बस यूं ही
पदमावत फिल्म को लेकर जो शोर था वह रफ्ता-रफ्ता कम हो रहा है। हालांकि कुछ लोग अभी भी मुखर हैं जबकि कुछ दबे स्वर में स्वीकारने लगे हैं कि फिल्म में कुछ गलत नहीं हैं। मैंने अभी तक फिल्म नहीं देखी है। लेकिन दो सजातीय बंधुओं से मैसेंजर व व्हाट्सएप पर हुआ वार्तालाप मौजूं लगा। देखिए क्या है माजरा....।
पहला वार्तालाप
बात बीते शनिवार-रविवार की दरम्यिानी रात करीब सवा बारह बजे की है। मोबाइल पर मैसेंजर में एक मैसेज डिस्प्ले हुए। देखा तो यह सजातीय बंधु का था। (नाम जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं )
मैसेज था 'फालतू का बवाल मचा दिया पदमावत पर'
मैं आशय समझ चुका था लिहाजा मैंने वापस सवाल किया। ' देख ली क्या आपने? कैसी लगी आपको?'
जवाब आया 'शानदार। कहीं भी राजपूती मान के साथ छेड़छाड़ नहीं'
मैंने कहा ' फिर एेसा क्या है जो सेनाएं विरोध कर रही हैं'
जवाब आया ' फिल्म पदमावती के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म में कोई गलत सीन नहीं है। सेनाओं का विरोध समझ से परे है।'
मैंने कहा कि ' पदमावती के नाम पर कहीं लोकप्रिय होना तो नहीं?'
जवाब आया 'पदमावती के सौन्दर्य के साथ-साथ उसके बुद्धिमानी का अनूठा संगम दिखाया गया है।'
मैंने फिर सवाल दागा ' बात बनी नहीं, शायद विरोध इसीलिए तो नहीं कहीं?'
अब थोड़ा विस्तार से जवाब आया ' गोरा बादल के साहस को दिखाया गया है। पर वो कुछ ही देर के लिए है जब दिल्ली से रतन सिंह को छुड़ा कर लाते हैं।' 'बात बनी ही नहीं या फिर हो सकता है फिल्म की पब्लिसिटी के लिए ड्रामा हो।' 'फिल्म में अलाउद्दीन की सोच और रणनीति पर पदमावती भारी है।'
मैंने दूसरे वाक्य के जवाब में कहा ' हां यह हो सकता है।'
फिर मैसेज आया ' फिल्म में राजपूती शौर्य मर्यादा और युद्ध में उसूलों के साथ लड़ाई को प्रदर्शित किया गया है।' ' बात बनी नहीं यह तो पता नहीं पर फिल्म में राजपूती मान पर कहीं कोई आंच नहीं है।' ' हां फिल्म को बाहुबली की तरह टच देने की कोशिश की गई है। तकनीक का शानदार प्रयोग किया गया है।' 'आप भी देखें।'
मैंने जवाब लिखा ' देखता हूं।'
इसके बाद फिर मैसेज आया ' और एक रिक्वेस्ट छोटे भाई की।' ' सेनाओं पर जरूर टिप्पणी कीजिएगा, ताकि इनको कुछ आइना दिखाया जा सके।'
इसके बाद मेरे को फिल्म का लिंक भेजा गया और साथ में मैसेज आया ' इस लिंक पर आप मूवी देख सकते हैं।'
मैंने ' ठीक है' लिखा और हमारा वार्तालाप समाप्त हो गया।
दूसरा वार्तालाप
यह वार्तालाप व्हाट्सएप का है । पदमावत के समर्थन में यह बंधु भी मेरे को काफी कुछ मैसेज कर चुके है। यह घटनाक्रम लंबा है। आज की ही बात करते हैं।
मैसेज आया ' कुछ पन्ने इतिहास के मेरे मुल्क के सीने में शमशीर हो गए, जो लड़े, जो मरे वो शहीद हो गए जो डरे जो झुके वो वजीर हो गए।' इसके साथ दो ब्लेक एंड व्हाइट फोटो भी आए। एक फोटो में कुछ लोग बैठे हैं, जिनके पैरों में बेडि़या हैं। दूसरा फोटो देश के पुराने नेताओं का था।
