Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा-3

मौसम में नमी थी और रात की नींद और थकान की वजह से मुझे सर्दी का एहसास होने लगा था। घर आते ही मैंने कंबल ली और सोने का प्रयास करने लगा लेकिन नींद नहीं आई। अखबार पढऩे तथा मोबाइल पर अपेडट देखने के बाद जानकारी में आया कि हमारी श्रीमती की स्कूल- कॉलेज के जमाने की दोस्त अर्चना पांडे भाईसाहब के घर आने वाली हैं। वो फेसबुक से मेरे से जुड़ी हुई हैं, लिहाजा, मेरा भी उनसे परिचय है। वो मूलत: कानपुर की रहने वाली हैं लेकिन उनके भाई यहां बैंक में कार्यरत हैं और नजफगढ़ ही रहते हैं। उनकी माताजी का ऑपरेशन हुआ था, इस कारण वो नजफगढ़ आई थीं। उन्होंने करीब नौ बजे आने का समय दिया था। नजफगढ़ में सीवरेज, नाली व सड़कों का काम बड़े स्तर पर चल रहा है। इस कारण पूरा नजफगढ़ खुदा पड़ा है।रिक्शे वाले ज्रल्दी से तैयार नहीं होते हैं। यही अर्चना पांडे के साथ हुआ। उनको घर आते-आते ग्यारह बज गए। तब तक मैं बिस्तर में ही था। वो अपनी भाभाजी के साथ आई थीं। चाय के बाद खाना हुआ। करीब साढ़े ग्यारह बजे उनके जाने के बाद मैं बाथरूम की तरफ बढ़ा तो पता चला कि टॉवल तो श्रीगंगानगर ही रह गया है। भाभीजी ने एक टॉवल निकालकर दिया। नहाने के बाद कपड़े पहने तो पता चला कि बेल्ट भी श्रीगंगानगर ही भूल आया। भाईसाहब ने अपना बेल्ट दिया। करीब सवा बारह हो गए थे। मुझे अपने परिचित से मिलने जाना था। वहां ज्यादा समय लग गया। लौटा तो साढ़े पांच का समय हो चुका था। शाम को नहाने और भोजन के करने के बाद मैं करीब साढे आठ बजे हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के लिए कैब पकड़ी और रवाना हो गया। सवा सवा दस बजे के करीब मैं स्टेशन पहुंच गया। रात्रि 11 बजे की ट्रेन थी। रेलवे स्टेशन हो बस स्टैंड में अक्सर में समय से पहले ही पहुंचता हूं। भले ही बाद में इंतजार करना पड़े लेकिन समय से पहले पहुंचने पर अनावश्यक भागदौड़ नहीं करनी पड़ती। यह आदत शुरू से ही रही है। ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी लेकिन आरक्षित कोच अंदर से बंद थे। सामान्य कोच में सवारियों को बैठने का सिलसिला शुरू हो चुका था। आरक्षित कोच में चद्दर और तकिये आदि जमाने का काम चल रहा था, जो शीशे के अंदर से दिखाई दे रहा था। आखिरकार कोच खुला और मैं अपनी निर्धारित सीट पर पहुंचा। मेरे सामने की बर्थ पर मध्यप्रदेश के हौशंगाबाद का एक जैन दपंती था। दोनों पति-पत्नी कॉलेज व्याख्याता थे, फुर्सत में देहरादून आदि जगह घूम कर आए थे। कोच अटेंडेंट चद्दर, कंबल व तकिया ले आया था। मैंने पॉकेट खोला तो एक चद्दर मैली थी। अटेंडेट शक्ल से साउथ इंडियन लग रहा था। मैं जोर से चिल्लाया, यह क्या मजाक है। यूज की हुई चद्दर फिर से दे रहे हो? वह मुझे चुप करने वाले अंदाज में कुछ बड़बड़ाया और दूसरा पैकेट लाकर दे दिया लेकिन उसमें भी हालत वैसी ही थी। मैंने इस बात की जानकारी अपने ट्विटर हैंडल से वायरल की। रेल मंत्रालय व रेल मंत्री आदि को टैग भी किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। अक्सर खबरें पढी है टवीट किया तो कार्रवाई हुई। राहत मिली लेकिन यहां सब बेमानी सा नजर आया। भूलने की आदत यहां भी रही। पैनकीलर लेकर नहीं आया था। तो ठीक से सोते नहीं बन रहा था। पूरा शरीर दर्द कर रहा था। सारी रात बैचेनी में ही निकली। क्रमश:

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