Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा- 11

यकीन मानिए किसी अनहोनी की आशंका में मेरी आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। एक मित्र को फोन लगाकर सारे घटनाक्रम से अवगत कराया। उससे मदद का आग्रह भी किया लेकिन वहां से भी जवाब आया नहीं। सच में बहुत डरा हुआ था। किसी तरह रात बीती। सुबह जल्दी तैयार होकर चेक आउट करने आया। और पांच रुपए का नोट थमाया तो उसने सारे रख लिए। मैंने कहा बात तो एक हजार की हुई थी, बोला नहीं 11 सौ ही लगेंगे। मैं ज्यादा उलझा नहीं। अपना बैग उठाया और सड़क पर आ गया। सामने एक टैम्पों को हाथ दिया। स्टेशन छोडऩे के उसने पचास रुपए मांगे। मैंने कहा आधा किलोमीटर तो है भी नहीं है और पचास रुपए किस बात के। वह कहने लगा रास्ता इधर से नहीं है घूमकर जाना पड़ेगा। मैं उसकी चालाकी समझ रहा था। दो गलियां घूमाने के बाद वह वापस उसी सड़क पर आया जहां से कुछ दूरी पर मैंने ऑटो पकड़ा था। मैं उसकी चालाकी पर मुस्करा रहा था। खैर, उसको पचास का नोट थमाकर मैं टिकट काउंटर की तरफ बढा। विजयवाड़ा की टिकट मांगी तो उसने कहा उसने कहा अभी कोई ट्रेन नहीं है। मैंने जब भी है टिकट तो दे। उसके टिकट लेकर प्लेटफार्म नंबर पूछकर मैं सीढियां चढ़ गया। सुबह के आठ बज चुके थे। प्लेटफार्म नंबर दस। महिला कर्मचारी स्टेशन की सफाई करने में जुटी थी। पूरा स्टेशन एकदम साफ सुथरा। तभी आंध्रा एक्सप्रेस आकर रुकी। यह ट्रेन दिल्ली के लिए थी। पूरी की पूरी वातानुकूलित। मैं आराम से एक कुर्सी पर बैठा ट्रेन रवानगी का इंतजार करने लगा। चूंकि मेरे पास सामान्य टिकट था, इस कारण नजर टीटीई को भी खोज रही थी कि उससे पहले पूछ लूं कि टिकट अंदर बन जाए तो मैं बैठूं, क्योंकि मैं उस ट्रेन में बैठने का पात्र नहीं था। नौ बजकर बीस मिनट के करीब सफेद ड्रेस में एक जना दिखाई दिया। मेरी आंखों में थोड़ी चमक आई। मैं उसकी तरफ बढ़ा और एक्सक्यूज मी, मुझे विजयवाड़ा जाना है। क्या मैं इस ट्रेन में यात्रा कर सकता हूं। मेरे पास सामान्य टिकट है। मेरी बात सुनकर टीटीई ने कहा साढ़े पांच सौ रुपए लगेंगे, आप किसी भी डिब्बे में बैठ जाएं। एक लंबी सांस छोड़ते हुए खुद को रीलेक्स महसूस करते हुए मैं एक डिब्बे में सवार हो गया। लगभग सीट खाली पड़ी थी। बैठ सीट के नीचे के लगाया और लैबटॉप ऊपर की बर्थ पर रखकर दिया। मैं अब टीटीई का इंतजार कर रहा था। साढ़े पांच सौ रुपए व सामान्य टिकट मैंने हाथ में रखे हुए थे। करीब आधा घंटे बाद वह आया मैंने टिकट मांगा तो हाथ से इशारा करके मुझे रुकने की कहकर वह आगे बढ़ गया। बीच में टीटीई कई बार आया मैने पांच सौ पचास रुपए और टिकट उसकी तरफ िकया लेकिन लेकिन उसने न तो टिकट बनाई न ही सीट दी। बस इतना कहा वेट कीजिए। इस दौरान काफी स्टेशन आए और सभी सीट भर चुकी थी। अब मेरी पास खड़ा रहकर यात्रा करने के अलावा कोई चारा नहीं था। कोच के अंदर खड़ा होना भी कोई आसान काम नहीं है। आने जाने वालों के कारण मुझे बार बार एक तरफ होना पड़ रहा था। इन सबसे बचने के लिए मैं कोच से निकलकर दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया....तभी वहां एक युवक आया। मेरी आदत है सो पूछ लिया कहां जाओगे , उसने बताया राजस्थान। इतना सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई... तेलुगू बाहुल्य इलाके में कोई हिन्दी भाषी तो मिला....खैर, मैंने पूछा राजस्थान.में कहां से, जवाब आया झुंझुनूं से....मैंने फिर पूछा झुंझुनूं में कहां से, तो जवाब मिला.पिलानी। पिलानी या कोई गांव? तो बताया गया जसवंतपुरा। सुनकर खुशी हुई। मैंने भी कहा मैं भी झुंझुनूं से ही हूं...यह.जानकर उस बीएसएफ जवान.के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई..वह जल्दी में था..नाम नहीं पूछ पाया न बता पाया। युवक चला गया। इस बीच टीटीई फिर टकराया मैंने फिर सीट के लिए पूछा तो उसने कहा कहा बी 4 में सीट नंबर 71 खाली हो रही है। वहां चले जाओ। जब सीट 71के लिए मैं उस कोच को क्रोस कर दूसरे कोच में जाने लगा तो पीछे से आवाज आई...मुडकर देखा तो वही जवान अडेंटेड की सीट पर सोते हुए पूछ रहा था सीट मिल.गई क्या..मैंने स्वीकृति में.सिर.हिलाया तो उसके चेहरे पर फिर.मुस्कान थी। मैं निर्धारित सीट पर आकर बैठ गया। करीब दस मिनट बाद ही टीटीई आया और इशारा किया मैंने फिर पांच सौ पचास और टिकट निकाले और उसको दे दिए....उसने पचास का नोट और टिकट मुझे फुर्ती से वापस थमाए और बडी तेजी से आगे बढ गया....मैं आवाज लगाता ही रह गया लेकिन वह नहीं रुका। मेरे सामने बैठे शख्स पोल्लाराव हंसने लगे। टिकट नहीं दी मतलब पांच सौ का नोट गया जेब में.....विजयवाड़ा आने को था, एेसे में टीटीई को तलाशना मेरे लिए संभव नहीं था। और तलाश भी लेता तो शायद वह मुझे टिकट नहंी देता। खैर, करीब चार बज चुके थे। मैं विजयवाड़ा स्टेशन उतरा। स्टेशन से बाहर की तरफ आया। एक ऑटो से बोला मुझे एेसी जगह छोड़ दे जहां होटल भी हो और मारवाड़ी भोजनालय की व्यवस्था हो। उसने हामी में सिर हिलाया और एक होटल ले आया।
क्रमश:

No comments:

Post a Comment