बस यूं ही
सेनाओं में भारतीय सेना, वायुसेना व नौसेना शामिल हैं। सेना युद्ध के वक्त की मोर्चा संभालती है। युद्ध न होने या सामान्य दिनों में सेना के जवान छावनी में रहते हैं। वैसे सेना, वायुसेना व नौ सेना के लिए अलग-अलग रिहायशी क्षेत्र बनाए गए हैं। युद्ध नहीं होता है, तो सेनाएं वहीं रहती हैं हालांकि नौसेना का काम थोड़ा अलग है। उसका काम समुद्री सीमाओं की सुरक्षा का है। एेसे में शांति के समय भी नौ सैनिकों को समुद्री सीमाओं पर तैनात रहना पड़ता है। यह तीनों सेनाएं रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है। सेना में लेफ्टिनेंट, मेजर, कनज़्ल, ब्रिगेडियर, मेजर जनरल आदि रैंक होती हैं. सैनिकों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है। तीनों सेनाओं में करीब साढ़े तेरह लाख सैनिक हैं।
अब बात करते हैं अद्र्धसैनिक बलों की। इनमें सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसफ, असम राइफल्स व एसएसबी शामिल हैं। वर्तमान में अद्र्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या नौ लाख से ज्यादा बताई जाती है। इनमें भी सिविल पुलिस की तरह कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एएसआई, असिस्टेंट कमांडेंट और कमांडेंट, डीआईजी, आईजी और डीजी की पोस्ट होती है। अद्र्धसैनिक बलों को सेवानिवृत्ति के बाद सेना की तरह पेंशन नहीं मिलती है। अद्र्धसैनिक बल गृह मंत्रालय के अधीन हैं। कौनसे बल को कहां तैनात किया जाता है तथा उसकी क्या भूमिका होती है। इसको हम इस तरह से समझ सकते हैं। सीआरपीएफ को आतंकवाद व नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाता है। इसको केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल भी कहा जाता है। इसी तरह बीएसएफ जिसे सीमा सुरक्षा बल भी कहते हैं। इसके जवानों को बांग्लादेश व पाकिस्तान से सटी सीमा पर तैनात किया जाता है। एक तरह से बीएसएफ शांति के समय सरहद की निगरानी रखती है। युद्ध काल में बीएसएफ की जगह सेना के जवान मोर्चा संभालते हैं। इसी तरह आईटीबीपी जिसे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस भी कहा जाता है, इसके जवानों को भारत-तिब्ब्त सीमा पर लगाया जाता है। केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अर्थात सीआईएसएफ पर सरकारी उपक्रमों की सुरक्षा की जिम्मा रहता है। असम राइफल्स के जवानों को असम के उग्रवाद प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाता है तो एसएसबी मतलब सशस्त्र सीमा बल को भारत-नेपाल सीमा लगाया जाता है।
बहरहाल, सबसे ज्वलंत मसला अद्र्धसैनिकों बलों द्वारा सेना जैसी सुविधाओं व सहुलियतों की मांग करना है। अद्र्धसैनिक बलों की शिकायत यह है कि वह भी लगभग सेना जैसी परिस्थितियों में ही काम करते हैं। इतना ही नहीं देश के भीतर तथा सीमाओं पर तैनात रहते हैं, इसलिए उनको भी सेना की तरह सेवा शर्तें व सम्मान मिलना चाहिए।
अक्सर आम लोग भी लोग सेना और अद्र्धसैनिक बलों को एक मानने या समझने की भूल कर बैठते हैं। पुलवामा हमले के बाद तो इस बात ने ज्यादा जोर पकड़ा है। फिर भी सेना व अद्र्धसैनिक बलों का काम और सेवा शर्ते अलग-अलग होती हैं। अद्र्धसैनिक बलों की पेंशन संबंधी मांग को कॉन्फेडरेशन ऑफ रिटायर्ड पैरा मिलिट्री एसोसिएशन के महासचिव रणवीर सिंह के बयान से समझा जा सकता है। यह बयान उन्होंने एक वेबसाइट को दिया था। उनका कहना था कि 'सातवें वेतन आयोग में अद्र्धसैनिक बलों को सिविलयन मान लिया गया है। उनको वन रैंक वन पेंशन की बात तो दूर, सातवें वेतन आयोग में उनको भत्ता तक नहीं दिया। अद्र्धसैनिकों की न केवल पेंशन बंद कर दी गई है, बल्कि सैनिकों की तरह एमएसपी (सैन्य सेवा वेतन) भी नहीं दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सेना के जवानों को कैंटीन में जीएसटी की छूट दी गई है, लेकिन अद्र्धसैनिक बलों के जवानों को कैंटीन में जीएसटी से कोई छूट नहीं मिली है। Ó फिर भी निष्कर्ष के रूप में यह जरूर कहा जा सकता है कि अद्र्धसैनिक बल भी सेना के साथ मिलकर देश और देश के नागरिकों सुरक्षा करते हैं, इसलिए उनकी सेवा को भी कम नहीं आंका जा सकता है।
-इति
No comments:
Post a Comment