मान्यता : दिल से मांगी गई हर मुराद होती है पूरी...
श्रीगंगानगर. यह शौर्य का मंदिर है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही सिर श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। इस मंदिर का दर्जा प्रथम पूज्य देव गणपति के समकक्ष ही है, तभी तो यहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह के झंडारोहण से पहले श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं। किसी भी तरह का चुनाव हो तो नामांकन से पहले प्रत्याशी यहां मत्था टेकते हैं। और तो और अधिकारी भी इस मंदिर में शीश झुकाने के बाद ही पदभार ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में दिल से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। यह अनूठा मंदिर पड़ोसी प्रदेश पंजाब के फाजिल्का जिले में है। फाजिल्का से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर भारत-पाक सीमा के नजदीक आसफ वाला नामक स्थान पर बना है यह शौर्य मंदिर। दरअसल, यह मंदिर उन सैनिकों की समाधि है, जो 1971 में भारत-पाक के मध्य हुए युद्ध में शहीद हो गए थे। इन सैनिकों के समाधि के गर्भगृह में शहीदों की अस्थियों के अंश भी हैं। इसके साथ ही समाधि स्थल के साथ ही एक संग्रहालय भी है। इसमें शहीद सैनिकों के नाम एवं चित्र लगाए गए हैं।
पंजाब के युद्ध स्मारकों में सर्वश्रेष्ठ
आसफ वाला के स्मारक को पंजाब में स्थापित लगभग 50 युद्ध स्मारकों में से सबसे सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। शहीद स्मारक को प्रारंभ में लगभग आधा एकड़ भूमि के लघु श्रेत्र में बनाया गया था। बाद में इसका विस्तार किया गया। अब यह साढ़े पांच एकड़ भूमि के बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें एक युद्ध स्मारक, संग्रहालय, कम्प्यूनिटी सेंटर में कम्प्यूटर सेंटर, शहीद दृगपाल सिंह स्मृति पार्क, एक सरकारी हाई एवं प्राइमरी स्कूल व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बने हुए हैं। स्मारक के प्रांगण में हरे-भरे पेड़ व आकर्षक फूल भी लगे हुए
90 फीट चौड़ी और 18 फीट लंबी बननी थी चिता
समाधि स्थल के बगल में एक सूचना पट्ट लगा है। इसमें बताया गया है कि 17 दिसम्बर 1971 को रात आठ बजे भारत-पाक युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई। इसके अगले दिन 18 दिसम्बर को सुबह सात से लेकर दोपहर बाद तीन बजे तक शहीदों की पार्थिव देह को एकत्रित किया गया। इसके बाद 90 फीट चौड़ी और 18 फीट लंबी चिता तैयार कर शाम चार बजे सभी शहीदों की सामूहिक अन्त्येष्टि की गई। इसके बाद शहीदों की याद में फाजिल्का के निवासियों ने 1972 में यादगार के रूप में इस समाधि व स्मारक का निर्माण करवाया। समाधि में सभी शहीदों की अस्थियां शामिल हैं।
सभी के चित्र तो चार सैनिकों की प्रतिमाएं
स्मारक परिसर में एक संग्रहालय भी बनाया हुआ है। इसमें सभी शहीद सैनिकों के चित्र लगाए गए हैं। यहां 15 राजपूत रेजीमेंट के शहीद लांस नायक दृगपाल सिंह महावीर चक्र और मेजर ललित मोहन भाटिया वीर चक्र, 4 चार जाट रेजीमेंट के मेजर नारायण सिंह वीर चक्र व लांस हवलदार गंगाधर वीर चक्र की प्रतिमा लगी है। इन सभी को मरणोपरांत भारत सरकार की ओर से अंलकृत किया गया था। इन सभी की प्रतिमाएं संग्रहालय के प्रवेश एवं निकास द्वार पर लगाई हुई है। साथ ही युद्ध का संक्षिप्त विवरण व आकर्षक चित्र भी संग्रहालय में लगाए गए हैं।
सभी के हैं स्मृति स्तम्भ
आसफ वाला में स्मारक में शुरुआत में 4 जाट रेजीमेंट के 82 शहीद जवानों की स्मृति में निर्माण किया गया था। इसके बाद 1991 में स्मारक का दायरा विस्तृत करने का निर्णय किया गया। इसी के तहत 15 राजपूत व आसाम रेजीमेंट के जवानों के स्मृति स्तम्भ स्मारक परिसर में स्थापित किए गए। युद्ध में शहादत देने वाले सीमा सुरक्षा बल तथा होमगाडज़् के जवानों के स्मृति स्तम्भ यहां बनाए गए हैं। विदित रहे कि इस जगह पर 4 जाट रेजीमेंट, 3 आसाम रेजीमेंट, 15 राजपूत रेजीमेंट, 67 इनफेन्टरी ब्रिगेड, अश्वरोही सेना, सीमा सुरक्षा बल व होमगार्ड के कुल 225 सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की थी जबकि 450 सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इनमें से कुछ तो स्थायी रूप से अपंग भी हो गए थे।
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