विशाखापट्नम रेलवे स्टेशन पर उतरा तो मुझे यह स्टेशन अन्य स्टेशन के मुकाबले अलहदा नजर आया। एकदम चकाचक। गंदगी का कहीं नामोनिशान तक नहीं। स्टेशन से बाहर आकर मैंने मोतीलाल जी अग्रवाल को फोन लगाया।
मोतीलालजी से मेरा सीधा परिचय नहीं था। किसी जानकार ने उनके नंबर दिए थे और उन्हीं का हवाला देकर मैंने उनको फोन लगाया। करीब दस-पन्द्रह मिनट के बाद उनका बेटा मोटरसाइकिल पर आया। मैं मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ गया। मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि वे लोग मूलत: राजस्थान के डूंगरपुर के रहने वाले हैं। तेरह साल से यहीं टाइल्स का कारोबार करते हैं। मैंने किसी राजस्थानी खाने वाले होटल के आसपास ठहरने का कहा तो वह मुझे जयपुर पैलेस नामक होटल ले गया। रिसेप्शन पर बैठे शख्स शंकर शर्मा खाटूश्यामजी के पास के गांव के ही निकले। रजिस्टर में नाम-पत्ता दर्ज करवाते वक्त मैंने उनसे चुनाव की हल्की सी चर्चा की तो उनका कहना था कि यहां तो इस बार जगन के चर्चे ज्यादा हैं। तभी वहां खड़े मुकेश जो कि खुद खाटूश्याम के हैं, मुझे रुम तक छोड़ गए। मैंने वही सवाल मुकेश से दागा तो उसने भी जगन का ही नाम लिया। इसके बाद सुरेश बावलिया मुझे रुम तक छोड़ गए। सुरेश बावलिया भी खाटूश्याम जी के पास ही रहने वाले निकले। मैंने वही सवाल सुरेश से दागा तो उसने भी जगन का ही नाम लिया। हजरत निजामुद्दीन दिल्ली से करीब 38-39 घंटे बाद होटल पहुंचकर बेड पर लेटा तो थकान से शरीर दोहरा हो गया था। अपरान्ह के तीन बज चुके थे। थोड़ी देर लेटने के बाद नहाने की तैयारी की तो देखता हूं अंडर वियर व बनियान तो गायब हैं। याद आया वह तो नजफगढ़ में सुबह नहाया था तब छत्त पर सुखाए थे, वहीं पर भूल आया। अब क्या किया जाए। रिशेप्सन की घंटी बजाई। सुरेश हाजिर हुआ। मैंने उससे एक कपड़े धोने की साबुन तथा अंडरवियर व बनियान लाने को कहा। करीब आधा घंटे बाद सुरेश वह सब ले आया। इसके बाद फिर नहाना हुआ। थोड़ी देर टीवी देखा। अखबार के लिए आधी खबर तैयार की। फिर लेट गया। शाम हो चुकी थी। होटल से बाहर आया। पैदल ही बाजार घूमा। शाम को आकर होटल के बगल में बने रेस्टोरेंट में स्पेशल थाली मंगवाई। वैसे रेस्टोटेंट का रेट कार्ड मैंने रुम में ही देख लिया था। सब्जी, रोटी, चावल व पापड़ आदि देखकर लगा नहीं कि आंध्रा में हूं। क्योंकि रवाना होते समय काफी लोगों ने कहा था कि वहां के खाने से आप रंज नहीं पाओगे। भोजन कर रुम पर आया और थोड़ी देरी आईपीएल देखा। स्कोर कार्ड व खिलाडि़यों केनाम तेलुगू में आ रहे थे। वह तो खिलाडि़यों की टी शर्ट पर लिखे नाम के आधार पर ही पहचान की। थकान की वजह से नींद आ रही थी लेकिन मैच का मोह बाधक बन रहा था। खैर मैच देखने के बाद सो गया। अगले दिन गुरुवार सुबह नहाकर मैं शहर में निकला। घूमने के लिए ऑटो लिया। ऑटोचालक हिन्दी नहीं जानता