Wednesday, January 31, 2018

इक बंजारा गाए-16

सबकी बोलती बंद
सुराज में सुरा-पान आठ बजे के बाद बंद का नियम कायदे है लेकिन शहर में यह सुरापान न केवल सारी रात मिलता बल्कि मय्यखाने में महफिल का सिलसिला सरकार के चार साल के बाद भी चल रहा है, इस सुरापान की देखदेख के लिए खाकी और मय्यखाने वाले अफसरो की फौज है लेकिन सुरा के साथ पान में चांदी के सिक्कों की खनक के कारण चुप्पी साध गए है। हद तो तब हो गई जब दवा की दुकान के साथ सुरापान वाला भी आधी रात तक सरेआम यह धंधा करने लगा। शिकायतों का अम्बार लगा तो सुर्खियों में वे सब आ गए जो खाकी और मय्यखाने के अफसरों को मंथली भिजवाते है, औपचारिकता की नौटंकी भी चली फिर सब चुप्प। मंथली के चक्कर में मय्यखाने वाले महकमे के चार अफसर तो यहां से नप चुके है तो वहीं एक थानेदार को अपना पद गंवाना पड़ा। लेकिन मंथली में ऐसा नशा है कि एसीबी की कार्रवाई का भय भी नहीं लगता। खाकी के पंडितजी ने तो आनन फानन में शहर में नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान तक चलाया लेकिन उनके समकक्ष खाकी वालों के पास सुरापान से मंथली के रूप में आ रही लार टपकने को रोक नहीं पा रहे है। इधर, मयखाने की देखरेख में अब चौधरी को लगाया है, वे भी बापू के तीन बंदरों की तरह न सुनना, न बोलना और न देखने की बात करने लगे है, जैसे सुरापान का असर दिख रहा हो।
प्रचार की भूख
शहर के कई जनप्रतिनिधियों को चौराहों पर टंगने का शौक हद से ज्यादा है। इस शौक में वो नियमों की धज्जियां उड़ाने से भी गुरेज नहीं करतेे। यहां तक जो जगह होर्डिंग्स आदि लगाने के लिए चिन्हित ही नहीं है वहां भी जोर जबरिया टांग देते हैं। इधर, प्रशासनिक अधिकारियों की इतनी हिम्मत नहीं होती है ,उनसे पंगा ले। फिर भी मीडिया की लगातार मुहिम के बाद श्रीगंगागनर शहर के अधिकतर प्रमुख चौक चौराहे अब मूल स्वरूप में दिखाई देने लगे हैं। फिर भी कुछेक जनप्रतिनिधि ऐसेभी हैं जिनके कानों पर जंू तक नहीं रेंग रही है। पता नहीं उनको यह बात समझ क्यों नहीं आ रही कि लोकप्रियता चौराहों पर टंगने से नहीं बल्कि काम करने से आती है। इसके बावजूद इस काम से वो तौबा करते दिखाई नहीं देते। हद तो शहर के चहल चौक पर हो गई है, जहां शहीद की प्रतिमा के आगे नियमों को मखौल उड़ाते हुए पहले तो एक छुटभैये ने होर्डिंग्स लगाया और उसको हटाए बिना उसके आगे नेताजी का होर्डिंग्स भी लगा दिया गया। फिलहाल नेताजी को किसी तरह बात समझ आ गई और शहीद प्रतिमा के आगे से होर्डिंग्स हट गया।
निजी हित सर्वोपरि
एक चर्चित कहावत है 'विष दे विश्वास न दे।' मतलब विश्वासघात जो होता है वह जहर से भी खतरनाक है। लेकिन श्रीगंगानगर में आजकल यह कहावत बखूबी चरितार्थ होने लगी हैं। बड़ी बात है कि यह धोखा भी मीडिया के लोगों से ही किया जाने लगा है। हिमाकत देखिए अदालती फैसले में कांट-छांट कर अपने हिसाब से प्रेस नोट तैयार किए जाने लगे हैं। एक स्थानीय अखबार ने तो कांट-छांट कर प्रेस नोट जारी करने वालों को बेनकाब भी किया लेकिन बाकी खबरनवीसों ने आंख मूंद कर जो विश्वास दिखाया उसका खामियाजा भुगतने की आशंका अब बलवती हो गई है। निजी हितों के लिए विश्वास को ताक पर रखकर खबरनवीसों को धोखे में रखने वालों को यह बात अ'छी तरह से पता है, क्योंकि उन्होंने तो यह सब इरादत्तन किया लेकिन खबरनवीसों ने भी रेडीमेड खबर देखकर क्रॉस चैक करने तक भी जहमत नहीं उठाई। बहरहाल, निजी हित देखने वालों की मंशा पर सवाल अब और भी ज्यादा हैं, क्योंकि अब उस प्रेस नोट के गुम होने का बहाना जो बनाया जा रहा है।
उल्टा पड़ा दांव
खेल कोई भी दांव अगर उल्टा पड़ जाता है तो जीत की उम्मीद फिर क्षीण पड़ जाती है। मामला अतिक्रमण का है और जिले के एक प्रमुख शहर से जुड़ा है। इस शहर के व्यापारियों ने पहले तो जनहित को ध्यान में रखते हुए बाजार में खड़ी होने वाली रेहडिय़ों का विरोध किया। उनको पता नहीं था रेहडिय़ा हटते ही वो भी लपटे में आ जाएंगे। क्योंकि जांच सर्वे में उनकी अधिकतर दुकानें अतिक्रमण की जद में आ गई। दुकान टूटने के भय ने व्यापारियों के दिन का चैन व रातों की नींद गायब कर दी। मामले को रफा-दफा करने के लिए काफी दौड़ धूप की गई। जनप्रतिनिधियों के यहां भी गुहार लगाई गई लेकिन गलत काम की सावर्जनिक रूप से वकालत करता भी कौन? व्यापारियों की हालत सांप छछूंदर वाली हो गई। ख्यामखाह बैठे बिठाए पंगा जो ले लिया। बहरहाल, कहीं पर भी बात नहीं बनी, अंततोगत्वा पालिका प्रशासन अतिक्रमण हटवा रहा है। इधर, व्यापारी उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब उन्होंने रेहड़ी वालों का विरोध किया था।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 11 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित 

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