🔺हींग लगे न फिटकरी
अपने काम का प्रचार करना नेताओं का पुराना शगल रहा है। जगह-जगह लगे शिलान्यास व उद्घाटन के शिलापट्ट इस बात की गवाही भी देते हैं। श्रीगंगानगर शहर की सरकार के एक नेताजी को तो नाम का इतना जबरदस्त शौक है कि कार्यक्रम में जाने की पहली शर्त ही यह रखते हैं कि उनके नाम का शिलापट्ट जरूर होना चाहिए। आयोजक जब कार्यक्रम पर इतनी राशि खर्च करते हैं तो लगे हाथ शिलापट्किा भी बनवा रहे हैं। शिलापट्टिका भी कोई कामचलाऊ न होकर बाकायदा गुणवत्ता वाले मार्बल की बनवाई जा रही है। कोई कुछ भी कहे या सोचे लेकिन आयोजकों की मजबूरी का फायदा नेताजी जमकर उठा रहे हैं। जेब से एक कौड़ी भी खर्च नहीं हो रही है जबकि प्रचार पूरा हो रहा है। इसी को कहते हैं हींग लगे फिटकरी रंग चोखा ही चोखा।
🔺खुद का प्रचार
नाम की भूख भला किसको नहीं होती। इस भूख के चक्कर में लोग तरह-तरह के जतन करने से गुरेज नहीं करते। बस किसी तरह का रास्ता या माध्यम मिलना चाहिए, फिर देखो। अगर रास्ता या माध्यम फ्री का हो तो फिर कहना ही क्या। श्रीगंगानगर में इन दिनों एक धार्मिक कार्यक्रम है। वैसे शहर में इस तरह के कार्यक्रम कई होते हैं लेकिन इस कार्यक्रम की बात ही निराली है। इस कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में समूचे शहर को रंग दिया गया है। खास बात यह है कि प्रचार-प्रसार की इस होड़ में लोग अपने प्रतिष्ठानों का प्रचार करने से भी नहीं चूक रहे हैं। परिषद के अधिकारी भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने निशुल्क अनुमति धार्मिक कार्यक्रम के प्रचार को लेकर दी थी लेकिन होर्डिंग्स के नीचे व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बड़े-बड़े नाम देखकर उनकी भौंहें टेढ़ी हो रही हैं।
नाम की भूख भला किसको नहीं होती। इस भूख के चक्कर में लोग तरह-तरह के जतन करने से गुरेज नहीं करते। बस किसी तरह का रास्ता या माध्यम मिलना चाहिए, फिर देखो। अगर रास्ता या माध्यम फ्री का हो तो फिर कहना ही क्या। श्रीगंगानगर में इन दिनों एक धार्मिक कार्यक्रम है। वैसे शहर में इस तरह के कार्यक्रम कई होते हैं लेकिन इस कार्यक्रम की बात ही निराली है। इस कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार में समूचे शहर को रंग दिया गया है। खास बात यह है कि प्रचार-प्रसार की इस होड़ में लोग अपने प्रतिष्ठानों का प्रचार करने से भी नहीं चूक रहे हैं। परिषद के अधिकारी भी अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने निशुल्क अनुमति धार्मिक कार्यक्रम के प्रचार को लेकर दी थी लेकिन होर्डिंग्स के नीचे व्यापारिक प्रतिष्ठानों के बड़े-बड़े नाम देखकर उनकी भौंहें टेढ़ी हो रही हैं।
🔺सपनों के सौदागर
श्रीगंगानगर में एक सेठजी को आजकल सपनों का सौदागर कहा जाता है। इसका कारण है कि सेठजी सपने-सपने बड़े बड़े दिखाते हैं। सपने पूरे नहीं होते यह अलग बात है, लेकिन सपने दिखाने का काम बदस्तूर जारी है। उनका चार-पांच साल पहले दिखाए गए सपनों पर फिलहाल संकट के बादल हैं। भले ही उन्होंने अपने स्तर पर यह प्रचारित करने का प्रयास किया कि वह सपना साकार करने के लिए प्रयासरत है लेकिन जनता के अब सब समझ आने लगा है। सेठजी ने पिछले सप्ताह एक शिगूफा फिर छोड़ा है। शिगूफा भी एक तरह का बड़ा सपना ही है। इसमें इकलौता श्रीगंगानगर ही नहीं बल्कि तीन जिले और भी हैं। अब इस बड़े सपने की सफलता पर शक इसलिए होता है कि सपने का राजदार सेठजी ने केवल एक समाचार पत्र को ही बनाया। बाकियों को क्यों नहीं? फिर उसी दिन, उसी समय सेठ जी ने पत्रकारों को चाय-पकोड़ों के लिए भी बुला रखा था। ऐसे में यह सवाल बड़ा हो गया है!
