Saturday, September 29, 2018

अव्यवस्थाओं का मेला

प्रसंगवश 
ग्रामीण परिवेश के मेले निस्संदेह लोकरंजन के प्रमुख केन्द्र होते हैं। लेकिन इनमें होने वाली अव्यवस्थाएं मन को खिन्न कर देती हैं। विशेषकर धार्मिक स्थलों पर लगने वाले मेलों में श्रद्धालुओं की संख्या की बजाय व्यवस्थाएं ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान होती हैं। गंभीर बात तो यह है कि धार्मिक मेलों में आस्था व श्रद्धा के समानांतर कुछ इस तरह के कुत्य भी सामने आने लगे हैं, जो श्रद्धालुओं की भावनाओं को आहत करते हैं।
इतना ही नहीं सुरक्षा व व्यवस्था में खामी देखकर मेलों में नशे के कारोबारियों तथा अवैध काम करने वालों की घुसपैठ भी होने लगी है। हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील का गोगामेड़ी मेला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला है। एक माह तक चलने वाले इसमें देश के विभिन्न कोनों से पन्द्रह से बीस लाख तक श्रद्धालु पहुंचते हैं। अभी मेला जारी है। अव्यवस्थाओं व आपराधिक प्रकरणों को लेकर यह मेला चर्चा में रहता आया है।
बीते सप्ताह ही मेले में एक टैंट में ताशपत्ती पर जुआ खेलते सोलह लोगों को पकड़ा गया। पोस्त भी बरामद हुई। आइजी के निर्देश पर हुई इस छापेमार कार्रवाई के बाद गोगामेड़ी के थानाप्रभारी को भी हटा दिया। खैर, इतना कुछ होने के बावजूद मेले में शराब की बिक्री लगातार होती है। चूंकि मेले में आने वालों में देहाती लोग ज्यादा होते हैं, लिहाजा यहां नशा भी उसी प्रकार का है। चोरी-चकारी होना तो मेले में सामान्य-सी बात है। इस तरह की अनैतिक गतिविधियों के अलावा गोगामेड़ी में सबसे बडा संकट स्वच्छता का भी है। हर तरफ बिखरी गंदगी और उसमें उठती सड़ांध समूचे वातावरण को दुर्गंधमय बना देती है। गंदगी का आलम मेला खत्म होने के बाद तक रहता है। कहने को मेले में स्थायी व अस्थायी शौचालय बनाए जाते हंै लेकिन श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए यह बेहद कम हैं। ऐसे में यहां आने वाले श्रद्धालु हों, चाहे दुकानदार वो खुले में ही शौच जाते हैं।
देवस्थान विभाग को इस मेले से चढ़ावे व अस्थायी दुकानों के किराये के रूप में जो कमाई होती है, उसके अनुपात में सुविधाएं पर्याप्त नजर नहीं आती। कहने को तो व्यवस्थाएं चाक-चौबंद रखने को पुलिस व प्रशासन का अमला तैनात रहता है, फिर भी अव्यवस्थाएं हावी हैं। बहरहाल, मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। वो मेले में निर्भीक होकर उसका आनंद उठाए तथा उनको स्वच्छ वातावरण मिले तो निस्संदेह गोगामेड़ी आने वालों को और अधिक प्रसन्नता होगी।
देवस्थान विभाग व स्थानीय प्रशासन को व्यवस्थाओं में सुधार के रास्ते भी खोजने चाहिए। मेला समापन के बाद संतोष की सांस लेने की बजाय उसकी समीक्षा होनी चाहिए ताकि अगली बार उस तरह की समस्या ही नहीं आए। मेले की अव्यवस्थाओं व अनैतिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के प्रयास करने ही होंगे।
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राजस्थान पत्रिका के राजस्थान.के समस्त संस्करणों में 8 सितंबर 18 के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित।

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