिस्तान की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग करने वाले सैनिकों को शहीद कहा जाता है।
क्रमश:
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