बस यूं ही
रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा गुरुवार को झुंझुनूं आए थे। उनके जाने के बाद लोगों के जेहन में अब एक ही सवाल है कि मंत्रीजी झुंझुनूं आए क्यों थे? हालांकि मंत्रीजी के आने से पहले यह उम्मीद थी कि शायद वो कोई बड़ी सौगात देकर जाएंगे। खैर, मंत्रीजी आए और चले गए लेकिन न माया मिली न राम वाली कहावत चरितार्थ जरूर कर गए। हां आए थे सो कुछ तो करना बनता ही था, लिहाजा सीकर- दिल्ली के बीच केवल तीन दिन चलने वाली ट्रेन का नाम जरूर सैनिक एक्सप्रेस रख गए, वह भी झुंझुनूं सांसद के आग्रह पर। नामकरण शायद इसलिए कि यह सैनिक बाहुल्य इलाका है। सेना व सैनिकों के प्रति यहां के लोगों में श्रद्धा है। सम्मान है। यहां सेना के नाम से ही लोग खुश हो जाते हैं। रेल सैनिकों के नाम से चलेगी तो लोगों की भावनाएं खुद ब खुद जुड़ जाएंगी। और जब भावनाएं ही जुड़ जाएंगी तो और कुछ करने की जरूरत भी कहां रह जाती है। शायद इसी फीडबैक/ सुझाव के आधार पर मंत्रीजी इस ट्रेन का नाम सैनिक एक्सप्रेस करने की घोषणा कर गए, लेकिन भूल भी गए। यह नाम तो 25 साल पहले ही रखा जा चुका है। 1992 में तत्कालीन रेल मंत्री जाफर शरीफ इस रेल का नाम सैनिक एक्सप्रेस रख चुके हैं। तब भी यह सीकर-दिल्ली के बीच चलती थी, लेकिन नियमित थी। मीटर गेज लाइन हटी तो यह ट्रेन बंद हो गई। आमान परिवर्तन के बाद इस ट्रेन का संचालन फिर शुरू हुआ, वह भी सप्ताह में तीन दिन। स्थान वो ही सीकर से दिल्ली। लाइन नई तो रेल भी नई। शायद यही सोचकर सैनिक बाहुल्य इलाके को नामकरण की यह सौगात दी गई है। फिर भी कितना अच्छा होता वो इस ट्रेन को नियमित करने की घोषणा कर के जाते, पर वो एेसा कर न सके। करें भी क्यों? जब लोग नाम से ही खुश हो रहे हैं तो मंत्रीजी और ज्यादा देवे भी क्यों?
खैर, मंत्रीजी का दौरा था। इस कारण सीकर व झुंझुनूं के सांसद भी जुटे थे तो। एेसे में कुछ तो होना ही था। और नहीं तो मंत्रीजी डिस्प्ले बोर्ड ( नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम) का उद्घाटन ही कर गए। यह बात अलग है कि इस ट्रेक पर रेलों की संख्या ज्यादा नहीं है, लिहाजा इस बोर्ड का हाल फिलहाल ज्यादा उपयोग होगा भी नहीं। वैसे मंत्रीजी इस रेल को अगले माह से रींगस तक बढ़ाने तथा मई तक जयपुर तक करने की कहकर गए हैं। देखने की बात यह है कि मंत्रीजी की बात सच साबित होती है या नहीं। काश! उनकी यह घोषणा सच ही साबित हो क्योंकि समय की पालना पहले भी नहीं हुई।
रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा गुरुवार को झुंझुनूं आए थे। उनके जाने के बाद लोगों के जेहन में अब एक ही सवाल है कि मंत्रीजी झुंझुनूं आए क्यों थे? हालांकि मंत्रीजी के आने से पहले यह उम्मीद थी कि शायद वो कोई बड़ी सौगात देकर जाएंगे। खैर, मंत्रीजी आए और चले गए लेकिन न माया मिली न राम वाली कहावत चरितार्थ जरूर कर गए। हां आए थे सो कुछ तो करना बनता ही था, लिहाजा सीकर- दिल्ली के बीच केवल तीन दिन चलने वाली ट्रेन का नाम जरूर सैनिक एक्सप्रेस रख गए, वह भी झुंझुनूं सांसद के आग्रह पर। नामकरण शायद इसलिए कि यह सैनिक बाहुल्य इलाका है। सेना व सैनिकों के प्रति यहां के लोगों में श्रद्धा है। सम्मान है। यहां सेना के नाम से ही लोग खुश हो जाते हैं। रेल सैनिकों के नाम से चलेगी तो लोगों की भावनाएं खुद ब खुद जुड़ जाएंगी। और जब भावनाएं ही जुड़ जाएंगी तो और कुछ करने की जरूरत भी कहां रह जाती है। शायद इसी फीडबैक/ सुझाव के आधार पर मंत्रीजी इस ट्रेन का नाम सैनिक एक्सप्रेस करने की घोषणा कर गए, लेकिन भूल भी गए। यह नाम तो 25 साल पहले ही रखा जा चुका है। 1992 में तत्कालीन रेल मंत्री जाफर शरीफ इस रेल का नाम सैनिक एक्सप्रेस रख चुके हैं। तब भी यह सीकर-दिल्ली के बीच चलती थी, लेकिन नियमित थी। मीटर गेज लाइन हटी तो यह ट्रेन बंद हो गई। आमान परिवर्तन के बाद इस ट्रेन का संचालन फिर शुरू हुआ, वह भी सप्ताह में तीन दिन। स्थान वो ही सीकर से दिल्ली। लाइन नई तो रेल भी नई। शायद यही सोचकर सैनिक बाहुल्य इलाके को नामकरण की यह सौगात दी गई है। फिर भी कितना अच्छा होता वो इस ट्रेन को नियमित करने की घोषणा कर के जाते, पर वो एेसा कर न सके। करें भी क्यों? जब लोग नाम से ही खुश हो रहे हैं तो मंत्रीजी और ज्यादा देवे भी क्यों?
खैर, मंत्रीजी का दौरा था। इस कारण सीकर व झुंझुनूं के सांसद भी जुटे थे तो। एेसे में कुछ तो होना ही था। और नहीं तो मंत्रीजी डिस्प्ले बोर्ड ( नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम) का उद्घाटन ही कर गए। यह बात अलग है कि इस ट्रेक पर रेलों की संख्या ज्यादा नहीं है, लिहाजा इस बोर्ड का हाल फिलहाल ज्यादा उपयोग होगा भी नहीं। वैसे मंत्रीजी इस रेल को अगले माह से रींगस तक बढ़ाने तथा मई तक जयपुर तक करने की कहकर गए हैं। देखने की बात यह है कि मंत्रीजी की बात सच साबित होती है या नहीं। काश! उनकी यह घोषणा सच ही साबित हो क्योंकि समय की पालना पहले भी नहीं हुई।
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