Saturday, September 29, 2018

कारगर विकल्प


प्रसंगवश
जल संसाधन विभाग की ओर से इंदिरा गांधी नहर में अगले साल 25 मार्च से 5 जून तक कुल 70 दिन की नहरबंदी प्रस्तावित है। इस नहर से श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर सहित प्रदेश के दस जिले जुड़े हैं। लाजिमी है कि नहरबंदी के कारण सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलेगा, साथ ही पेयजल संकट गहराने की आशंका भी रहेगी।
नहरों में रखरखाव के चलते नहरबंदी वैसे तो हर साल होती है। इसकी अवधि 30 से 35 दिन तक की होती है, पर इस बार यह अवधि लगभग दोगुनी है। इतनी लंबी नहरबंदी को लेकर किसानों की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। किसानों की दलील है कि इससे उनकी दो फसलें प्रभावित होंगी। उनका मानना है गेहूं की फसल अप्रेल मध्य तक पक कर तैयार होती है और आखिर में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। नहरबंदी के कारण यह पानी नहीं मिलेगा तो उत्पादन प्रभावित होगा।
किसानों की मानें तो इससे नरमा-कपास की बुवाई भी प्रभावित होगी, क्योंकि नहरबंदी 5 जून तक है। जब नहर में पानी छोड़ा जाएगा तो यह दस दिन बाद 15 जून तक खेतों में पहुंचेगा। ऐसे में नरमे की बुवाई का अनुकूल समय गुजर जाएगा। किसान इस नहरबंदी की अवधि कम किए जाने की मांग कर रहे हैं। जबकि जल संसाधन विभाग का मानना है कि नहर की हालत खराब होने के कारण राजस्थान अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं ले पाता, क्योंकि नहर टूटने का खतरा बना रहता है। नहरों की मरम्मत समय की मांग है, यह जितनी जल्दी हो जाए, उतना ही भविष्य में फायदा होगा। किसानों को तात्कालिक नुकसान के बजाय भविष्य के लाभ को ध्यान में रखते हुए नहरबंदी का समर्थन करना चाहिए। वैसे भी इंदिरा गांधी नहर के जीर्णोद्धार को इतना समय चाहिए भी।
नहरबंदी के दौरान जल संसाधन विभाग के सामने दूसरी बड़ी चुनौती पेयजल की रहेगी। हालांकि नहरबंदी के दौरान पेजयल संकट न गहराए, इसके लिए विभाग नहरों में डाइवर्शन (बीच-बीच में पानी रोक कर, साइड से कच्ची नहर निकालकर) के माध्यम से पेयजल आपूर्ति करता है। लेकिन, अतीत के अनुभव बताते हैं कि यह तरीका कारगर नहीं रहता। इस बार नहरबंदी की अवधि लंबी है और विभाग परंपरागत तरीका अपनाएगा तो नि:संदेह पेयजल संकट की चुनौती फिर खड़ी हो
सकती है।
विभाग जो भी वैकल्पिक उपाय करेगा, उसमें क्या व किस तरह की परेशानी आ सकती है, इसका आकलन समय रहते कर लिया जाना चाहिए। पेयजल आपूर्ति में अगर किसी तरह की खामी या कमी रही तो जनाक्रोश भडकऩे का अंदेशा भी रहता है। उम्मीद है कि जल संसाधन विभाग नहरबंदी के दौरान पेयजल के परंपरागत तरीकों में कुछ बदलाव कर कारगर वैकल्पिक उपाय करेगा ताकि आमजन के हलक सूखे नहीं।
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 राजस्थान पत्रिका के राजस्थान में प्रकाशित तमाम संस्करणों में 19 सितंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

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