Monday, March 4, 2019

शहीद की परिभाषा नहीं-2

बस यूं ही
दरअसल शहीद के दर्जे की मांग से तात्पर्य उस सुविधा व पैकेज से भी जुड़ा है, जिसमें कइयों को ज्यादा भत्ता व पैकेज मिलता है तो कइयों को कम। वैसे तो यह सरकारों की इच्छा शक्ति तथा शहीद होने परिस्थितियों पर निर्भर होता है कि जवान ने किस हालात में प्राण गंवाए लेकिन इसको भी देश सेवा ही जोड़ा जाता है। वैसे नैतिक दृष्टि से शहीद को लेकर कोई विवाद नहीं है। जो सीमा, मजहब या सरोकार की रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करे वह शहीद है। खैर, इनके सबके बावजूद एक सवाल लोगों के जेहन में और तैरता है, वह यह कि जब शहीद का दर्जा होता ही नहीं है तो अखबार व टीवी उनको शहीद क्यों पुकारते व प्रचारित करते हैं? वैसे मेरा मानना है कि शहीद को और कोई नाम देना बेमानी है। शहीद वही है जो देशहित में किसी खास उद्देश्य के लिए लड़ता हुआ प्राण त्याग दे। अगर कोई भागते हुए मारा जाता है तो वह शहीद नहीं हो सकता है। कई बार नेताओं को भी शहीद पुकारा जाता है, विशेषकर किसी बड़े पद पर रहते हुए जिनकी हत्या हो जाती है। यह बात दीगर है कि हताहत नेता देश सेवा से जुड़े थे लेकिन किसी युद्ध के मोर्चे पर नहीं थे। वैसे प्राणोत्सर्ग करने के बाद किसको क्या मिलना यह मिलना है यह तो भर्ती के समय ही तय हो जाता है। इतना होने के बावजूद युद्ध या ऑपरेशन में प्राणोत्सर्ग करने वालों के लिए शहीद की बजाय दो नाम जरूर तय किए गए हैं। एक है बैटल कैजुअल्टी तो दूसरा है ऑपरेशन केजुअल्टी। बैटल कैजुअल्टी मतलब लड़ाई में प्राण त्यागना और ऑपरेशन केजुअल्ट का अर्थ है कि किसी कार्रवाई में प्राण त्यागना। हां शहादत को सम्मान किस तरह का देना है? आर्थिक लाभ मसलन पेट्रोल पंप या पुरस्कार राशि यह सरकारों पर भी निर्भर होता है। इसके लिए सर्व सामान्य या सर्व स्वीकृत नियम भी नहीं है। अक्सर विवाद या बहस की वजह भी यही विषय बनते हैं कि फलां शहीद को इतना पैकेज मिला तो और फलां को इतना। भत्तों या पैकेज में अंतर भी बड़े असंतोष का बड़ा कारण भी बन जाता है।
बहरहाल, अद्र्धसैनिकों को शहीद का दर्जा देने के साथ-साथ उनकी पेंशन बंद का मामला भी गरमाया हुआ है। पेंशन के पीछे न मिलने के क्या कारण हैं तथा अद्र्धसैनिकों में कौनसी फोर्सेज शामिल हैं, पहले यह जानना भी जरूरी है।
क्रमश:

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