खाने की गुणवत्ता को लेकर सीमा सुरक्षा बल के एक जवान द्वारा वायरल किए गए वीडियो की हकीकत भले ही अभी जांच के दायरे में हो लेकिन कड़वी हकीकत यह भी है सेना व सुरक्षा बलों के खाने पर सवाल पहले भी उठते रहे हैं।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की पिछले साल जारी रिपोर्ट में तो कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए थे। मसलन, जम्मू कश्मीर तथा पूर्वोतर क्षेत्र में तैनात जवानों को ताजा खाना नहीं मिलता है और जो मिलता है वह भी भरपेट नहीं मिलता।
इतना ही नहीं कैग रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सेना के जवानों को एक्सपायरी डेट गुजरने के बाद भोजन के पैकेट भेजे जा रहे हैं। कैग रिपोर्ट एव हालिया सीमा सुरक्षा बल के जवान के आरोप से आखिररकार यह तो जाहिर होता ही है कि खाने को लेकर किसी न किसी स्तर पर गड़बड़ तो है।
सेना में भोजन को लेकर हो हल्ला पहले भी होता रहा है, लेकिन अंदरूनी स्तर पर ही इनको निबटा लिए जाने के कारण बाहर बवाल कम हुआ।
भारतीय सेना की नौकरी को जोश-जुनून व जज्बे वाली कहा जाता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि सेना में अनुशासन सर्वोपरि है। यहां अनुशासन भंग करने पर सैन्य नियमों/ कानूनों के तहत कड़ी सजा का प्रावधान है। इतना कुछ होने के बावजूद भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठना ही अपने आप में अनुशासन को खंडित करने जैसा है। सुरक्षा बलों की अंदर की बात बाहर आना ही अनुशासनहीनता की श्रेणी में माना जाता है। उस पर बवाल मचना व बहस छिड़ना भी लाजिमी है। वैसे भी थल, नभ व जल सेना तीनों में ही भोजन की व्यवस्था तीन स्तर पर होती है। उच्च स्तर के अधिकारी, मध्यम स्तर के अधिकारी तथा जवान। तीन स्तर पर खाने/पकाने की व्यवस्था भी अलग-अलग होती है। इन सबके बावजूद बड़ा सवाल यह है कि जवानों के भोजन पर ही अक्सर बवाल क्यों मचता है? इससे भी गंभीर बात यह है भोजन कि गुणवत्ता पर सवाल भी अक्सर जवानों ने ही उठाए हैं। अफसरों के द्वारा गुणवत्ता पर सवाल उठाने के उदाहरण कम ही सामने आते हैं। जानकारों की मानें तो गुणवत्ता पर सवाल तभी उठते हैं जब निर्धारित कोटे में कटौती कर दी जाती है या गुणवत्ता में गिरावट कर राशन बचाने का उपक्रम होता है। इस तरह की बातों का समर्थन सेना में रह चुके पूर्व जवान भी करते हैं। वितरण व्यवस्था सही नहीं होने से भी अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है। कुछ उदाहरण इस तरह के भी सामने आए हैं, जब जवानों को भरपेट भोजन की बजाय गिनती के हिसाब से रोटियां दी गई। अनुशासन की बुनियाद पर खड़े सेना या अर्द्धसैनिक बलों के अंदरूनी हालात अगर हकीकत में इस तरह के हैं तो यह हम सब के लिए चिंताजनक हैं। यह सही है कि वेत्तन, भते व सुविधाओं के हिसाब से तो अफसर व जवान की कोई तुलना नहीं हो सकती है लेकिन बात जब भोजन की आती है तो उसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
सीमा सुरक्षा बल के जवान के वीडियो की हकीकत भले ही सामने आए या न आए लेकिन इस बहाने सेना एवं अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को दिए जा रहे भोजन की गुणवत्ता तो ही जांची जा ही सकती है और जांचनी भी चाहिए। मामला संवेदनशील है और सीधा-सीधा देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है।
