हे सेनाओं के सेनापतियों बहुत हो चुका अब बंद कीजिए। देश ने आपकी हुंकार सुन ली। गर्जना व चेतावनी सुन ली। तर्क-दलीलें व बड़े बड़े बयान तक सुन लिए लेकिन आप न्यायालय से बड़े नहीं हैं। देश में न्यायालय से आगे कुछ नहीं है। वहां जाकर सब रास्ते बंद हो जाते हैं। सारे विकल्प खत्म हो जाते हैं। फिर भी आपको लगता है कि आपके साथ न्याय नहीं हुआ तो क्या आप वह रास्ता अपनाएंगे, जो कानून की दृष्टि में अनुचित हैं। आप तोडफ़ोड़ करेंगे। आप आगजनी करेंगे। आप रास्ता रोकेंगे। बसों पर पथराव करेंगे। क्या एेसा करने से फिल्म का प्रदर्शन रुक जाएगा या सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला पलट देगा। तोडफ़ोड़ कोई भी करे। आप करें, आपके सैनिक करें या आपके नाम पर कोई और कर जाए लेकिन एेसा करना कानून सम्मत नहीं है। पता है इस तरह के हथकंडे से बदनाम आपकी सेनाएं नहीं कौम हो रही है। वह कौम जिसके आधे से ज्यादा तबके को तो इतिहास की ठीक से समझ तक नहीं है । उनके लिए रोजगार और दो जून की रोटी का जुगाड़ पहली प्राथमिकता है। हे सेनापतियों कौम की इतनी बदनामी तो शायद फिल्म बिना किसी विरोध के चुपचाप प्रदर्शित हो जाती तो भी नहीं होती। मान, सम्मान, स्वाभिमान, बलिदान, वीरता और भी न जाने क्या-क्या हवाला देकर आपने भावनाओं की चासनी मिलाकर इस मसले को सेनाओं के साथ-साथ कौम का सवाल बना दिया। जिस तरह आज एक गौरवशाली कौम की चैनल, चौक, चौराहों व चर्चाओं में आलोचना हो रही है, कौम को जलील किया जा रहा है, उसका जिम्मेदार कौन? हे सेनापतियों फिल्म को अस्मिता का सवाल बनाने से पहले क्या आपने समाज की स्वीकृति ली? क्या समाज ने आपको इस तरह की लड़ाई लडऩे की जिम्मेदारी सौंपी? क्या आपने सेनाओं का गठन समाज की स्वीकृति से किया? क्या आप सभी सेनापतियों का चयन लोकतांत्रिक तरीके से हुआ? आपने खुद ने अपना चुनाव कर लिया। मनमर्जी से सेनाएं बना ली तो फिर समाज के सर्वेसर्वा आप किस हैसियत से बन गए? बहुत हो गया अब बंद कीजिए। भावनाओं में बहा युवा जोश-जोश में कुछ गैरकानूनी काम कर बैठा तो मुकदमा झेलने या जेल में सडऩे आप नहीं जाआेगे। आप सेनापतियों की जिद के आगे त्याग, तपस्या, बलिदान व पुरुषार्थ की पैरोकार रही कौम बदनाम हो रही है, यह बर्दाश्त के काबिल नहीं है। कृपया इस खेल को, इस अध्याय को अब बंद कर दीजिए। इससे खेल से अब सिवाय अपमान, बेइज्जती व छीछालेदर के कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। और इस बहाने आपको सियासत ही करनी है तो करिए, बेशक कीजिए, बेझिझक कीजिए लेकिन कौम को सीढ़ी बनाकर सियासत करना बंद कीजिए। और हां सेनाओं के नाम पर समूचे समाज को गरियाने वालों आप भी यह सब बंद कीजिए। सहन करने की भी कोई सीमा होती है। ये सेनाएं तो एक कौम का हिस्साभर हैं। यह पूरी कौम नहीं हैं। समूची कौम को बदनाम करने का खेल बेहद खतरनाक है। इससे खेलना किसी के भी हित में नहीं है। देश हित में तो बिलकुल भी नहीं।
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