दरअसल चांद पर गीत व शेर ही नहीं काफी कुछ लिखा गया है। चांद से जुड़ी और भी कई रोचक बातें एवं जानकारियां हैं। चूंकि गीत व शेर मेरी पंसद का हिस्सा हैं, लिहाजा शुरुआत इनसे ही की। खैर, गीतकार हो, शायर हो या फिर कवि। इनके लिए भी चांद हमेशा खास ही रहा है। क्योंकि गीतों में, शेरों में एवं कविताओं में महबूब और इश्क का उल्लेख खूब होता रहा है। जहां यह देानों हैं वहां चांद भी है। महबूब और इश्क की शेरो शायरी में तोचांद की बड़ी भूमिका रही है। चांद की खूबसूरती के साथ महबूब की खूबसूरती को जोड़ा गया है। कई गुमनाम शायरियां भी हैं, जिनमें चांद का जिक्र आया है। अब यह रुबाई देखिए, इसमें याद को चांद से जोड़ दिया गया है। गौर फरमाइए...
आज भीगी हैं पलकें तुम्हारी याद में,
आकाश भी सिमट गया है अपने आप में।
ओस की बूंदें ऐसे गिरी हैं जमीन पर,
मानो चांद भी रोया हो तेरी याद में।
महबूब की तड़प व याद को चांद व आकाश के साथ जोड़कर तथा ओस की बूंदों को चांदके आसूं बनाकर खूबसूरत अंदाज में यह रुबाई लिखी गई है। अब यह शेर देखिए। यहां मोहब्बत की पाकीजगी की इंतहा हो गई है। मात्र महबूब की तस्वीर से चांद यहां बेदाग हो रहा है। देखिए जरा...
तस्वीर बना कर तेरी आसमां पर टांग आया हूं,
और लोग पूछते हैं आज चांद इतना बेदाग क्यों है।
वाकई शायरी एवं कवियों की कल्पनाशक्ति गजब की होती है। कल्पनाओं को शब्दों के मोतियों में गूंथकर इस तरह पेश किया जाता है कि बार-बार पढऩे को जी करता है। वाकई शब्दों का यह शिल्प शानदार होता है। अब इस शेर में तो चांद को बिलकुल बेसहारा तक कह दिया गया लेकिन इशारों ही इशारो में...
न जाने किस रैन बसेरों की तलाश है इस चांद को,
रात भर बिना कम्बल भटकता रहता है इन सर्द रातों में।
चांद को बिना कहे आवारा बना दिया और सर्द रातों से भी जोड़ दिया गया। ....
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