बस यूं ही
शुक्रवार शाम ही बात है। अचानक मोबाइल की घंटी बजी। ट्रूकॉलर पर पान पान दिखा रहा था...। मैंने फोन उठाया तो आवाज आई महेन्द्र जी भाईसाहब नमस्कार। मैं बाबा पान भंडार से प्रकाश बोल रहा हूं। आप से मिलना है। मैं एक बार तो चौंका कि इस तरह आत्मीयता से बोलने वाला और वह भी नाम से आखिर है कौन भला। मैंने प्रत्युत्तर में कहा कि मैं आफिस ही हूं। सामने से आवाज आई भाईसाहब मैं आपके आफिस ही आ रहा हूं। करीब आधा घंटे बाद मजबूत कद काठी का आकर्षक नयन नक्श वाला युवक हाथ में एक पॉलिथीन की थैली लिए मेरे केबिन में आया। मु्स्कुराते हुए हाथ मिलाकर कहने लगा भाईसाहब मैं प्रकाश शर्मा। बाबा पान भंडार से। मैंने युवक को सवालिया नजरों से देखा पर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था। मेरी आंखों में देखते हुए उसने वह थैली मेरी तरफ बढा दी। मैं सकपकाया और टोकते हुए कहा..यह क्या है और किसलिए है। इस पर बोला भाईसाहब मैं आपको नहीं जानता....आपसे कभी मिला भी नहीं बस नाम सुना है। कल राजस्थान पत्रिका में शराब दुकानों पर खबर पढी तो बेहद खुशी हुई। बस यह पान उसी खुशी के हैं। शराब की दुकानों का पान वाले से क्या संबंध ? यकायक यह सवाल फिर जेहन में आया और मैंने अस्वीकृति में फिर सिर हिलाया। वह कहने लगा भाईसाहब मूलत: बीकानेर जिले से हूं। दादाजी श्रीगंगानगर आ गए थे। यहां हमारी 1927 से पान की दुकान है। बीकानेर का नाम आते ही और युवक की आत्मीयता देखकर खुशी हुई कि तीसरी पीढी में भी बीकानेर के संस्कार मौजूद है। वह कहे जा रहा था भाईसाहब मेरी दुकान के पास शराब का ठेका देर रात तक खुला रहता है। इस कारण मेरे ग्राहक इस तरह के माहौल से कतराने लगे हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरे को भी इस तरह का माहौल अच्छा नहीं लगता। मैंने पुलिस व आबकारी के सभी अधिकारियों को ज्ञापन दिए...वीडियो दिए पर कहीं सुनवाई नहीं हुई...। शराब ठेकेदारों से मेरी तो आंख मिलाने तक की हिम्मत नहीं। कल पत्रिका में शराब दुकानों की खबर देखी तो मन को सुकून मिला। इससे भी बड़ा सुकून आज मिला जब शराब ठेके के बाहर लगी रेहड़ी हट गई।.बस इसी खुशी और बिना कहे ही मेरी पीड़ा अखबार में प्रकाशित करने पर आपको मीठा पान खिलाने का निर्णय किया। प्लीज भाईसाहब इसे स्वीकार करो....यह कोई प्रलोभन नहीं हैं। मैं प्रकाश शर्मा के आग्रह को नकार न सका। हालांकि मैं पान नहीं खाता। मैंने कार्यालय के साथियों से कहा कि कोई पान का शौकीन है तो बताओ मेरे पास पान है। पर कोई तैयार नहीं हुआ। ऐसे में दोनों पान घर ले आया। एक दोनों बच्चों को खिलाया तो एक श्रीमती को। सच में प्रकाश का मेरे से नहीं अखबार से एक रिश्ता था। उसकी पीड़ा जब उजागर हुई तो उसने अपनी खुशी का इजहार इस तरह से किया। आखिर प्रकाश जैसे शख्स ही तो सच व साहस के साथ लिखने का हौसला देते हैं। पान से भी मीठी प्रकाश की भावनाओं को मैं सलाम करता हूं...।