भरपेट भोजन न मिलने या गुणवत्ताहीन भोजन करने वाले जवान सीमा पर कितनी मुस्तैदी से ड्यूटी कर पाएंगे सहज ही कल्पना की जा सकती है? विपरीत परिस्थतियों में काम करने वालों के लिए तो गुणवत्ता से परिपूर्ण भोजन बेहद जरूरी है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की पिछले साल जारी रिपोर्ट में तो कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर हुए थे। मसलन, जम्मू कश्मीर तथा पूर्वोतर क्षेत्र में तैनात जवानों को ताजा खाना नहीं मिलता है और जो मिलता है वह भी भरपेट नहीं मिलता।
इतना ही नहीं कैग रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सेना के जवानों को एक्सपायरी डेट गुजरने के बाद भोजन के पैकेट भेजे जा रहे हैं। कैग रिपोर्ट एव हालिया सीमा सुरक्षा बल के जवान के आरोप से आखिररकार यह तो जाहिर होता ही है कि खाने को लेकर किसी न किसी स्तर पर गड़बड़ तो है।
सेना में भोजन को लेकर हो हल्ला पहले भी होता रहा है, लेकिन अंदरूनी स्तर पर ही इनको निबटा लिए जाने के कारण बाहर बवाल कम हुआ।
भारतीय सेना की नौकरी को जोश-जुनून व जज्बे वाली कहा जाता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि सेना में अनुशासन सर्वोपरि है। यहां अनुशासन भंग करने पर सैन्य नियमों/ कानूनों के तहत कड़ी सजा का प्रावधान है। इतना कुछ होने के बावजूद भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठना ही अपने आप में अनुशासन को खंडित करने जैसा है। सुरक्षा बलों की अंदर की बात बाहर आना ही अनुशासनहीनता की श्रेणी में माना जाता है। उस पर बवाल मचना व बहस छिड़ना भी लाजिमी है। वैसे भी थल, नभ व जल सेना तीनों में ही भोजन की व्यवस्था तीन स्तर पर होती है। उच्च स्तर के अधिकारी, मध्यम स्तर के अधिकारी तथा जवान। तीन स्तर पर खाने/पकाने की व्यवस्था भी अलग-अलग होती है। इन सबके बावजूद बड़ा सवाल यह है कि जवानों के भोजन पर ही अक्सर बवाल क्यों मचता है? इससे भी गंभीर बात यह है भोजन कि गुणवत्ता पर सवाल भी अक्सर जवानों ने ही उठाए हैं। अफसरों के द्वारा गुणवत्ता पर सवाल उठाने के उदाहरण कम ही सामने आते हैं। जानकारों की मानें तो गुणवत्ता पर सवाल तभी उठते हैं जब निर्धारित कोटे में कटौती कर दी जाती है या गुणवत्ता में गिरावट कर राशन बचाने का उपक्रम होता है। इस तरह की बातों का समर्थन सेना में रह चुके पूर्व जवान भी करते हैं। वितरण व्यवस्था सही नहीं होने से भी अक्सर विवाद खड़ा हो जाता है। कुछ उदाहरण इस तरह के भी सामने आए हैं, जब जवानों को भरपेट भोजन की बजाय गिनती के हिसाब से रोटियां दी गई। अनुशासन की बुनियाद पर खड़े सेना या अर्द्धसैनिक बलों के अंदरूनी हालात अगर हकीकत में इस तरह के हैं तो यह हम सब के लिए चिंताजनक हैं। यह सही है कि वेत्तन, भते व सुविधाओं के हिसाब से तो अफसर व जवान की कोई तुलना नहीं हो सकती है लेकिन बात जब भोजन की आती है तो उसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
सीमा सुरक्षा बल के जवान के वीडियो की हकीकत भले ही सामने आए या न आए लेकिन इस बहाने सेना एवं अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को दिए जा रहे भोजन की गुणवत्ता तो ही जांची जा ही सकती है और जांचनी भी चाहिए। मामला संवेदनशील है और सीधा-सीधा देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है।
भरपेट भोजन न मिलने या गुणवत्ताहीन भोजन करने वाले जवान सीमा पर कितनी मुस्तैदी से ड्यूटी कर पाएंगे सहज ही कल्पना की जा सकती है? विपरीत परिस्थतियों में काम करने वालों के लिए तो गुणवत्ता से परिपूर्ण भोजन बेहद जरूरी है।
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