तो वापस होटल लेकर आया और सुरेश ने दुभाषिए की भूमिका निभाई। ठेठ मारवाड़ी होने के बावजूद सुरेश फर्राटेदार तेलुगू बोल रहा था। ऑटो वाले से सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय या चुनावी कार्यालय दिखाने की बात हुई। उसने छह सौ रुपए मांगे लेकिन मामला साढ़े पांच सौ में फाइनल हुआ। ऑटो से सबसे पहले मैं रामकृष्ण बीच, जो कि आरके बीच के नाम से प्रसिद्ध है वहां गया। वहां अपने मोबाइल से दो चार फोटो व सेल्फी लेने के बाद वापस मुड़ा तो एक किशोर कैमरा लेकर पास आया और कहने लगा सर, फोटो करवा लीजिए। बीस रुपए में पांच। मुझे मामला जमा और मैंने हां कर दी। अब तो वह मुझे एंगल बताने लगा। कभी हाथ ऊपर करवाए तो कभी मोबाइल लेकर सेल्फी लेने का पोज बनवाए। आरके बीच पर छोटी-छोटी पहाडि़यां हैं, जो पानी के थपेड़ों से घिस-घिस कर छोटी हो गई है। वह मुझको चार पांच जगह ले गया और बहुत सारे क्लिक कर दिए। फिर कैमरे से उसने सारे फोटो भी दिखाए। फोटो अच्छे आए थे, लिहाजा मन ललचा गया। मैंने फोटो की संख्या पूछी तो उसने 42 बताई। बीस रुपए की पांच फोटो के हिसाब से मैंने कहा करीब दो सौ रुपए के करीब हो गए तो वह कहने लगा, नहीं सर। सौ रुपए की पांच है। डवलप करके भी देगा। मैंने कहा डवलप करने की बात तो पहले भी की थी। पर वह नहीं माना। इधर फोटो अच्छे होने के कारण मेरा मन ललचा रहा था। आखिरकार उसने ही दूसरा प्रस्ताव रखा कि, सर डवलप रहने दो, आपको सारे फोटो मोबाइल में कॉपी कर देता हूं। इसके बाद उसने दो चार फोटो और खींचे कुल 46 हो गए थे। कहने लगा सर, आप पांच सौ रुपए दे दीजिए। मैंने ज्यादा मोलभाव नहीं किया। फोटो पहले उसने कॉपी करने चाहे लेकिन उसके कैमरे की पिन मोबाइल में सेट नहीं हुई। बाद में शेयरइट से फोटो उसने मेरे मोबाइल में भेज दी। वहां से मैं सीधा ऑटो में आया और चल पड़ा। विशाखापट्नम घूमते मैंने पाया कि वहां की साफ सफाई बहुत अच्छी है। कई जगह सीवरेज व नाली बनने का काम जारी है। विशाखापट्नम वैसे खूबसूरत शहर है। पहाड़ की गोद में बसा है। इस कारण बसावट एक सतह पर नहीं है। यहां से सबसे पहले मैं एनटीआर भवन (तेलुगुदेशम पार्टी के कार्यालय भवन) गया। उस वक्त वहां सन्नाटा पसरा था। वहां कोई नहीं था। एक महिला व पुरुष दिखाए दिए तो आगे बढ़ा। मैंने उनको अपना परिचय दिया। इसके बाद भवन के सामने लगी तेलुगूदेशम पार्टी संस्थापक एनटी रामाराव की आदमकद प्रतिमा की फोटो ली। तभी वहां खड़ी महिला बोली हमारी फोटो भी साथ में लो। मैंने दोनों से वहां पसरे सन्नाटे की वजह पूछी तो बताया कि चुनाव है, सब फील्ड में हैं। प्रेस, मीडिया सब शाम को आते हैं। वहां से मैं आगे बढ़ा तो कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डा. टी. सुब्बारामी रेड्डी के आवास पहुंचा। यहां भी सन्नाटा ही था। आवास के बाहर शिवरात्रि पूजा का होर्डिंग्स टंगा था। अंदर गया तो एक युवक दिखाई दिया। मैंने पूछा तो उसने बताया नेताजी शहर से बाहर गए हैं।