इसके बाद एक लिंक आया और लिखा कि इस लिंक पर साइन करें। इसके नीचे ही एक और मैसेज आया ' सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का लाइव टेलीकास्ट हो इसके लिए चेंज ओआरजी पर पिटीशन है। जितने ज्यादा साइन होंगे उतना ही ये मुद्दा मजबूत होगा और मजबूरन सरकार को लाइव दिखाना पड़ेगा। हर कार्यवाही को संसद की तरह।' जवाब में मैंने ईटीवी का एक लिंक भेज दिया। दरअसल यह लिंक ईटीवी के एक कार्यक्रम की फुटेज थी। इसमें राजस्थान व गुजरात के दो इतिहासकारों राजेन्द्रसिंह खंगारोत व बीएल गुप्ता के हवाले से बताया गया है कि उन्होंने श्री श्री रविशंकर के कहने पर यह फिल्म बैंगलुरू में देखी है। दोनों इतिहासकारों ने फिल्म को हरी झंडी देते हुए कहा कि फिल्म में आपत्तिजनक कुछ नहीं है। परम्परा के नाम पर इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए। खैर, यह लिंक जैसे ही मैंने भेजा। तत्काल जवाब आया ' बकवास' आगे लिखा ' सबसे बड़ी रकम मिली है इनको।' ' मैं नहीं मानता' तीसरा मैसेज आया ' लगता है फिल्म देखनी पड़ेगी' इसके बाद हंसी का इमोजी आया। अगला मैसेज था ' अनचाहे मन से केवल समीक्षक के तौर पर।' मैंने फिर कहा 'आपको सब बिके हुए लगते हैं, फिल्म देखो।' उनका कहना था ' जरूर, आज ही डाउनलोड करता हूं।' मैंने कहा ' मैं भी देखता हूं टाइम निकाल कर।' अगला मैसेज आया ' जरूर। देखने के बाद ही कुछ कहूंगा। तब तक इस मुद्दे पर मौन।' ' लेकिन टाकीज में मत जाना। हाथ जोडऩे का इमोजी के साथ आगे लिखा निवेदन है।' मैंने कहा श्रीगंगानगर में यह फिल्म नहीं लगी है। हालांकि इसका लिंक मेरे पास है पर मैं देख नहीं पाया। उस पर उन्होंने कहा ' आज देखना। लिंक मुझे भी भेजें।' मैंने लिंक भेज दिया तो उनका अगला मैसेज आया ' कृपया इस चैनल को एक भी स्टार के साथ रेंटिंग कराने में महत्वपूर्ण योगदान दें।' इसके बाद दो टीवी चैनल से संबंधित लिंक थे। फिर मैसेज आया ' लिंक पर जाकर रिव्यू ऑप्शन में पांच स्टार में से पहले वाले स्टार पर क्लिक कर दो और ऊपर पोस्ट का ऑप्शन आएगा, पोस्ट कर दो। रिव्यू के लिए मोर में जाना पड़ेगा।' मैंने कहा ' मैं टीवी देख नहीं पाता' वो बोले ' पर इतना काम तो करना चाहिए।' मैंने कहा ' फुर्सत ही नहीं मिलती।' सामने से एक हंसने का तथा हाथ जोड़े का इमोजी आया और वार्तालाप खत्म हो गया।
बहरहाल, पदमावत जब तक प्रदर्शित नहीं हुई थी तब कुछ और कहा जा रहा है लेकिन अब कुछ और कहा जा रहा है। मतलब विरोध जारी रखना है। चाहे वह किसी भी बहाने से हो। ठीक उस भेडि़ये की तरह जो एक मेमने पर पहले तो गाली देने का आरोप लगता है। फिर पानी गंदा करने का। लेकिन जब दोनों ही आरोप खारिज हो जाते हैं तो वह कह उठता है, मेरे को तो तेरा शिकार करना है। इतना समझ ले। मुझे पदमावत राग भी कुछ-कुछ नहीं बहुत कुछ एेसा ही प्रतीत हो रहा है।
पदमावत फिल्म को लेकर जो शोर था वह रफ्ता-रफ्ता कम हो रहा है। हालांकि कुछ लोग अभी भी मुखर हैं जबकि कुछ दबे स्वर में स्वीकारने लगे हैं कि फिल्म में कुछ गलत नहीं हैं। मैंने अभी तक फिल्म नहीं देखी है। लेकिन दो सजातीय बंधुओं से मैसेंजर व व्हाट्सएप पर हुआ वार्तालाप मौजूं लगा। देखिए क्या है माजरा....।
पहला वार्तालाप
बात बीते शनिवार-रविवार की दरम्यिानी रात करीब सवा बारह बजे की है। मोबाइल पर मैसेंजर में एक मैसेज डिस्प्ले हुए। देखा तो यह सजातीय बंधु का था। (नाम जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं )
मैसेज था 'फालतू का बवाल मचा दिया पदमावत पर'
मैं आशय समझ चुका था लिहाजा मैंने वापस सवाल किया। ' देख ली क्या आपने? कैसी लगी आपको?'
