Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा-8

सुबह आंख जल्दी खुल गई थी। कहीं जाने का कार्यक्रम तय होता है तो यकीनन आपकी आंख अलार्म से पहले खुल जाती है। मेरा साथ तो अक्सर एेसा होता है। दिमाग की घड़ी पहले ही अलर्ट कर देती है। घड़ी का अलार्म बजता है तब तक सुस्ती दूर हो चुकी होती है। खैर, सारी तैयारी करने के बाद मैंने सुरेश को बुलाया और उसको बताया कि मुझे ग्रामीण क्षेत्र के टूर पर जाना है, इसलिए यहां से एक कार की व्यवस्था करनी है। सुरेश थोड़ी ही देर में एक शख्स को लेकर हाजिर हुआ। वह ट्रेवल एजेंसी से जुडा हुआ था। मैंने उससे गाड़ी की रेट पूछी तो उसने बताया कि यहां सौ किलोमीटर के 14 सौ रुपए हैं। यह यात्रा आप अधिकतम दस घंटे में तय कर सकते हो। आगे प्रत्येक दस किलोमीटर पर सौ रुपए बढ़ते जाएंगे और एक घंटा भी बढ़ता जाएगा। एेसा इसलिए होता है कि यहां जो लोग घूमने आते हैं तो कहीं रुककर या बंगाल की खाड़ी के किसी बीच पर नहाने या खाने का प्रोग्राम करते हैं। इस कारण यहां समय भी किराये के साथ जोड़ा गया है। मुझे विजयनगरम जाना था। उसकी विशाखट्टनम से दूरी 60 किलोमीटर के करीब है। इस तरह आना-जाना 120 किमी हो गया। एेसे में हमारा सौदा सोलह सौ रुपए और बारह घंटे में तय हुआ।
मैंने ट्रेवल्स एजेंसी वाले को साफ साफ कह दिया था कि मुझे एेसा चालक चाहिए जो मेरी बातों को समझ सकें। मतलब हिन्दी समझने व बोलने वाला हो तथा इलाके का जानकार हो। उसने कहा सर जी हो जाएगा। इसके बाद मैं बगल के रेस्टोरेंट गया। नाश्ते में एक परांठा लिया और कार का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर में कार वाला आ गया था। मैंने सामान जमाया और होटल के काउंटर पर आया। रिशेप्सन पर बैठी युवती ने टूटी फूटी हिन्दी में कहा सर बिल कच्चा चाहिए या पक्का। मैं समझा नहीं तो उसने बताया कि कच्चा मतलब बिना जीएसटी का और पक्का मतलब जीसएटी का। खैर, उसने बिना जीएसटी का बिल बनाया। मुझे दो सौ रुपए कम देने पड़े। मेरा बैग कार की डिग्गी में रख दिया था। अब मैं चालक की बगल की सीट पर बैठ गया और कार चल पड़ी। चालक 56 साल का अधेड़ था। नाम पूछा तो वेंकट बताया। हिन्दी ज्यादा तो बोल पा रहा था लेकिन वह मुझे समझाने का भरपूर प्रयास कर रहा था। होटल से चलकर हम शहर में आए तो वेंकट अब चालक के साथ-साथ गाइड की भूमिका में भी था।
वैसे गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र में अपनी बात ठीक से कह पाना और सामने वाले की बात भली भांति समझ पाना एक हिन्दी भाषी के लिए आसान काम नहीं है। बिना संवाद के आदमी गूंगे के समान ही हो जाता है। दो दिन शहर व देहात की यात्रा करते हुए मोटा अंतर यही समझ आया कि चुनाव का असली रंग देहात यानि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा चढ़ा हुआ है। सबसे पहले वेंकट मुझे भाजपा कार्यालय लेकर गया। यह शहर से थोड़ा बाहर था। कार्यालय के बाहर किसी तरह का कोई बोर्ड या झंडा नहीं लगा था। अंदर प्रवेश किया तो देखा वहां एक छोटा सा टैंट लगा हुआ है। पास के एक भवन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के साथ एक स्थानीय प्रत्याशी का बड़ा सा होडिँग रखा था। उस वक्त वहां चार पांच लोग जमा थे। मैं सामने कार के पास बैठे बुजुर्ग से मुखातिब हुआ तो उन्होंने बताया कि नेताजी का इंतजार हो रहा है। उस वक्त वहां एक दो झंडे जरूर टंगे हुए थी बाकी सारे समेटे हुए एक कुर्सी पर पड़े थे। मौके की नजाकत भांपते हुए मैं बाहर आया तो पुराने होर्डिंग्स के दो ढेर देखकर चौंका। अधिकतर होर्डिंग्स में उपराष्ट्रपति वेंकया नायडू नजर आए। यहां से हमने सीधे भीमली बीच की ओर रुख किया। तभी रास्ते में सड़क किनारे तेलुगुदेशम पार्टी का कार्यालय नजर आया। उस वक्त कार्यालय के आगे महज एक चौपहिया वाहन खड़ा था। कार्यालय के बाहर बहुत से पोस्टर लगे थे, लेकिन अंदर ज्यादा चहल पहल नहीं थी। इसी कार्यालय से थोड़ा आगे कस्बे की तरफ बढे तो युवाजन श्रमिक रायतु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआर कांग्रेस पाटीज़् ) का कार्यालय दिखाई दिया। यह कार्यालय भी पोस्टरों के रंग भी रंगा हुआ था। अंदर तीन चार युवा कुसिज़्यों पर बैठे चुनावी मंत्रणा में मशगूल थे। यहां से थोड़ा आगे बढ़े तो अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की पार्टी जन सेना का कार्यालय का नजर आया। पवन कल्याण फिल्म अभिनेता चिंरजीव के भाई हैं। चिरंजीव ने भी राजनीति में भाग्य आजमाया था, अलग पार्टी भी बनाई लेकिन वो ज्यादा सफल नहीं हुए थे। पवन कल्याण के कार्यालय में युवाओं की टीम चुनावी सामग्री आदि को व्यवस्थित कर वितरित करने में जुटी थी। यहां से हम आगे बढे तो तगरपोवलसा नामक कस्बे में भाजपा की चुनावी रैली नजर आई। भीड़ तो नहीं थी लेकिन भाजपा के झंडे के रंग की साडी पहने महिलाएं पार्टी का झंडा उठाए बढ़ी जा रही थी। रैली में भीड़ ज्यादा नहीं थी लेकिन फिर भी लोग उसे देखने को रुक रहे थे। थोड़ी देर यहां रुकने के बाद हम आगे बढ़ गए। कार चालक वेंकट कहने लगा, आंध्रा में मुकाबला हमेशा एकतरफा ही होता रहा है लेकिन इस बार मामला रोचक है और कुछ भी हो सकता है वाले हालात बन गए हैं। विशाखापट्टनम से विजयनगरम के लिए अलग से हाइवे है लेकिन वेंकट मुझे दूसरे रास्ते से लेकर आया। यह रास्ता बंगाल की खाड़ी के किनारे-किनारे विजयनगरम तक गया है। करीब 25 किलोमीटर तक सड़क बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ चलती है। सागर की उठती-उफनती लहरों को चलते-चलते भी देखा जा सकता है।
क्रमश:

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