यह कहानी सत्रह साल पहले की है। तब मैं ठीक से हिन्दी भी नहीं बोल पाता था। इसका बड़ा कारण था ग्रामीण जीवन में रहना और शिक्षा ग्रहण करना। पहली बार न केवल जिले से बाहर निकला बल्कि राज्य से बाहर भोपाल गया था। वहां लगभग साथी शहरी माहौल से थे। कुल सत्रह जनों का ग्रुप था। सभी देश के विभिन्न हिस्सों से थे। कोई भोपाल से तो कोई इंदौर से। कोई रायपुर से तो कोई सागर से। कोई भरतपुर से तो कोई जयपुर से। संयोग से इस ग्रुप में तीन जने मेरे जैसे ही थे। यह तीन साथी झुंझुनूं, चूरू व बीकानेर के थे और तीनों ही मेरी तरह ग्रामीण परिवेश में पले पढ़े। इस कारण मन थोड़ा बहुत लग गया। सभी के सभी पत्रकारिता का ककहरा सीखने के उद्देश्य से आए थे। इन सत्रह साथियों में तीन युवतियां भी थीं। भोपाल से लीना वर्मा, रायपुर से दिव्या तिवारी और इंदौर से श्रुति अग्रवाल।
लीना व दिव्या सामान्य परिवार से थी लेकिन श्रुति के पिता सेल्स टेक्स अधिकारी थे। पापा की प्यारी थी और बेटे जैसा ही लाड प्यार मिला लिहाजा, उसकी लाइफ स्टाइल और तौर तरीके शेष दोनों युवतियों से इतर थे। आत्मविश्वास तो गजब का। पत्रकारिता के प्रशिक्षण काल के दौरान ही श्रुति का जन्मदिन आया। हम सभी साथी तो इस बर्थ डे पार्टी के गवाह बने ही। विशेष रूप से श्रुति के पिता भी इस खुशी के मौके पर वहां पर पहुंचे थे। चूंकि भोपाल से इंदौर की दूरी ज्यादा नहीं है लेकिन यह प्रशिक्षण आवासीय था, लिहाजा हम सब वहीं रहते थे। संयोग से मेरा जन्मदिन भी उसी दौरान आया। मुझे याद है सभी साथियों की ओर से बतौर गिफ्ट मुझे एक शर्ट उपहार दिया गया था। गिफ्ट पंसद करने वालों में श्रुति भी थी। (सत्रह साल पहले की फोटो में जो शर्ट पहन रखी है, वही शर्ट मिला था गिफ्ट में) खैर, प्रशिक्षण के बाद हम सभी अलग-अलग हो गए। लेकिन पहले फोन से तथा बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े रहे। आज भी हम सभी साथियों का फेसबुक पेज पर ग्रुप है जबकि व्हाट्स एप पर भी सभी जुड़े है। हम भले ही अलग अलग संस्थानों में काम करते रहे लेकिन हम सभी का एक दूसरे से संपर्क है। श्रुति प्रिंट के बाद टीवी पत्रकारिता में आ गई लेकिन शादी के कुछ समय बाद पत्रकारिता को छोड़कर डॉक्टर पति के साथ न्यूजीलैंड शिफ्ट हो गई। अपरिहार्य कारणों से पूरे परिवार को कुछ समय बाद वापस भारत लौटना पड़ा। चूंकि पत्रकारिता श्रुति के लिए जुनून है, लिहाजा उसने फिर से पत्रकारिता शुरू की लेकिन यहां भी ज्यादा समय नहीं दे पाई। अपने किसी ड्रीम प्रोजेक्ट के कारण श्रुति को सक्रिय पत्रकारिता से फिर हटना पड़ा। इस बीच उसकी एक लघु फिल्म भी आई। श्रुति विशेषकर संवेदनशील, समसामयिक व महिला सशक्तीकरण जैसे विषयों पर अच्छी पकड़ रखती है। वह अपनी टीम के साथ इन दिनों जयपुर लिट्रेचर फेस्ट में आई थी। जयपुर के साथियों से मिलने के बाद श्रुति का घुमंतू मिजाज तथा बॅार्डर देखने की चाह उसे जयपुर से श्रीगंगानगर ले आया। हां हमारी श्रीमती निर्मल भी श्रुति से काफी समय से फेसबुक पर जुड़ी हैं, लिहाजा दोनों के बीच भी मधुर रिश्ते बन गए हैं। दो दिन के लिए श्रुति हमारी मेजबानी में श्रीगंगानगर में हैं। फिलहाल वह श्रीगंगानगर की सर्दी इस कदर परेशान है कि सुबह से ब्लोअर के आगे बैठी हैं। खैर, सत्रह साल बाद की मुलाकात में मुझे श्रुति में कोई भी बदलाव नजर नहीं आया लेकिन सुबह रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से उतरते समय उसकी पहली टिप्पणी थी। 'आप तो बिलकुल बदल गए। अंकल जी लगने लगे हो।' और मैं जवाब सुनकर मुस्कुरा भर दिया।