जवाब आया 'शानदार। कहीं भी राजपूती मान के साथ छेड़छाड़ नहीं'
मैंने कहा ' फिर एेसा क्या है जो सेनाएं विरोध कर रही हैं'
जवाब आया ' फिल्म पदमावती के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म में कोई गलत सीन नहीं है। सेनाओं का विरोध समझ से परे है।'
मैंने कहा कि ' पदमावती के नाम पर कहीं लोकप्रिय होना तो नहीं?'
जवाब आया 'पदमावती के सौन्दर्य के साथ-साथ उसके बुद्धिमानी का अनूठा संगम दिखाया गया है।'
मैंने फिर सवाल दागा ' बात बनी नहीं, शायद विरोध इसीलिए तो नहीं कहीं?'
अब थोड़ा विस्तार से जवाब आया ' गोरा बादल के साहस को दिखाया गया है। पर वो कुछ ही देर के लिए है जब दिल्ली से रतन सिंह को छुड़ा कर लाते हैं।' 'बात बनी ही नहीं या फिर हो सकता है फिल्म की पब्लिसिटी के लिए ड्रामा हो।' 'फिल्म में अलाउद्दीन की सोच और रणनीति पर पदमावती भारी है।'
मैंने दूसरे वाक्य के जवाब में कहा ' हां यह हो सकता है।'
फिर मैसेज आया ' फिल्म में राजपूती शौर्य मर्यादा और युद्ध में उसूलों के साथ लड़ाई को प्रदर्शित किया गया है।' ' बात बनी नहीं यह तो पता नहीं पर फिल्म में राजपूती मान पर कहीं कोई आंच नहीं है।' ' हां फिल्म को बाहुबली की तरह टच देने की कोशिश की गई है। तकनीक का शानदार प्रयोग किया गया है।' 'आप भी देखें।'
मैंने जवाब लिखा ' देखता हूं।'
इसके बाद फिर मैसेज आया ' और एक रिक्वेस्ट छोटे भाई की।' ' सेनाओं पर जरूर टिप्पणी कीजिएगा, ताकि इनको कुछ आइना दिखाया जा सके।'
इसके बाद मेरे को फिल्म का लिंक भेजा गया और साथ में मैसेज आया ' इस लिंक पर आप मूवी देख सकते हैं।'
मैंने ' ठीक है' लिखा और हमारा वार्तालाप समाप्त हो गया।
दूसरा वार्तालाप
यह वार्तालाप व्हाट्सएप का है । पदमावत के समर्थन में यह बंधु भी मेरे को काफी कुछ मैसेज कर चुके है। यह घटनाक्रम लंबा है। आज की ही बात करते हैं।
मैसेज आया ' कुछ पन्ने इतिहास के मेरे मुल्क के सीने में शमशीर हो गए, जो लड़े, जो मरे वो शहीद हो गए जो डरे जो झुके वो वजीर हो गए।' इसके साथ दो ब्लेक एंड व्हाइट फोटो भी आए। एक फोटो में कुछ लोग बैठे हैं, जिनके पैरों में बेडि़या हैं। दूसरा फोटो देश के पुराने नेताओं का था।
