बस यूं ही
सरकारी अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की खाल किस कदर मोटी हो गई,इसका इससे ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है। मैं तो इसको ढीठता की पराकाष्ठा कहूंगा। चिकना घड़ा जैसा विशेषण भी इनके लिए छोटा पड़ता है। मामला श्रीगंगानगर के एक चौक का है। यह चौक शहीद के नाम से है और चौक पर शहीद प्रतिमा भी लगी है। 1971 में शहीद हुए मेजर हरबंससिंह चहल के नाम पर यह चौक है। प्रशासन ने यहां उनकी प्रतिमा लगाई लेकिन बस इस काम से आगे कुछ नहीं हुआ। सुध न लेने से पार्क बदहाल हुआ। प्रतिमा गिरने की कगार तक पहुंच गई। शहीद वीरांगना ने बीते साल सितंबर माह में जिला प्रशासन को पत्र लिखकर शहीद प्रतिमा व चौक की सुध लेने का आग्रह भी किया था। पत्र में बताया गया था कि पार्क बदहाल हो चुका है। प्रतिमा गिरने की कगार पर है। और तो और चौक पर होर्डिग्स आदि भी लगाए जा रहे हैं। पत्र में आशंका भी जताई गई थी कि हो सकता है कि होर्डिग्स लगाने के पैसे भी वसूले जा रहे हो? खैर, इस पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। होती तो दिखाई देती लेकिन वीरांगना की यह गुहार सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गई।
वैसे मैं हमेशा चहल चौक से ही गुजरता हूं और रोज ही वहां पर नए-नए होर्डिंग्स लगे देखता हूं। पिछले सप्ताह अचानक आइडिया आया कि यह तो शहीद प्रतिमा के आगे होर्डिंग्स लगाकर प्रतिमा को ढंक दिया गया है। यह तो शहीद का अपमान है। बस वहीं से फोटोग्राफर को फोन किया कि प्रतिमा के आगे लगे होर्डिंग्स का फोटो कर लेना। वह सामने से फोटो ले आया, जिसमें केवल होर्डिंग्स दिखाई दे रहा था। मैंने फोटो देखकर उसको दुबारा भेजा और कहा कि वह पीछे से भी लेकर आओ ताकि आसानी से समझ में आ जाए किस तरह से होर्डिग्स शहीद प्रतिमा के आगे आ रहा है। फोटो के बाद कैप्शन लिखने बैठा तो फिर विचार आया कि क्यों न इसको खबर ही बनाया जाए। फिर क्या था, खबर लिखी जो बीते रविवार को राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में सात जनवरी के अंक में पेज दो पर प्रमुखता से लगी। रविवार को मैं फिर चौक के आगे से गुजरा लेकिन होर्डिंग्स वैसे ही टंगा था। मन में ख्याल आया आज अवकाश का दिन है, सरकारी अमला इतनी तत्परता नहीं दिखाएगा। अगले दिन सोमवार आठ जनवरी को देखा कि होर्डिंग्स वैसे ही लगा है जबकि जिनका होर्डिंग्स था उन्होंने इसे हटवाने का बाकायदा बयान दिया था, जो सात जनवरी को लगी खबर के साथ लगा था। फिर फालोअप छापा गया, जो नौ जनवरी के अंक में लगा। हैरानी की बात थी कि अगले दिन मंगलवार नौ जनवरी को सुबह तक होर्डिंग्स नहीं हटा। मन में ख्याल आया कितने बेशर्म लोग हैं, अपनी बात पर भी कायम नहीं रहते हैं। खैर, शाम को आफिस आते देखा तो होर्डिंग्स हट चुका है। मन ही मन सुखद अनुभूति तथा विजय की अनुभूति वाली हल्की सी मुस्कान भी आई। वहीं से फोटोग्राफर को फोन किया। वह जब तक फोटो लेने गया अंधेरा हो चुका था। अंतत: फोटो आई। फिर खबर बनाई गई और शीर्षक लिखा हटा होर्डिंग्स निकला हीरो। यह असर दस जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ। असर की प्रतिक्रिया स्वरूप