क्रमश:
मोतीलालजी से मेरा सीधा परिचय नहीं था। किसी जानकार ने उनके नंबर दिए थे और उन्हीं का हवाला देकर मैंने उनको फोन लगाया। करीब दस-पन्द्रह मिनट के बाद उनका बेटा मोटरसाइकिल पर आया। मैं मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ गया। मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि वे लोग मूलत: राजस्थान के डूंगरपुर के रहने वाले हैं। तेरह साल से यहीं टाइल्स का कारोबार करते हैं। मैंने किसी राजस्थानी खाने वाले होटल के आसपास ठहरने का कहा तो वह मुझे जयपुर पैलेस नामक होटल ले गया। रिसेप्शन पर बैठे शख्स शंकर शर्मा खाटूश्यामजी के पास के गांव के ही निकले। रजिस्टर में नाम-पत्ता दर्ज करवाते वक्त मैंने उनसे चुनाव की हल्की सी चर्चा की तो उनका कहना था कि यहां तो इस बार जगन के चर्चे ज्यादा हैं। तभी वहां खड़े मुकेश जो कि खुद खाटूश्याम के हैं, मुझे रुम तक छोड़ गए। मैंने वही सवाल मुकेश से दागा तो उसने भी जगन का ही नाम लिया। इसके बाद सुरेश बावलिया मुझे रुम तक छोड़ गए। सुरेश बावलिया भी खाटूश्याम जी के पास ही रहने वाले निकले। मैंने वही सवाल सुरेश से दागा तो उसने भी जगन का ही नाम लिया। हजरत निजामुद्दीन दिल्ली से करीब 38-39 घंटे बाद होटल पहुंचकर बेड पर लेटा तो थकान से शरीर दोहरा हो गया था। अपरान्ह के तीन बज चुके थे। थोड़ी देर लेटने के बाद नहाने की तैयारी की तो देखता हूं अंडर वियर व बनियान तो गायब हैं। याद आया वह तो नजफगढ़ में सुबह नहाया था तब छत्त पर सुखाए थे, वहीं पर भूल आया। अब क्या किया जाए। रिशेप्सन की घंटी बजाई। सुरेश हाजिर हुआ। मैंने उससे एक कपड़े धोने की साबुन तथा अंडरवियर व बनियान लाने को कहा। करीब आधा घंटे बाद सुरेश वह सब ले आया। इसके बाद फिर नहाना हुआ। थोड़ी देर टीवी देखा। अखबार के लिए आधी खबर तैयार की। फिर लेट गया। शाम हो चुकी थी। होटल से बाहर आया। पैदल ही बाजार घूमा। शाम को आकर होटल के बगल में बने रेस्टोरेंट में स्पेशल थाली मंगवाई। वैसे रेस्टोटेंट का रेट कार्ड मैंने रुम में ही देख लिया था। सब्जी, रोटी, चावल व पापड़ आदि देखकर लगा नहीं कि आंध्रा में हूं। क्योंकि रवाना होते समय काफी लोगों ने कहा था कि वहां के खाने से आप रंज नहीं पाओगे। भोजन कर रुम पर आया और थोड़ी देरी आईपीएल देखा। स्कोर कार्ड व खिलाडि़यों केनाम तेलुगू में आ रहे थे। वह तो खिलाडि़यों की टी शर्ट पर लिखे नाम के आधार पर ही पहचान की। थकान की वजह से नींद आ रही थी लेकिन मैच का मोह बाधक बन रहा था। खैर मैच देखने के बाद सो गया। अगले दिन गुरुवार सुबह नहाकर मैं शहर में निकला। घूमने के लिए ऑटो लिया। ऑटोचालक हिन्दी नहीं जानता तो वापस होटल लेकर आया और सुरेश ने दुभाषिए की भूमिका निभाई। ठेठ मारवाड़ी होने के बावजूद सुरेश फर्राटेदार तेलुगू