शुक्रवार शाम ही बात है। अचानक मोबाइल की घंटी बजी। ट्रूकॉलर पर पान पान दिखा रहा था...। मैंने फोन उठाया तो आवाज आई महेन्द्र जी भाईसाहब नमस्कार। मैं बाबा पान भंडार से प्रकाश बोल रहा हूं। आप से मिलना है। मैं एक बार तो चौंका कि इस तरह आत्मीयता से बोलने वाला और वह भी नाम से आखिर है कौन भला। मैंने प्रत्युत्तर में कहा कि मैं आफिस ही हूं। सामने से आवाज आई भाईसाहब मैं आपके आफिस ही आ रहा हूं। करीब आधा घंटे बाद मजबूत कद काठी का आकर्षक नयन नक्श वाला युवक हाथ में एक पॉलिथीन की थैली लिए मेरे केबिन में आया। मु्स्कुराते हुए हाथ मिलाकर कहने लगा भाईसाहब मैं प्रकाश शर्मा। बाबा पान भंडार से। मैंने युवक को सवालिया नजरों से देखा पर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था। मेरी आंखों में देखते हुए उसने वह थैली मेरी तरफ बढा दी। मैं सकपकाया और टोकते हुए कहा..यह क्या है और किसलिए है। इस पर बोला भाईसाहब मैं आपको नहीं जानता....आपसे कभी मिला भी नहीं बस नाम सुना है। कल राजस्थान पत्रिका में शराब दुकानों पर खबर पढी तो बेहद खुशी हुई। बस यह पान उसी खुशी के हैं। शराब की दुकानों का पान वाले से क्या संबंध ? यकायक यह सवाल फिर जेहन में आया और मैंने अस्वीकृति में फिर सिर हिलाया। वह कहने लगा भाईसाहब मूलत: बीकानेर जिले से हूं। दादाजी श्रीगंगानगर आ गए थे। यहां हमारी 1927 से पान की दुकान है। बीकानेर का नाम आते ही और युवक की आत्मीयता देखकर खुशी हुई कि तीसरी पीढी में भी बीकानेर के संस्कार मौजूद है। वह कहे जा रहा था भाईसाहब मेरी दुकान के पास शराब का ठेका देर रात तक खुला रहता है। इस कारण मेरे ग्राहक इस तरह के माहौल से कतराने लगे हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरे को भी इस तरह का माहौल अच्छा नहीं लगता। मैंने पुलिस व आबकारी के सभी अधिकारियों को ज्ञापन दिए...वीडियो दिए पर कहीं सुनवाई नहीं हुई...। शराब ठेकेदारों से मेरी तो आंख मिलाने तक की हिम्मत नहीं। कल पत्रिका में शराब दुकानों की खबर देखी तो मन को सुकून मिला। इससे भी बड़ा सुकून आज मिला जब शराब ठेके के बाहर लगी रेहड़ी हट गई।.बस इसी खुशी और बिना कहे ही मेरी पीड़ा अखबार में प्रकाशित करने पर आपको मीठा पान खिलाने का निर्णय किया। प्लीज भाईसाहब इसे स्वीकार करो....यह कोई प्रलोभन नहीं हैं। मैं प्रकाश शर्मा के आग्रह को नकार न सका। हालांकि मैं पान नहीं खाता। मैंने कार्यालय के साथियों से कहा कि कोई पान का शौकीन है तो बताओ मेरे पास पान है। पर कोई तैयार नहीं हुआ। ऐसे में दोनों पान घर ले आया। एक दोनों बच्चों को खिलाया तो एक श्रीमती को। सच में प्रकाश का मेरे से नहीं अखबार से एक रिश्ता था। उसकी पीड़ा जब उजागर हुई तो उसने अपनी खुशी का इजहार इस तरह से किया। आखिर प्रकाश जैसे शख्स ही तो सच व साहस के साथ लिखने का हौसला देते हैं। पान से भी मीठी प्रकाश की भावनाओं को मैं सलाम करता हूं...।
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