कहीं से कोई हलचल दिखाई नहीं दी। आज गुरुवार को सुबह शाखा प्रभारी के मोबाइल पर विदेश के नंबर से कॉल आई। वो मेरे पास आए और कहने लगे आपके लिए कॉल है। मैंने हैलो किया तो सामने से जो आवाज आई उसमें बेहद आत्मीयता और खुशी झलक रही थी। कहने लगे भाईसाहब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने शहीद प्रतिमा की सुध ली। हम प्रशासन के सामने गुहार लगा चुके लेकिन सुनवाई नहीं हुई। पत्रिका की खबर ने यह काम कर दिया। बधाई देने वाले शख्स रजवंतसिंह चहल थे, जो अपनी माता वीरांगना बलजीत कौर चहल के साथ केलीफोर्निया अमरीका में रहते हैं। उन्होंने बताया कि किसी परिचित के माध्यम से पता चला कि राजस्थान पत्रिका ने शहीद के सम्मान में खबर लिखी और उसका असर हुआ। इसके बाद उन्होंने व्हाट्सएप पर वह पत्र भी भेजे जो सितंबर माह में वो प्रशासन को दे चुके थे। साथ शहीद प्रतिमा के साथ वीरांगना की एक तस्वीर भी भेजी। उन्होंने एक बार फिर से धन्यवाद दिया । मैंने उनको कहा कि मैं भी पूर्व सैनिक का बेटा हूं तो उनका कहना था कि यह जानकर बेहद खुशी हुई कि आप आर्मी पर्सन के परिवार से हो। मैं आपका पूरा रिगार्ड करता हूं। साथ ही लिखा कि पोलिटिशियन हैव नो रिस्पेक्ट फॉर आवर एक्स आर्मी फैमिली। दिस मैक्स रियली सैड। मैं शहीद पुत्र की व्यथा को समझ चुका था। अब रहस्य से पर्दा उठा देता हूं कि जो होर्डिग्स था वह श्रीगंगानगर यूआईटी के चेयरमैन संजय महिपाल का था। खैर, मन को इस बात से सुकुन मिला कि मेरी खबर के कारण सात समुंदर पार बैठे परिवार को खुशी मिली।
सरकारी अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की खाल किस कदर मोटी हो गई,इसका इससे ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है। मैं तो इसको ढीठता की पराकाष्ठा कहूंगा। चिकना घड़ा जैसा विशेषण भी इनके लिए छोटा पड़ता है। मामला श्रीगंगानगर के एक चौक का है। यह चौक शहीद के नाम से है और चौक पर शहीद प्रतिमा भी लगी है। 1971 में शहीद हुए मेजर हरबंससिंह चहल के नाम पर यह चौक है। प्रशासन ने यहां उनकी प्रतिमा लगाई लेकिन बस इस काम से आगे कुछ नहीं हुआ। सुध न लेने से पार्क बदहाल हुआ। प्रतिमा गिरने की कगार तक पहुंच गई। शहीद वीरांगना ने बीते साल सितंबर माह में जिला प्रशासन को पत्र लिखकर शहीद प्रतिमा व चौक की सुध लेने का आग्रह भी किया था। पत्र में बताया गया था कि पार्क बदहाल हो चुका है। प्रतिमा गिरने की कगार पर है। और तो और चौक पर होर्डिग्स आदि भी लगाए जा रहे हैं। पत्र में आशंका भी जताई गई थी कि हो सकता है कि होर्डिग्स लगाने के पैसे भी वसूले जा रहे हो? खैर, इस पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। होती तो दिखाई देती लेकिन वीरांगना की यह गुहार सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गई।