बोल रहा था। ऑटो वाले से सभी राजनीतिक दलों के कार्यालय या चुनावी कार्यालय दिखाने की बात हुई। उसने छह सौ रुपए मांगे लेकिन मामला साढ़े पांच सौ में फाइनल हुआ। ऑटो से सबसे पहले मैं रामकृष्ण बीच, जो कि आरके बीच के नाम से प्रसिद्ध है वहां गया। वहां अपने मोबाइल से दो चार फोटो व सेल्फी लेने के बाद वापस मुड़ा तो एक किशोर कैमरा लेकर पास आया और कहने लगा सर, फोटो करवा लीजिए। बीस रुपए में पांच। मुझे मामला जमा और मैंने हां कर दी। अब तो वह मुझे एंगल बताने लगा। कभी हाथ ऊपर करवाए तो कभी मोबाइल लेकर सेल्फी लेने का पोज बनवाए। आरके बीच पर छोटी-छोटी पहाडि़यां हैं, जो पानी के थपेड़ों से घिस-घिस कर छोटी हो गई है। वह मुझको चार पांच जगह ले गया और बहुत सारे क्लिक कर दिए। फिर कैमरे से उसने सारे फोटो भी दिखाए। फोटो अच्छे आए थे, लिहाजा मन ललचा गया। मैंने फोटो की संख्या पूछी तो उसने 42 बताई। बीस रुपए की पांच फोटो के हिसाब से मैंने कहा करीब दो सौ रुपए के करीब हो गए तो वह कहने लगा, नहीं सर। सौ रुपए की पांच है। डवलप करके भी देगा। मैंने कहा डवलप करने की बात तो पहले भी की थी। पर वह नहीं माना। इधर फोटो अच्छे होने के कारण मेरा मन ललचा रहा था। आखिरकार उसने ही दूसरा प्रस्ताव रखा कि, सर डवलप रहने दो, आपको सारे फोटो मोबाइल में कॉपी कर देता हूं। इसके बाद उसने दो चार फोटो और खींचे कुल 46 हो गए थे। कहने लगा सर, आप पांच सौ रुपए दे दीजिए। मैंने ज्यादा मोलभाव नहीं किया। फोटो पहले उसने कॉपी करने चाहे लेकिन उसके कैमरे की पिन मोबाइल में सेट नहीं हुई। बाद में शेयरइट से फोटो उसने मेरे मोबाइल में भेज दी। वहां से मैं सीधा ऑटो में आया और चल पड़ा। विशाखापट्नम घूमते मैंने पाया कि वहां की साफ सफाई बहुत अच्छी है। कई जगह सीवरेज व नाली बनने का काम जारी है। विशाखापट्नम वैसे खूबसूरत शहर है। पहाड़ की गोद में बसा है। इस कारण बसावट एक सतह पर नहीं है। यहां से सबसे पहले मैं एनटीआर भवन (तेलुगुदेशम पार्टी के कार्यालय भवन) गया। उस वक्त वहां सन्नाटा पसरा था। वहां कोई नहीं था। एक महिला व पुरुष दिखाए दिए तो आगे बढ़ा। मैंने उनको अपना परिचय दिया। इसके बाद भवन के सामने लगी तेलुगूदेशम पार्टी संस्थापक एनटी रामाराव की आदमकद प्रतिमा की फोटो ली। तभी वहां खड़ी महिला बोली हमारी फोटो भी साथ में लो। मैंने दोनों से वहां पसरे सन्नाटे की वजह पूछी तो बताया कि चुनाव है, सब फील्ड में हैं। प्रेस, मीडिया सब शाम को आते हैं। वहां से मैं आगे बढ़ा तो कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डा. टी. सुब्बारामी रेड्डी के आवास पहुंचा। यहां भी सन्नाटा ही था। आवास के बाहर शिवरात्रि पूजा का होर्डिंग्स टंगा था। अंदर गया तो एक युवक दिखाई दिया। मैंने पूछा तो उसने बताया नेताजी शहर से बाहर गए हैं।
क्रमश:
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