नोट : दोनों के सत्रह साल पहले और अब के फोटो।
लीना व दिव्या सामान्य परिवार से थी लेकिन श्रुति के पिता सेल्स टेक्स अधिकारी थे। पापा की प्यारी थी और बेटे जैसा ही लाड प्यार मिला लिहाजा, उसकी लाइफ स्टाइल और तौर तरीके शेष दोनों युवतियों से इतर थे। आत्मविश्वास तो गजब का। पत्रकारिता के प्रशिक्षण काल के दौरान ही श्रुति का जन्मदिन आया। हम सभी साथी तो इस बर्थ डे पार्टी के गवाह बने ही। विशेष रूप से श्रुति के पिता भी इस खुशी के मौके पर वहां पर पहुंचे थे। चूंकि भोपाल से इंदौर की दूरी ज्यादा नहीं है लेकिन यह प्रशिक्षण आवासीय था, लिहाजा हम सब वहीं रहते थे। संयोग से मेरा जन्मदिन भी उसी दौरान आया। मुझे याद है सभी साथियों की ओर से बतौर गिफ्ट मुझे एक शर्ट उपहार दिया गया था। गिफ्ट पंसद करने वालों में श्रुति भी थी। (सत्रह साल पहले की फोटो में जो शर्ट पहन रखी है, वही शर्ट मिला था गिफ्ट में) खैर, प्रशिक्षण के बाद हम सभी अलग-अलग हो गए। लेकिन पहले फोन से तथा बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े रहे। आज भी हम सभी साथियों का फेसबुक पेज पर ग्रुप है जबकि व्हाट्स एप पर भी सभी जुड़े है। हम भले ही अलग अलग संस्थानों में काम करते रहे लेकिन हम सभी का एक दूसरे से संपर्क है। श्रुति प्रिंट के बाद टीवी पत्रकारिता में आ गई लेकिन शादी के कुछ समय बाद पत्रकारिता को छोड़कर डॉक्टर पति के साथ न्यूजीलैंड शिफ्ट हो गई। अपरिहार्य कारणों से पूरे परिवार को कुछ समय बाद वापस भारत लौटना पड़ा। चूंकि पत्रकारिता श्रुति के लिए जुनून है, लिहाजा उसने फिर से पत्रकारिता शुरू की लेकिन यहां भी ज्यादा समय नहीं दे पाई। अपने किसी ड्रीम प्रोजेक्ट के कारण श्रुति को सक्रिय पत्रकारिता से फिर हटना पड़ा। इस बीच उसकी एक लघु फिल्म भी आई। श्रुति विशेषकर संवेदनशील, समसामयिक व महिला सशक्तीकरण जैसे विषयों पर अच्छी पकड़ रखती है। वह अपनी टीम के साथ इन दिनों जयपुर लिट्रेचर फेस्ट में आई थी। जयपुर के साथियों से मिलने के बाद श्रुति का घुमंतू मिजाज तथा बॅार्डर देखने की चाह उसे जयपुर से श्रीगंगानगर ले आया। हां हमारी श्रीमती निर्मल भी श्रुति से काफी समय से फेसबुक पर जुड़ी हैं, लिहाजा दोनों के बीच भी मधुर रिश्ते बन गए हैं। दो दिन के लिए श्रुति हमारी मेजबानी में श्रीगंगानगर में हैं। फिलहाल वह श्रीगंगानगर की सर्दी इस कदर परेशान है कि सुबह से ब्लोअर के आगे बैठी हैं। खैर, सत्रह साल बाद की मुलाकात में मुझे श्रुति में कोई भी बदलाव नजर नहीं आया लेकिन सुबह रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से उतरते समय उसकी पहली टिप्पणी थी। 'आप तो बिलकुल बदल गए। अंकल जी लगने लगे हो।' और मैं जवाब सुनकर मुस्कुरा भर दिया।
नोट : दोनों के सत्रह साल पहले और अब के फोटो।
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