Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा- 5

थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैंने शुरूआत की और सामने बैठे युवक से संवाद किया तो वह कोलकाता का था। वह इंजीनियर था। मैंने इससे आंध्रप्रदेश के बारे में फीडबैक लेने का प्रयास किया तो साइड बर्थ पर बैठे शख्स भी सामने आकर बैठ गए। औपचारिक बातों के बाद जिक्र राजनीति का आया था बगल वाले शख्स भी बोल पडे। अब मैं कोलकाता वाले युवक की बजाय उन दोनों से मुखातिब था। तब तक कोलकाता वाला युवक ऊपर की बर्थ पर जाकर सो चुका था। दोनों की राजनीति में गहरी रूचि थी। प्रदेश से लेकर देश तक के तमाम मसले अंगुलियों पर गिनाने लगे। जी सुपैप्या व अशोक वर्मा दोनों ही विशाखापट्टनम में काम करते हैं। देश की राजनीति पर चर्चा की तो सुप्पैया बोले, देश को अच्छे नौकरशाह की जरूरत है, नेताओं को भी नौकरशाह ही चलाते हैं, इसलिए नौकरशाहों को राजनीति में आना चाहिए। किसानों का कर्जा माफ करने की बात पर उन्होंने बेहद तल्ख शब्दों में कहा, इससे देश का किसान बर्बाद हो जाएगा। किसानों को रोजगार से जोडऩा होगा। पशुपालन को बढ़ावा देना होगा, तभी देश का भला होगा। देश में अगली सरकार किसकी और आंध्रप्रदेश की भूमिका पर दोनों ही कहने लगे, सरकार किसी की भी बने और आंध्रा में कोई भी दल जीते लेकिन आंध्र की हिस्सेदारी जरूर रहेगी। आंध्रप्रदेश में मुख्य मुद्दे पूछे तो कहने लगे विकास ही प्रमुख मुद्दा है। केन्द्रीय राजनीति की चर्चा में जहां सुपैप्या सरकार की आलोचना रहे थे, वहीं अशोक वर्मा केन्द्र की सराहना करने से नहीं चूके। हां आंध्रप्रदेश के मामले में दोनों के विचार समान थे। दोनों ही मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के कार्यकाल की सराहना कर रहे थे। जगन मोहन रेड्डी की पदयात्रा और पदयात्राओं से सियासी नैया पार लगने के बारे में मैंने सवाल किया तो दोनों हंसने लगे। कहने लगे नायडू दूरदर्शी है। उसने काम करवाया है, जगन ने क्या करवाया। वह तो अपने पिता के कामों को ही याद करके वोट मांग रहे हैं। तभी तपाक से अशोक वर्मा अपना मोबाइल निकालते हैं। तेलुगू में लिखा मैसेज दिखाते हैं, मैं मतलब पूछता हूं तो हिन्दी में अर्थ बताते हैं, सचिन का बेटा अगर सलेक्टर के पास जाकर कहे, मेरे पिताजी बहुत अच्छे क्रिकेटर रहे हैं, लिहाजा मेेरा सलेक्शन भी टीम में कर लो। यही काम काम जगन कर रहे हैं। भला पिता के अनुभव या काम बेटे के काम कैसे आएंगे। सुपैप्या कहते हैं आंध्रप्रदेश में नायडू के बाद अगर कोई नेता होगा तो वो हैं, जन सेना का पवन कल्याण। पवन कल्याण तेलुगू फिल्म अभिनेता हैं तथा फिल्मी अभिनेता चिरंजीव के भाई हैं। मैंने सवाल पूछा चिरंजीव ही राजनीति में नहीं चले तो फिर पवन कल्याण का क्या भविष्य है? तो कहने लगे चिरंजीव भी भला आदमी है लेकिन जो बात पवन में है वह चिरंजीव में नहीं। देखना फिल्मों की तरह पवन राजनीति में भी आगे तक जाएगा, बंदे में दम है। थोड़ा सा पास आकर अशोक वर्मा कान में फुसाफुसाते हैं, इस बार चुनाव मे हिन्दुत्व भी मुद्दा रहेगा। यह कहने के पीछ़े उनका इशारा जगन मोहन रेड्डी की तरफ था, जो इसाई हैं। करीब छह घंटे तक रुक-रुक कर मेरा अशोक वर्मा व जी सुप्पैया के साथ संवाद होता रहा। बीच-बीच में वो दोनों आपस में तेलुगू में भी बतियाते। बातचीत के दौरान ही अशोक वर्मा ने अपने बैग से बड़ा सा लड्डू निकाला और मेरी तरफ बढ़ाया और आग्रह किया। मैंने लड्डू लेकर रखकर लिया। फिर दोनों कहने लगे कि आंध्रप्रदेश की संस्कृति में हम स्थानीय भले ही आपस में बात न करें लेकिन दूसरे प्रदेश के लोगों का आदर करते हैं और उनकी मदद करते हैं। बातचीत के दौरान मैं बाहर के नेसैर्गिक सौंदर्य का आनंद भी ले रहा था। पहाड़, हरियाली चावल के खेत आदि देखकर मन रोमांचित हो रहा था। विशाखापट्टनम आने को था। छह घंटे का सफर बातों में ही कट गया। विशाखापट्ïटनम स्टेशन पर दोनों ने अपने मोबाइल नंबर दिए, हाथ मिलाया और एक मीठी मुस्कान के साथ विदा ली।
क्रमश:

No comments:

Post a Comment