हो जाए आर या पार
शायद यह पहला मौका था जब देश में शुक्रवार सुबह न सुप्रभात हुई और ना ही गुड मोर्निंग। सुबह से ही सबके मोबाइल पर संवेदनाओं का सैलाब था। सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देने की होड़ सी लगी थी तो गम और गुस्से में डूबा देश एक सुर में इस नापाक हरकत का मुंह तोड़ जवाब देने को उठ खड़ा हुआ। आक्रोश की आग में जल रहे देशवासियों की जुबां पर महज दो बातें, अब और नहीं, आर या पार ही थी। निहत्थे जवानों पर धोखे से किए शर्मनाक व कायराना हमले के खिलाफ देशवासियों को खून खौल रहा है। सब्र का बांध सीमाएं तोड़कर बदला लेने को आमादा हैं। आंसू तो अब आक्रोश में तब्दील हो चुके हैं। पानी नाक से ऊपर आ चुका है, सियासी बयानों से विश्वास उठने लगा है। देशवासियों को अब कुछ कहने या सुनने में यकीन नहीं है। वो अब कुछ कर गुजरने के अलावा और कुछ चाहते ही नहीं हैं। यह बात दीगर है कि हमारा देश हमेशा शांति का पक्षधर रहा है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि शराफत का नाजायज फायदा ही उठा लिया जाए। सोचिए, शेर अगर दहाडऩा व शिकार करना छोड़ दे तो फिर गीदड़ भी आंख दिखाने की हिमाकत करने लगते हैं। सांप काटना छोड़ दे तो लोग खिलौना न बना लें। समय का तकाजा यही है कि मौका मिलने पर अपनी शक्ति दिखा देनी चाहिए। इस बार एेसी शक्ति दिखानी चाहिए कि पड़ोसी मुल्क की सात पुश्तें भी इस शक्ति को याद कर कर के कांप उठे।
यह सब करना इसीलिए भी जरूरी है कि ताकि सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा बना रहे। आज समूचे देश ने एक सुर में जो संदेश दिया है यकीनन वह सेना का हौसला बढ़ाने वाला है, लेकिन इस तरह के हमलों के जवाब में कोई कार्रवाई होती रहे तो जवानों को यह भी लगता रहे कि उन्होंने अपने निहत्थे साथियों की मौत का बदला ले लिया। आज देश ही नहीं जवान भी बदले की आग में झुलस रहे हैं। उनको दुश्मन को नेस्तनाबूद करने को कह दिया गया है। यकीनन हमारे रणबांकुरे यह सब करके इतिहास रचेंगे। बात चाहे 1948 की हो, 1965 की हो, 1971 की हो या फिर करगिल युद्ध की। हमारे बहादुर सैनिकों ने हमेशा ही फतह हासिल की है लेकिन इस बार दिल कुछ एेसा चाहता है कि भविष्य में फिर कभी युद्ध जैसी नौबत आए ही नहीं। मतलब आर या पार....#AbAurNahi
शायद यह पहला मौका था जब देश में शुक्रवार सुबह न सुप्रभात हुई और ना ही गुड मोर्निंग। सुबह से ही सबके मोबाइल पर संवेदनाओं का सैलाब था। सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देने की होड़ सी लगी थी तो गम और गुस्से में डूबा देश एक सुर में इस नापाक हरकत का मुंह तोड़ जवाब देने को उठ खड़ा हुआ। आक्रोश की आग में जल रहे देशवासियों की जुबां पर महज दो बातें, अब और नहीं, आर या पार ही थी। निहत्थे जवानों पर धोखे से किए शर्मनाक व कायराना हमले के खिलाफ देशवासियों को खून खौल रहा है। सब्र का बांध सीमाएं तोड़कर बदला लेने को आमादा हैं। आंसू तो अब आक्रोश में तब्दील हो चुके हैं। पानी नाक से ऊपर आ चुका है, सियासी बयानों से विश्वास उठने लगा है। देशवासियों को अब कुछ कहने या सुनने में यकीन नहीं है। वो अब कुछ कर गुजरने के अलावा और कुछ चाहते ही नहीं हैं। यह बात दीगर है कि हमारा देश हमेशा शांति का पक्षधर रहा है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि शराफत का नाजायज फायदा ही उठा लिया जाए। सोचिए, शेर अगर दहाडऩा व शिकार करना छोड़ दे तो फिर गीदड़ भी आंख दिखाने की हिमाकत करने लगते हैं। सांप काटना छोड़ दे तो लोग खिलौना न बना लें। समय का तकाजा यही है कि मौका मिलने पर अपनी शक्ति दिखा देनी चाहिए। इस बार एेसी शक्ति दिखानी चाहिए कि पड़ोसी मुल्क की सात पुश्तें भी इस शक्ति को याद कर कर के कांप उठे।
यह सब करना इसीलिए भी जरूरी है कि ताकि सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा बना रहे। आज समूचे देश ने एक सुर में जो संदेश दिया है यकीनन वह सेना का हौसला बढ़ाने वाला है, लेकिन इस तरह के हमलों के जवाब में कोई कार्रवाई होती रहे तो जवानों को यह भी लगता रहे कि उन्होंने अपने निहत्थे साथियों की मौत का बदला ले लिया। आज देश ही नहीं जवान भी बदले की आग में झुलस रहे हैं। उनको दुश्मन को नेस्तनाबूद करने को कह दिया गया है। यकीनन हमारे रणबांकुरे यह सब करके इतिहास रचेंगे। बात चाहे 1948 की हो, 1965 की हो, 1971 की हो या फिर करगिल युद्ध की। हमारे बहादुर सैनिकों ने हमेशा ही फतह हासिल की है लेकिन इस बार दिल कुछ एेसा चाहता है कि भविष्य में फिर कभी युद्ध जैसी नौबत आए ही नहीं। मतलब आर या पार....#AbAurNahi
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