Friday, April 21, 2017

चांद-1


किसी वस्तु या व्यक्ति की आरजू या हसरत उस वक्त और अधिक बढ़ जाती है जब वह पहुंच से दूर हो जाए। कल यह बात फिर प्रासंगिक हो उठी, जब चांद बादलों की ओट में ऐसा छिपा कि निकलने का नाम तक नहीं लिया।। चांद के इंतजार में कई महिलाओं की रात तो आंखों में ही कट गई लेकिन बेरहम चांद का दिल जरा सा भी नहीं पसीजा। अगर कहीं थोड़ा बहुत पसीजा भी तो बादलों ने दाल भात में मूसलचंद की भूमिका निभाई। सर्द हवा एवं हल्की बूंदाबांदी के बीच दिन भर से भूखी प्यासी महिलाएं चांद के दीदार के लिए न जाने कितनी ही बार छत की सीढियां चढ़ी व उतरी। इंतजार की इंतहा होते देख कई तो भूखी ही सो गई। चांद का यह इंतजार संकटचतुर्थी यानि तिलकुट्टा चौथ के उपलक्ष्य में था। इस व्रत में चांद के दर्शन करने के बाद उपवास खोलने का विधान है, लेकिन प्रतिकूल मौसम ने सुहाहिनों की कड़ी अग्नि परीक्षा ले ली। वैसे चांद की बात चली है तो दूर तलक तो जाएगी ही। चांद कहां पर नहीं है। यह उम्र की सीमा नहीं देखता। हर किसी के जीवन से जुड़ा है चांद। बालक हो, जवान हो, महिला हो। सबके लिए अहमियत रखता है चांद। और तो और गंगा-जमुनी संस्कृति का जीता जागता उदाहरण है चांद। इसकी प्रशंसा में कई गीत लिखे गए हैं लेकिन कल तो चांद को लेकर शिकवा-शिकायतों का दौर हावी था। कह रही थी यह मुआ चांद है ही ऐसा। इसकी फितरत ही ऐसी है। न जाने यह कितनों को तडफ़ाता है। तरसाता है। वाकई कल तो चांद ने इतना तरसाया कि कई चांद से चेहरे मुरझाए हुए नजर आए। चांद जैसे रोशन चेहरे बुझे-बुझे से दिखाए दिए।
वैसे चांद का जिक्र आते ही जेहन में अनगिनत गाने व शेरो-शायरी का ख्याल जिंदा हो उठता है। चांद की शान में क्या-क्या नहीं कहा गया। यह अब गाना देखिए- 'खोया- खोया चांद, खुला आसमान, आंखों में सारी रात जाएगी, तुमको भी कैसी नींद आएगी... ' यह गीत बड़ा कर्णप्रिय है लेकिन देखिए ना गाने के बोल कल बेमानी थे। चांद खोया (गुमशुदा) था, क्योंकि आसमान खुला ( साफ) नहीं था, लेकिन फिर भी रात आंखों में गुजर गई। हां, हम दिल दे चुके सनम फिल्म के गीत 'चांद छिपा बादल में शरमा के मेरी जाना..' गीत जरूर मौजूं लगा। कल तो शायद चांद शरमा ही गया वरना वह इतना निष्ठुर कहां है। वैसे चांद से बावस्ता गीतों की फेहरिस्त बेहद लंबी है। ...क्रमश:

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