Saturday, September 29, 2018

इक बंजारा गाए-48


चौक की हकीकत
आसमां को जिद बिजलियां गिराने की, और हमें जिद है वहीं आशियाना बनाने की। यह चर्चित शेर इन दिनों यूआईटी पर बिलकुल सटीक बैठ रही है। दरअसल, शिव चौक से चहल चौक जाने वाले मार्ग पर बीच में एक तिराहे पर यूआईटी ने एक चौक बनाकर उसका नामकरण कर दिया। क्यों और किसलिए बनाया यह तो यूआईटी के नुमाइंदे ही बेहतर जानते हैं, लेकिन यह यातायात नियमों के बिलकुल विपरीत था। बनने के बाद यह चौक तीन चार टूट चुका है। अब भी सप्ताह भर से टूटा हुआ लेकिन जबरन चौक बनाने वालों को अब फुरसत नहीं है, भले ही आवागमन में दिक्कत हो।
पार्किंग के मजे
शिव चौक से जिला अस्पताल तक यूआईटी सर्विस रोड बना रही है। पहले यह सडक़ विवाद में आ गई जब वन विभाग ने पेड़ों काटने की बात पर इसका निर्माण रुकवाया दिया। जयपुर व बीकानेर की भागदौड़ के बाद इस सडक़ काम तो चालू हुआ लेकिन यह सर्विस रोड आमजन के किसी उपयोग नहीं आ रही है। जहां-जहां यह बन चुकी है, वहां-वहां इस पर रात दिन ट्रक खड़े रहते हैं। पक्की जगह की पार्र्किंग की अपने ही मजे हैं, हालांकि कलक्टर इस पार्र्किंग को लेकर नाराजगी जता चुके थे। वैसे तो इस मार्ग पर भारी वाहनों की इंट्री का समय पर तय पर है, लेकिन सब के सब चुप हैं।
भागदौड़ शुरू
चुनावी घडिय़ां जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं। संभावित प्रत्याशियों की तैयारियों के साथ धडकऩे भी तेज हो रही हैं। टिकट किसको मिलेगी, किसकी कटेगी यह चिंता भी दिन रात खाए जा रही है। वैसे टिकट के दावेदारों ने इन दिनों दिल्ली व जयपुर में डेरा डाल रखा है। और जिनको टिकट का आश्वासन मिल चुका है, वह मैदान में उतरकर प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। चर्चाएं तो यहां तक कि टिकट के लिए संभावित दावेदारों को कई तरह के पापड़ बेलने पड़ रहे हैं। अपने आकाओं को खुश करने के लिए कई जतन भी किए जा रहे हैं। टिकट पाना कोई आसान काम थोड़े ही है।
इनकी बल्ले-बल्ले
रोडवेज कर्मचारियों की हड़ताल के चलते सवारियां तो परेशान हो ही रही हैं। लेकिन रोडवेज बस स्टैंड, जहां प्राइवेट बसें नहीं जाती हैं, वहां के दुकानदार भी बेरोजगार हो गए हैं, उनकी ग्राहकी मारी गई। वैसे इस हड़ताल के चलते लोक परिवहन व प्राइवेट बसों का काम जरूर चमक गया है। इसके अलावा जीप आदि फिर भी से प्रासंगिक हो गई हैं। सभी को जरूरत से ज्यादा भार जो मिलने लगा है। वैसे प्राइवेट बस ऑपरेटरों की इस बल्ले-बल्ले में पुलिस व परिवहन विभाग की भी एक तरह मौन सहमति है। भले ही वाहन ओवरलोड होकर ही क्यों न चलें। यात्रियों की तो मजबूरी है।
फिर आस
कहते हैं राजनीतिक लोगों की इच्छा कभी मरती नहीं हैं। वह ताउम्र जवां रहती हैं। जब-जब चुनाव नजदीक आते हैं इच्छाएं उफान पर होती हैं। भले ही पहले कुछ कहा या किया लेकिन चुनाव के वक्त सब बिसरा दिया जाता है। श्रीगंगानगर के एक नेताजी के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। पहले बढ़ती उम्र का हवाला देकर राजनीतिक विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने की सार्वजनिक घोषणा करने वाले नेताजी अब अपनी ही बात से पलटते नजर आ रहा है। भले ही कोई पार्टी नेताजी को निमंत्रण दे या न दे लेकिन सांस है तब तक आस है कि तर्ज पर उन्होंने जनसंपर्क शुरू कर दिया है।
धर्मसंकट
शहर के एक विभाग में नए-नए आए अधिकारी इन दिनों गहरे धर्मसंकट से गुजर रहे बताए। सुनने में आ रहा है कि ये यह अधिकारी पहले श्रीगंगानगर में ही एक दूसरे विभाग में थे। वहां किसी मामले में फंस गए तो जिले से बाहर जाना पड़ा। अधिकारी की बीच भंवर फंसी नैया को एक नेताजी ने पार लगाया। खैर, इन अधिकारी को शहर में लाने के पीछे अब दूसरे अधिकारी का हाथ बताया जा रहा है। अब दोनों ही नेताजी इस अधिकारी से मदद की अपेक्षा रखते हैं लेकिन दोनों नेताओं के पाले दीगर हैं, लिहाजा अधिकारी धर्मसंकट में है कि किसका समर्थन करे और किसका नहीं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 27 सितंबर 18 के अंक में प्रकाशित ।

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