श्रीगंगानगर में एक सेठजी को आजकल सपनों का सौदागर कहा जाता है। इसका कारण है कि सेठजी सपने-सपने बड़े बड़े दिखाते हैं। सपने पूरे नहीं होते यह अलग बात है, लेकिन सपने दिखाने का काम बदस्तूर जारी है। उनका चार-पांच साल पहले दिखाए गए सपनों पर फिलहाल संकट के बादल हैं। भले ही उन्होंने अपने स्तर पर यह प्रचारित करने का प्रयास किया कि वह सपना साकार करने के लिए प्रयासरत है लेकिन जनता के अब सब समझ आने लगा है। सेठजी ने पिछले सप्ताह एक शिगूफा फिर छोड़ा है। शिगूफा भी एक तरह का बड़ा सपना ही है। इसमें इकलौता श्रीगंगानगर ही नहीं बल्कि तीन जिले और भी हैं। अब इस बड़े सपने की सफलता पर शक इसलिए होता है कि सपने का राजदार सेठजी ने केवल एक समाचार पत्र को ही बनाया। बाकियों को क्यों नहीं? फिर उसी दिन, उसी समय सेठ जी ने पत्रकारों को चाय-पकोड़ों के लिए भी बुला रखा था। ऐसे में यह सवाल बड़ा हो गया है!
🔺साहब का पीआरओ
वैसे तो सरकार के कामकाज के प्रचार-प्रसार के लिए बाकायदा एक पीआरओ होता है जो पत्रकारों व सरकार के बीच समन्वयक या यूं कहें कि सेतु का काम करता है। इसके अलावा निजी क्षेत्र में भी बहुत से संगठन व संस्थाएं भी अपने यहां पीआरओ रखते हैं। अब कुछ अधिकारी अपने स्तर पर भी पीआरओ रखने लगे हैं। उनके काम की, कार्रवाई की या कहीं पर कार्यक्रम की सूचना के आदार-प्रदान का यह काम पीआरओ ही करता है। श्रीगंगानगर शहर में खाकी के अधिकारी को भी पीआरओ रखने का जबरदस्त शौक है। इन अधिकारी महोदय से कोई खबर या कार्यक्रम के बारे में जानकारी मांगें तो झट से पीआरओ का नाम ले देते हैं। और तो और सभी तरह की सूचनाएं भी इस पीआरओ को पहले होती हैं। अब पीआरओ बाकी खबरनवीसों की आंखों में खटक रहा है।
वैसे तो सरकार के कामकाज के प्रचार-प्रसार के लिए बाकायदा एक पीआरओ होता है जो पत्रकारों व सरकार के बीच समन्वयक या यूं कहें कि सेतु का काम करता है। इसके अलावा निजी क्षेत्र में भी बहुत से संगठन व संस्थाएं भी अपने यहां पीआरओ रखते हैं। अब कुछ अधिकारी अपने स्तर पर भी पीआरओ रखने लगे हैं। उनके काम की, कार्रवाई की या कहीं पर कार्यक्रम की सूचना के आदार-प्रदान का यह काम पीआरओ ही करता है। श्रीगंगानगर शहर में खाकी के अधिकारी को भी पीआरओ रखने का जबरदस्त शौक है। इन अधिकारी महोदय से कोई खबर या कार्यक्रम के बारे में जानकारी मांगें तो झट से पीआरओ का नाम ले देते हैं। और तो और सभी तरह की सूचनाएं भी इस पीआरओ को पहले होती हैं। अब पीआरओ बाकी खबरनवीसों की आंखों में खटक रहा है।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 25 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित..।
No comments:
Post a Comment