Saturday, September 29, 2018

इक बंजारा गाए-46

शहर फिर बदरंग
सुंदर शहर, सजे हुए चौक चौराहे, साफ सुधरे डिवाइडर किसको अच्छे नहीं लगते। बाहर से आने वालों को भी यह सफाई व सुंदरता सुकून देती है लेकिन राजनीति से वास्ता रखने वाले अधिकतर लोगों को इस सुकून से कोई मतलब नहीं है। अपना चेहरा चमकाने के चक्कर में वो चौक चौराहों को बदरंग करने से गुरेज नहीं करते। राजनीति में नई-नई इंट्री मारने वाले एक नेताजी को भी चौक चौराहों पर टंगकर सस्ती लोकप्रियता पाने का चस्का जोरों से लगा है। समूचे शहर को पोस्टरों से बदरंग कर दिया है। शहर की सुंदरता को ग्रहण लगाकर इस तरह का व्यक्तिगत प्रचार लोगों को हजम कम ही हो रहा है।
आस्था के नाम पर
शहर की यातायात व्यवस्था रामभरोसे ही है। यातायात पुलिस के जवान नुक्कड़ व चौराहों पर चालान काटते जरूर दिख जाएंगे लेकिन वो अवैध पार्र्किंग को लेकर गंभीर नहीं है। यही हाल अतिक्रमण का है। आस्था के नाम पर शहर की मुख्य सड़क पर अस्थायी दुकानें सज जाती हैं। एेसे में यातायात की वैकल्पिक व्यवस्था तो की जाती है लेकिन अस्थायी दुकानों को लेकर कभी गंभीरता से नहीं सोचा गया। मुख्य सड़क को बंद कर अस्थायी दुकानें लगाने का शायद श्रीगंगानगर इकलौता उदाहरण है। अस्थायी दुकानों को अस्थायी जगह उपलब्ध करवाने की दिशा में भी सोचना चाहिए।
गीदड़ भभकी
निर्धारित कीमत से अधिक मूल्य वसूलने की शिकायत पर अंकुश लगाने में नाकाम आबकारी विभाग देर रात तक खुलने वाली शराब की दुकानों को लेकर कतई गंभीर नहीं है। हां, नए पुलिस कप्तान आने के बाद दो तीन बार निर्देश जारी हुए लेकिन कारगर कार्रवाई न होने के कारण यह गीदड़ भभकी ही ज्यादा साबित हुई। शहर के मुख्य मार्गों पर देर रात तक शराब की बिक्री बेरोकटोक जारी है। अधिक कीमत के नाम पर आबकारी ने तो आंखें शुरू से ही मूंद रखी हैं। पुलिस की चेतावनी भी अब बेअसर साबित हो रही है। यही कारण है कि शराब के कारिंदे अपना धंधा बेखौफ कर रहे हैं।
दूसरे दिन दूरियां
मुख्यमंत्री की गौरव यात्रा को श्रीगंगानगर से गए दो सप्ताह से ज्यादा समय हो गया लेकिन इससे चर्चे आज भी नुक्कड़ या पान की दुकान पर सुनने को मिल जाते हैं। श्रीगंगानगर आगमन पर एक विधायक की मुख्यमंत्री से नजदीक देखी गई लेकिन दूसरे दिन उस प्रकार की नजदीकी दिखाई नहीं दी। बताते हैं कि रात को मुख्यमंत्री को स्थानीय जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों ने विधायक के बारे में अच्छा खासा फीडबैक दिया था। राजनीतिक गलियारों मंे चर्चा है कि सिर्फ एक ही दिन में नजदीकी का दूरियों में बदल जाने के पीछे फीडबैक के कमाल को माना जा रहा है।
घर का पूत कुंवारा...
राजस्थानी में एक चर्चित कहावत है, 'घर का पूत कुंवारा डोले, पड़ोसी का फेरा Ó इस कहावत का तात्पर्य यही है कि आदमी खुद के घर की चिंता तो करता नहीं है लेकिन दूसरों को लेकर चिंतित रहता है। कुछ यही हाल यूआईटी का है। यूआईटी के ठीक सामने की सड़क सीवरेज लाइन के कारण साल भर से टूटी पड़ी है। मुख्यमंत्री के आगमन पर इस सड़क को आधा बनाकर छोड़ दिया है। अब यूआईटी नगर परिषद की सड़कों को लेकर तो चिंतित है लेकिन खुद की सड़कों की सुध लेने की फुर्सत नही है। कितना बेहतर हो, यूआईअी चिंता पहले अपने क्षेत्र की करे, दूसरे की चिंता तो बाद की बात है।
सरकारी धन
गाहे-बगाहे सरकारी राशि के दुरुपयोग की खबरें आती रहती हैं। कुछ एेसा ही श्रीगंगानगर में होने वाला है। सड़क निर्माण को लेकर यूआईटी व नगर परिषद के बीच चल रही नूरा कुश्ती में भले में यूआईटी किसी तरह सफल हो गई लेकिन मामले में पेच फिर फंस रहा है। जिन सड़कों को बनाया जा रहा है या बनाया जाएगा, उनको थोड़े समय बाद में टूटना तय है। यह बात स्थानीय अधिकारी भी जानते हैं, लेकिन ऊपर का आदेश मानकर सबने आंखें मूंद कर रखी है। सरकारी राशि का सदुपयोग हो या दुरुपयोग अधिकारियों को इससे कोई सरोकार भी नहीं है, क्योंकि जैसा ऊपर चाहेगा वैसा ही होगा।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 सितम्बर 18 के अंक में प्रकाशित । 

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