इसके बाद एक लिंक आया और लिखा कि इस लिंक पर साइन करें। इसके नीचे ही एक और मैसेज आया ' सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का लाइव टेलीकास्ट हो इसके लिए चेंज ओआरजी पर पिटीशन है। जितने ज्यादा साइन होंगे उतना ही ये मुद्दा मजबूत होगा और मजबूरन सरकार को लाइव दिखाना पड़ेगा। हर कार्यवाही को संसद की तरह।' जवाब में मैंने ईटीवी का एक लिंक भेज दिया। दरअसल यह लिंक ईटीवी के एक कार्यक्रम की फुटेज थी। इसमें राजस्थान व गुजरात के दो इतिहासकारों राजेन्द्रसिंह खंगारोत व बीएल गुप्ता के हवाले से बताया गया है कि उन्होंने श्री श्री रविशंकर के कहने पर यह फिल्म बैंगलुरू में देखी है। दोनों इतिहासकारों ने फिल्म को हरी झंडी देते हुए कहा कि फिल्म में आपत्तिजनक कुछ नहीं है। परम्परा के नाम पर इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए। खैर, यह लिंक जैसे ही मैंने भेजा। तत्काल जवाब आया ' बकवास' आगे लिखा ' सबसे बड़ी रकम मिली है इनको।' ' मैं नहीं मानता' तीसरा मैसेज आया ' लगता है फिल्म देखनी पड़ेगी' इसके बाद हंसी का इमोजी आया। अगला मैसेज था ' अनचाहे मन से केवल समीक्षक के तौर पर।' मैंने फिर कहा 'आपको सब बिके हुए लगते हैं, फिल्म देखो।' उनका कहना था ' जरूर, आज ही डाउनलोड करता हूं।' मैंने कहा ' मैं भी देखता हूं टाइम निकाल कर।' अगला मैसेज आया ' जरूर। देखने के बाद ही कुछ कहूंगा। तब तक इस मुद्दे पर मौन।' ' लेकिन टाकीज में मत जाना। हाथ जोडऩे का इमोजी के साथ आगे लिखा निवेदन है।' मैंने कहा श्रीगंगानगर में यह फिल्म नहीं लगी है। हालांकि इसका लिंक मेरे पास है पर मैं देख नहीं पाया। उस पर उन्होंने कहा ' आज देखना। लिंक मुझे भी भेजें।' मैंने लिंक भेज दिया तो उनका अगला मैसेज आया ' कृपया इस चैनल को एक भी स्टार के साथ रेंटिंग कराने में महत्वपूर्ण योगदान दें।' इसके बाद दो टीवी चैनल से संबंधित लिंक थे। फिर मैसेज आया ' लिंक पर जाकर रिव्यू ऑप्शन में पांच स्टार में से पहले वाले स्टार पर क्लिक कर दो और ऊपर पोस्ट का ऑप्शन आएगा, पोस्ट कर दो। रिव्यू के लिए मोर में जाना पड़ेगा।' मैंने कहा ' मैं टीवी देख नहीं पाता' वो बोले ' पर इतना काम तो करना चाहिए।' मैंने कहा ' फुर्सत ही नहीं मिलती।' सामने से एक हंसने का तथा हाथ जोड़े का इमोजी आया और वार्तालाप खत्म हो गया।
बहरहाल, पदमावत जब तक प्रदर्शित नहीं हुई थी तब कुछ और कहा जा रहा है लेकिन अब कुछ और कहा जा रहा है। मतलब विरोध जारी रखना है। चाहे वह किसी भी बहाने से हो। ठीक उस भेडि़ये की तरह जो एक मेमने पर पहले तो गाली देने का आरोप लगता है। फिर पानी गंदा करने का। लेकिन जब दोनों ही आरोप खारिज हो जाते हैं तो वह कह उठता है, मेरे को तो तेरा शिकार करना है। इतना समझ ले। मुझे पदमावत राग भी कुछ-कुछ नहीं बहुत कुछ एेसा ही प्रतीत हो रहा है।
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