वैसे मैं हमेशा चहल चौक से ही गुजरता हूं और रोज ही वहां पर नए-नए होर्डिंग्स लगे देखता हूं। पिछले सप्ताह अचानक आइडिया आया कि यह तो शहीद प्रतिमा के आगे होर्डिंग्स लगाकर प्रतिमा को ढंक दिया गया है। यह तो शहीद का अपमान है। बस वहीं से फोटोग्राफर को फोन किया कि प्रतिमा के आगे लगे होर्डिंग्स का फोटो कर लेना। वह सामने से फोटो ले आया, जिसमें केवल होर्डिंग्स दिखाई दे रहा था। मैंने फोटो देखकर उसको दुबारा भेजा और कहा कि वह पीछे से भी लेकर आओ ताकि आसानी से समझ में आ जाए किस तरह से होर्डिग्स शहीद प्रतिमा के आगे आ रहा है। फोटो के बाद कैप्शन लिखने बैठा तो फिर विचार आया कि क्यों न इसको खबर ही बनाया जाए। फिर क्या था, खबर लिखी जो बीते रविवार को राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में सात जनवरी के अंक में पेज दो पर प्रमुखता से लगी। रविवार को मैं फिर चौक के आगे से गुजरा लेकिन होर्डिंग्स वैसे ही टंगा था। मन में ख्याल आया आज अवकाश का दिन है, सरकारी अमला इतनी तत्परता नहीं दिखाएगा। अगले दिन सोमवार आठ जनवरी को देखा कि होर्डिंग्स वैसे ही लगा है जबकि जिनका होर्डिंग्स था उन्होंने इसे हटवाने का बाकायदा बयान दिया था, जो सात जनवरी को लगी खबर के साथ लगा था। फिर फालोअप छापा गया, जो नौ जनवरी के अंक में लगा। हैरानी की बात थी कि अगले दिन मंगलवार नौ जनवरी को सुबह तक होर्डिंग्स नहीं हटा। मन में ख्याल आया कितने बेशर्म लोग हैं, अपनी बात पर भी कायम नहीं रहते हैं। खैर, शाम को आफिस आते देखा तो होर्डिंग्स हट चुका है। मन ही मन सुखद अनुभूति तथा विजय की अनुभूति वाली हल्की सी मुस्कान भी आई। वहीं से फोटोग्राफर को फोन किया। वह जब तक फोटो लेने गया अंधेरा हो चुका था। अंतत: फोटो आई। फिर खबर बनाई गई और शीर्षक लिखा हटा होर्डिंग्स निकला हीरो। यह असर दस जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ। असर की प्रतिक्रिया स्वरूप कहीं से कोई हलचल दिखाई नहीं दी। आज गुरुवार को सुबह शाखा प्रभारी के मोबाइल पर विदेश के नंबर से कॉल आई। वो मेरे पास आए और कहने लगे आपके लिए कॉल है। मैंने हैलो किया तो सामने से जो आवाज आई उसमें बेहद आत्मीयता और खुशी झलक रही थी। कहने लगे भाईसाहब आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने शहीद प्रतिमा की सुध ली। हम प्रशासन के सामने गुहार लगा चुके लेकिन सुनवाई नहीं हुई। पत्रिका की खबर ने यह काम कर दिया। बधाई देने वाले शख्स रजवंतसिंह चहल थे, जो अपनी माता वीरांगना बलजीत कौर चहल के साथ केलीफोर्निया अमरीका में रहते हैं। उन्होंने बताया कि किसी परिचित के माध्यम से पता चला कि राजस्थान पत्रिका ने शहीद के सम्मान में खबर लिखी और उसका असर हुआ। इसके बाद उन्होंने व्हाट्सएप पर वह पत्र भी भेजे जो सितंबर माह में वो प्रशासन को दे चुके थे। साथ शहीद प्रतिमा के साथ वीरांगना की एक तस्वीर भी भेजी। उन्होंने एक बार फिर से धन्यवाद दिया । मैंने उनको कहा कि मैं भी पूर्व सैनिक का बेटा हूं तो उनका कहना था कि यह जानकर बेहद खुशी हुई कि आप आर्मी पर्सन के परिवार से हो। मैं आपका पूरा रिगार्ड करता हूं। साथ ही लिखा कि पोलिटिशियन हैव नो रिस्पेक्ट फॉर आवर एक्स आर्मी फैमिली। दिस मैक्स रियली सैड। मैं शहीद पुत्र की व्यथा को समझ चुका था। अब रहस्य से पर्दा उठा देता हूं कि जो होर्डिग्स था वह श्रीगंगानगर यूआईटी के चेयरमैन संजय महिपाल का था। खैर, मन को इस बात से सुकुन मिला कि मेरी खबर के कारण सात समुंदर पार बैठे परिवार को खुशी मिली।
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