Wednesday, January 31, 2018

इक बंजारा गाए-15


🔺धरने का राज
लोकतंत्र में अपनी मांगें मनवाने के कई तरीके हैं। इनमें धरना प्रमुख है। वैसे धरने भी कई प्रकार के होते हैं। आंशिक धरना, स्थायी धरना, क्रमिक धरना आदि। कुछ धरने ऐसे भी होते हैं, जो दिन में लगते हैं, लेकिन रात को उठ जाते हैं। जिला मुख्यालय पर भी इन दिनों एक धरना चल रहा है, जो दिन-रात अनवरत जारी है। वैसे, यह मामला चुनाव के नजदीक ही याद आता है। चार साल तक शांत रहा यह मामला अब फिर से बोतल में बंद जिन्न की तरह बाहर आ गया है। खैर, बात धरना देने वालों को लेकर है। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो रात को धरने का एक अलग ही अंदाज होता है। दिन में आगे का पर्दा उठ जाता है, लेकिन रात होने पर किसी रंगमंच के पर्दे की तरह इसे गिरा दिया जाता है। हां, इतना जरूर है कि पर्दे के पीछे जो हो रहा है वह कम से कम श्रीगंगानगर की 'संस्कृति' के विपरीत नहीं है।
🔺सफाई की चिंता
श्रीगंगानगर में सफाई का मामला हमेशा सिरदर्दी वाला ही रहा है। शहर में सफाई के नाम पर प्रयोग भी बहुत हुए, लेकिन आशातीत परिणाम सामने नहीं आए। अब स्वच्छता टीम आने वाली है। यह टीम शहर की सफाई व्यवस्था के हाल जानेगी और फिर रैंकिंग जारी करेगी। सफाई के मामले में श्रीगंगानगर का पिछले साल कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं रहा, इस कारण इस बार अच्छी खासी दौड़ धूप की जा रही है। यहां तक की शहर को चमकाने में अधिकारियों व सफाई ने दिन- रात एक कर रखा है। जिन रास्तों पर कभी झाड़ू नहीं लगी, वहां पर पानी से सफाई हो रही है। सब कुछ आनन-फानन में हो रहा है। इतनी मशक्कत अगर समय रहते नियमित रूप से की जाती तो आज इस तरह भागना नहीं पड़ता। और वैसे भी इस दौड़ धूप से पूरा शहर तो स्वच्छ होने से रहा। इतना कुछ करने के बाद अगर स्वच्छता टीम ने सद्भावना नगर जैसे इलाकों का निरीक्षण किया तो फिर परिणाम क्या होगा, सोचा जा सकता है।
🔺पब्लिसिटी का तरीका
श्रीगंगानगर में बेटियों को पढ़ाने तथा उनको छात्रवृत्ति देने का काम सामाजिक संगठनों की ओर से लंबे समय से किया जा रहा है। अब तो इस काम में भी प्रतिस्पर्धा होने लगी है। ज्यादा से ज्यादा बेटियों को छात्रवृत्ति बांटने की होड़ रहती है। यह बात दीगर है कि लाभान्वित होने वाली बेटियों की नाम सहित संख्या तथा वितरित की गई राशि का विवरण सार्वजनिक करने की मांग लगातार उठती रही है, लेकिन यह मांग अभी अधूरी ही है। यह पूरी होगी या नहीं, अभी तय नहीं है, लेकिन इस काम का प्रचार इतना जोर-शोर से किया जाता है कि चारों तरफ कार्यक्रमों के ही चर्चे रहते हैं। इन दिनों शहर में होर्डिंस व पेम्फलेट्स के माध्यम से भी इसी तरह के कार्यक्रम के बारे में प्रचार किया जा रहा है। प्रचार-प्रसार के इस काम में आयोजक अपना व अपने संस्थान का नाम भी चमका रहे हैं। दोनों काम एक साथ हो रहे हैं, मतलब आम के आम गुठलियों के दाम।
🔺..तो बाराती क्या करें?
राजस्थानी में एक कहावत है। जब बींद (दूल्हे) के मुंह से ही लार टपके तो बाराती क्या करे? कहने का तात्पर्य है कि जब जिम्मेदार आदमी की कोई कानून तोड़े तो फिर नीचे वाले को क्या दोष? वे भी उनकी देखादेखी तो करेंगे। यह कहावत शहर के उन जनप्रतिनिधियों व छुटभैयों के लिए सटीक बैठती है जो गाहे-बगाहे बधाई लिखे संदेश चौराहों पर टांग देते हैं या टंगवा देते हैं। हालांकि पूछने पर जनप्रतिनिधि इसे समर्थकों का काम बताकर खुद की खाल बचाने का प्रयास करते हैं, लेकिन सच यह है कि प्रचार की भूख के चलते वो ऐसा करवाते हैं। नहीं तो किसकी मजाल कि बिना अनुमति किसी के बैनर टांग दे। इन जनप्रतिनिधियों के आगे प्रशासनिक अमला अपने को इतना लाचार, बेबस, निरीह व मजबूर समझता है कि कार्रवाई करने की हिम्मत तक नहीं दिखा पाता। इधर जनप्रतिनिधि भी इतने 'सयाने' हैं कि प्रशासन की बेबसी का जमकर फायदा उठाते हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 4 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित। 

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