अब देखिए ना हिमालय की गोद फिल्म के गीत, चांद सी महबूबा होगी मेरी कब मैंने ऐसा सोचा था...यहां महबूबा के चांद सी होने की कल्पना की जाती है लेकिन नब्बे के दशक में आई फिल्म आओ प्यार करें में नायक कहता है, चांद से पर्दा कीजिए कहीं चुरा ना ले चेहरे का नूर। मतलब वहां चांद सी महबूबा की कल्पना तो यहां चांद से पर्दा करने की नसीहत दी जाती है। कभी-कभी चांद इतना खूबसूरत हो उठता है कि महबूबा की तुलना ही उसी कर दी जाती है। तभी तो चौहदवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो..जैसे गीत की रचना होती है। इसी तरह सावन को आने दो फिल्म का चांद जैसे मुखड़े पे बिन्दिया सितारा भी.. इसी से मिलता-जुलता गीत है। इतना ही नहीं चांद कभी मामा बनता है। चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा... चंदा मामा दूर के.. जैसे गीतों में चांद को मामा बताया गया है। वैसे बहुत पहले चंदामामा नाम से बच्चों की पुस्तक भी आती थी।
खैर, चांद को हमने क्या-क्या नहीं बना दिया। कहीं बेटे को चांद जैसा समझा जाता है, मेरा चंदा है तू सूरज है तू... कहीं वो संदेशवाहक बन जाता है, चंदा रे मेरे भैया से कहना.. मेरे भैया को संदेश पहुंचना रे चंदा...। चांद भाई की भूमिका भी निभाता है, तभी तो बहन कह उठती है, मेरे भैया, मेरे चंदा मेरे अनमोल रतन...। चांद महबूब भी है तभी तो तुम आए तो आया मुझे याद गली में आज चांद निकला.. की कल्पना की जाती है। चांद प्रियतम से मिलने का सहारा भी है। तभी तो नायक कहता है, तुझे चांद के बहाने देखूं, तू छत पर आजा गौरी ए..। चांद की चांदनी युगल को कितना सुकून देती है तभी तो, धीरे-धीरे चल चांद गगन में.. की गुहार लगाई जाती है। इसी तरह आधा है चंद्रमा है रात आधी.. गीत भी कुछ इसी मिजाज का है। इतना ही नहीं कई बार तो चांद से आगे भी जाने की कल्पना कर ली जाती है, बिलकुल सितारों से आगे एक जहां और भी है की तर्ज पर। पाकीजा फिल्म का चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो गीत से तो यही साबित होता है। वैसे चांद की तुलना चेहरे से भी की जाती रही है। इसके अलावा चांद दीवाना भी है। आशिक भी है। यह शमा भी है और यही परवाना है। छुपा रूस्तम फिल्म के इस गीत के बोल तो यही साबित करते हैं। देखिए, यह चांद कोई दीवाना है, कोई आशिक बड़ा पुराना है। पीछे किसके ये भागे, यह शमा है या परवाना है, दीवाना है। ....क्रमश:
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