Saturday, September 29, 2018

आखिर किस पर यकीन करें

बस यूं ही
डाक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है लेकिन व्यावसायिकता की अंधी दौड़ से यह भगवान भी अछूता नहीं रहा है। मेरी यह पोस्ट लिखने के पीछे किसी को बदनाम करना या किसी की भावनाएं आहत करना नहीं है बल्कि यह सवाल खड़ा करना है कि आखिर मरीज किस चिकित्सक पर यकीन करे और क्यों करे। आज मैं पांच उदाहरण आपसे साझा रहा हूं जिनसे मेरा व्यक्तिगत वास्ता रहा है। पहला मामला करीब दस साल पहले का है। झुंझुनूं में रहते वक्त शाम को उकड़ू बैठा था तो बच्चे पीठ पर सवार हो गए और खड़ा होने का आग्रह करने लगे। खड़ा हुआ तो घुटने में खटक की आवाज आई। दूसरे दिन सोकर उठा था तो घुटने पर सूजन थी, खड़ा हुआ तो मैं चलने की स्थिति में नहीं था। दो जनों की मदद से मुझे एक सरकारी अस्पताल से सेवानिवृत्त चिकित्सक के निजी क्लिनिक ले जाया गया। उन्होंने बताया कि घुटने के बुश क्रेक हो चुके हैं, लिहाजा जयपुर ऑपरेशन करवाना पड़ेगा। मैं सोच में डूबा था कि 32 साल की उम्र में घुटने का ऑपरेशन क्या उचित रहेगा। खैर, किसी ने सलाह दी तो मैं एक देसी वैद्य के पास गया। उन्होंने दूध के साथ एक बूटी रोजाना पीने को कहा। दस दिन यह सब किया। तब से घुटने में कोई दर्द नहीं है। चिकित्सक की सलाह मानता तो ऑपरेशन हो चुका होता।
दूसरा मामला चार साल पहले का है, गांव में वॉलीबाल खेलते समय दूसरे घुटने में दर्द हुआ। तब छत्तीसगढ़ था, पैन कीलर खाकर वहां पहुंचा। तभी तबादला हुआ तो बीकानेर आया। वहां चिकित्सकों को दिखाया तो कहने लगे घुटने का लिंगामेंट गड़बड़ा गया है ऑपरेट करना पड़ेगा। फिर ऑपरेशन की बात से मैं डर गया था। किसी ने फिजियो के पास जाने की सलाह दी। उसने लगातार नी कैप पहनने की सलाह दी। कुछ समय लगाने के बाद नी कैप लगाना छोड़ दिया। तब से अब तक कोई दर्द नहीं है। यहां भी चिकित्सक की सलाह मानता तो ऑपरेशन करवा चुका होता।
तीसरा मामला एक फुंसी से जुड़ा है, जिसको मारवाड़ी में ईंठ भी कहते हैं। मतलब नीचे वाले होठ के साइड में एक छोटी सी फुन्सी होती है। शेव करते समय वह छिल गई तो असहनीय पीड़ा होने लगी। यह मामला तीन साल पहले का है। आखिरकार बीकानेर के एक चर्चित एवं देश विदेश में नाम कमाने वाले चिकित्सक के घर देर रात मैं गया। उन्होंने एक लैंस लगाकर गौर से देखा और बोले, आपके शरीर में वायरस चला गया है। मैं चकित था, पूछा वायरस क्या होता है? चिकित्सक बोले आपने किसी की जूठन खाई है। मैंने कहा नहीं, कतई नहीं। चिकित्सक बोले हम शादी समारोह में जाते हैं, वहां टेंट हाउस के बर्तन व क्रॉकरी आदि सही तरीके से धुली हुई नहीं होती। एेसे में संक्रमण होने की आशंका रहती है। मैंने पूछा तो वायरस का अब क्या इलाज होगा? चिकित्सक बोले यह स्थायी रूप से अंदर ही रहेगा। यह रह रहकर सक्रिय होगा, इसलिए आपको दवा खानी पड़ेगी तथा कुछ परहेज रखने होंगे। परहेज के नाम पर मेरा माथा फिर ठनका, मैंने पूछा क्या? तो बोले आपको बच्चों व पत्नी से दूर रहना होगा। अपने बर्तन भी अलग रखें। यहां तक कि आफिस में आप डिस्पोजल इस्तेमाल करें, क्योंकि आपका यूज किया हुआ बर्तन किसी ने उपयोग किया तो उसको भी संक्रमण हो जाएगा। चिकित्सक की बातों से मैं भी बुरी तरह घबरा गया। घर आया तो धर्मपत्नी ने लटका चेहरा देखकर वजह पूछी, तब मेरे मुंह से इतना ही निकला कि आज से मैं जात बाहर हो गया हूं। मेरे बर्तन व चारपाई अलग लगा दो। मेरा सवाल सुनकर वह भी चौंकी लेकिन उसने दूसरे चिकित्सक को दिखाने की सलाह दी। खैर, दूसरे दिन सबसे पहले यही काम किया। बीकानेर के एक दूसरे चर्म रोग विशेषज्ञ के पास गया। उन्होंने सात दिन की दवा लिखी और कहां चिंता की कोई जरूरत नहीं है। शंका का समाधान पूरी तरह करने के चक्कर में मैं तीसरे चिकित्सक के पास गया। उन्होंने कहा कि यह सीजनली इंफेक्शन है, आप तीन दिन दवा खाओ ठीक हो जाएगा। खैर, तीन साल में उस वायरस का कभी अटैक नहीं हुआ। हां पहले चिकित्सक के अनुसार चलता तो आज भी मेरे बर्तन व चारपाई अलग ही होते।
चौथा मामला श्रीगंगानगर आने के बाद का है। एक दिन थकान महसूस हुई और हल्का बुखार था तो आराम कर लिया। दूसरे दिन आफिस आया तो स्टाफ वालों ने कहा भाईसाहब आपको जांच तो करवा ही लेनी चाहिए। आजकल सत्तर तरह की बीमारियां फैली हुई हैं। मैं पूरी तरह ठीक महसूस कर रहा था कि लेकिन साथियों की सलाह पर जांच करवाई तो मुझे डेंगू बताया गया। हालांकि ब्लड प्लेट सही थी। दो दिन के आराम की सलाह दी गई थी, खूब पानी पीने तथा कीवी फल खाने को कहा गया। दो दिन बाद जांच करवाई तो डेंगू गायब। चिकित्सकों की ही मानें तो दो दिन में डेंगू ठीक होता ही नहीं है, मतलब डेंगू था ही नहीं, जबरन बता दिया गया। सोचिए तब मेरी मानसिक स्थिति कैसी रही होगी।
पांचवां मामला ताजा ही है। मतलब दो तीन दिन पहले का ही। धर्मपत्नी कई दिनों से परेशान थी। कभी कहीं दर्द तो कभी कहीं। श्रीगंगानगर में एक चिकित्सक से जांच करवाई तो उसने बताया कि आपको थाइराइड है और उसने दवा भी शुरू कर दी। करीब सप्ताह भर बाद एक परिचित नर्सिंगकर्मी की सलाह पर फिर से जांच करवाई तो पता चला कि थाइराइड है ही नहीं। अब पहले चिकित्सक की बात पर यकीन कर लिया जाता है तो दवा चलती ही रहती।
अब बताएं क्या सोचते हैं आप?

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