दो दिन तक रोके रखा था पाक सेना को
श्रीगंगानगर/ श्रीकरणपुर.
यह कहानी जिले के श्रीकरणपुर उपखंड के सीमा से सटे गांव नग्गी की है। बात करीब 47 साल पुरानी है, जब ग्रामीणों ने दो दिन तक अपने दम पर पाक सैनिकों को आगे बढऩे से रोक दिया था। दरअसल, भारत-पाक के मध्य 1971 में हुए युद्ध को समाप्त हुए दस दिन बीत चुके थे। सीमा पर तैनात भारतीय सेना लौट चुकी थी। सरहद पर सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन सीमा के उस पार धोखे से हमला करने की साजिश रची गई। इसके बाद पाक सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए और करीब एक किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना को जब पाक की इस नापाक करतूत की जानकारी मिली तो चार पैरा बटालियन को क्षेत्र मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारतीय सेना को मौके पर पहुंचने पर कुछ विलम्ब हुआ। सीमा पर पाक सैनिकों व टैंकों का जमावड़ा देख नग्गी के ग्रामीण चिंतित तो हुए लेकिन उन्होंने दिमाग से काम लिया। आसपास के गांवों से ट्रैक्टर एकत्रित कर उनके साइलेंसर निकाल लिए गए। इसके बाद तेज आवाज में उनको गांव में घुमाया गया। बिना साइलेंसर के ट्रैक्टरों की आवाज को पाक सैनिकों ने टैंकों की आवाज समझा और दो दिन तक वह आगे नहीं बढ़ पाए। इसके बाद भारतीय सेना ने आकर मोर्चा संभाल लिया था। क्षेत्रवासियों की ओर से सेना को दी मदद का आज भी सैन्य अधिकारी आभार जताते हैं। वहीं इस घटना के साक्षी जो कि अब उम्रदराज हो चुके हैं, वे इसे अपना फर्ज मानते हैं।
मात्र दो घंटे में खदेड़ दिया था पाक सेना को
आदेश मिलने के बाद 4 पैरा बटालियन ने 28 दिसम्बर की सुबह चार बजे पाक सैनिकों पर हमला बोला।मात्र दो घंटे की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को फिर पराजय का मुंह देखना पड़ा और उसके सैनिक भाग खड़े हुए। भारतीय सेना के आक्रमण को विफल करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए जिससे 4 पैरा बटालियन के 4 अधिकारी व 21 जवान शहीद हो गए। युद्ध में शहीद रणबांकुरों की स्मृति में उसी जगह पर एक स्मारक बनाया गया। भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज पांच सौ फीट दूर यह स्मारक आज भी उन वीरों की याद दिलाता है। यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में 'सैंड ड्यूनÓ के नाम से दर्ज है।
आज भी तैयार हैं ग्रामीण
नग्गी के ग्रामीण 1971 की तरह सेना की मदद को तैयार हैं। बुजुर्ग ग्रामीणों योगराज मेघवाल व अर्जुन राम ने आतंकी हमले की निंदा करते हुए कड़े कदम उठाकर की बात कही। उन्होंने 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए बताया कि उस समय पाक ने गांव नग्गी में कई बम गिराए गए लेकिन वे गांव छोड़कर नहीं भागे और सेना का सहयोग किया। यही वजह थी कि कुछ ही देर में दुश्मनों को घर का रास्ता दिखा दिया गया। वार्ड पंच शिवभगवान मेघवाल, राजकुमार शर्मा, रामप्रताप मेघवाल, सतपाल डूडी, भानीराम ने कहा कि पाक को करारा जवाब देने के लिए वे आज भी सेना का हरसंभव सहयोग करने को तैयार हैं।
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राजस्थान पत्रिका के तमाम संस्करणों में 21 फरवरी 19 के अंक में प्रकाशित।
श्रीगंगानगर/ श्रीकरणपुर.
यह कहानी जिले के श्रीकरणपुर उपखंड के सीमा से सटे गांव नग्गी की है। बात करीब 47 साल पुरानी है, जब ग्रामीणों ने दो दिन तक अपने दम पर पाक सैनिकों को आगे बढऩे से रोक दिया था। दरअसल, भारत-पाक के मध्य 1971 में हुए युद्ध को समाप्त हुए दस दिन बीत चुके थे। सीमा पर तैनात भारतीय सेना लौट चुकी थी। सरहद पर सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन सीमा के उस पार धोखे से हमला करने की साजिश रची गई। इसके बाद पाक सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए और करीब एक किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना को जब पाक की इस नापाक करतूत की जानकारी मिली तो चार पैरा बटालियन को क्षेत्र मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारतीय सेना को मौके पर पहुंचने पर कुछ विलम्ब हुआ। सीमा पर पाक सैनिकों व टैंकों का जमावड़ा देख नग्गी के ग्रामीण चिंतित तो हुए लेकिन उन्होंने दिमाग से काम लिया। आसपास के गांवों से ट्रैक्टर एकत्रित कर उनके साइलेंसर निकाल लिए गए। इसके बाद तेज आवाज में उनको गांव में घुमाया गया। बिना साइलेंसर के ट्रैक्टरों की आवाज को पाक सैनिकों ने टैंकों की आवाज समझा और दो दिन तक वह आगे नहीं बढ़ पाए। इसके बाद भारतीय सेना ने आकर मोर्चा संभाल लिया था। क्षेत्रवासियों की ओर से सेना को दी मदद का आज भी सैन्य अधिकारी आभार जताते हैं। वहीं इस घटना के साक्षी जो कि अब उम्रदराज हो चुके हैं, वे इसे अपना फर्ज मानते हैं।
मात्र दो घंटे में खदेड़ दिया था पाक सेना को
आदेश मिलने के बाद 4 पैरा बटालियन ने 28 दिसम्बर की सुबह चार बजे पाक सैनिकों पर हमला बोला।मात्र दो घंटे की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को फिर पराजय का मुंह देखना पड़ा और उसके सैनिक भाग खड़े हुए। भारतीय सेना के आक्रमण को विफल करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए जिससे 4 पैरा बटालियन के 4 अधिकारी व 21 जवान शहीद हो गए। युद्ध में शहीद रणबांकुरों की स्मृति में उसी जगह पर एक स्मारक बनाया गया। भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज पांच सौ फीट दूर यह स्मारक आज भी उन वीरों की याद दिलाता है। यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में 'सैंड ड्यूनÓ के नाम से दर्ज है।
आज भी तैयार हैं ग्रामीण
नग्गी के ग्रामीण 1971 की तरह सेना की मदद को तैयार हैं। बुजुर्ग ग्रामीणों योगराज मेघवाल व अर्जुन राम ने आतंकी हमले की निंदा करते हुए कड़े कदम उठाकर की बात कही। उन्होंने 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए बताया कि उस समय पाक ने गांव नग्गी में कई बम गिराए गए लेकिन वे गांव छोड़कर नहीं भागे और सेना का सहयोग किया। यही वजह थी कि कुछ ही देर में दुश्मनों को घर का रास्ता दिखा दिया गया। वार्ड पंच शिवभगवान मेघवाल, राजकुमार शर्मा, रामप्रताप मेघवाल, सतपाल डूडी, भानीराम ने कहा कि पाक को करारा जवाब देने के लिए वे आज भी सेना का हरसंभव सहयोग करने को तैयार हैं।
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राजस्थान पत्रिका के तमाम संस्करणों में 21 फरवरी 19 के अंक में प्रकाशित।
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